गुरु नानक देव जी से लें प्रेरणा, ये विचार सिखाएंगे जीवन जीने का तरीका
punjabkesari.in Tuesday, Nov 08, 2022 - 09:50 AM (IST)
गुरु नानक देव जी सिखों के पहले गुरु थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 में पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। वह एक किसान के घर जन्मे थे जिसके कारण उनके मस्तक पर शुरु से ही एक बहुत ही तेज आभा थी। तलवंडी लाहौर से 30 मील पश्चिम इलाके में स्थित है। गुरु नानक देव जी से शहर का नाम जुड़ने के बाद आगे चलकर इसे ननकाना कहा जाता है। गुरु नानक जी के प्रकाश उत्सव पर हर साल भारत से कई सारे सिख श्रद्धालु ननकाना साहब में जाकर अरदास करते हैं। गुरु नानक देव जी के जीवन से ऐसी कई चीजें जुड़ी हैं जिनसे आप भी शिक्षा ले सकते हैं।
बचपन से ही था धार्मिक चीजों में मन
ऐसा माना जाता है कि बचपन से ही गुरु नानक जी में तेज बुद्धि के लक्षण दिखने लगे थे। उम्र के छोटी अवस्था में ही वह सांसारिक चीजों से दूर रहते थे। सिर्फ 7-8 साल की उम्र में उन्होंने अपना स्कूल छोड़ दिया था। क्योंकि उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। उनके अध्यापक भी गुरु नानक देव जी के प्राप्ति के संबंध में इनके प्रश्नों से हार मान गए थे। जिसके बाद उनके अध्यापक उन्हें पूरे सम्मान के साथ घर छोड़ गए थे। पढ़ाई छोड़ने के बाद नानक जी का ज्यादा समय आध्यत्मिक चिंतन और सत्संग में ही बितता था। उनके बाल्यावस्था में ऐसी कई सारी चमत्कारिक घटनाएं भी हुई थी जिन्हें देखर गांव के लोग उन्हें दिव्य आत्म कहते थे। गुरु नानक देव जी की पहली भक्त उनकी बहन नानकी थी।
लंगर प्रथा की थी शुरु
गुरु नानक देव जी ने जात-पात को खत्म करने के लिए और सभी लोगों को एक समान दृष्टि से देखने के लिए एक दिशा में कई सारे कदम भी उठाए थे। जिसके चलते उन्होंने लंगर प्रथा शुरु की थी। लंगर में सब छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में वहीं लंगर व्यवस्था चल रही है। लंगर में मुख्य भाव सेवा और भक्ति का होता है। नानक देव जी का जन्म दिन गुरुपूर्व के रुप में मनाया जाता है। इसके तीन दिन पहले ही प्रबात फेरियां और नगर कीर्तन होता है। लोग जगह-जगह पानी और शरबत की व्यवस्था करते हैं। गुरु नानक जी का निधन सन् 1539 ई में हुआ था। इन्होंने गुरुगद्दी गुरु अंगददेव को दे दिया जिसके बाद स्वंय करतार पुर में ज्योति में लीन हो गए थे।
शिक्षा का मूल निचोड़ है सत्य
गुरु नानक देव जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य है। परमात्मा सर्वत्र व्यापत है। मूर्ति-पूजा निरर्थक है। नाम-स्मरण ही सर्वोपरि तत्व है जो गुरु के नाम के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक जी की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से भी ओत-प्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दी थी जो कुछ इस प्रकार से हैं...
. ईश्वर एक है।
. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
. ईश्वर सब जगह है और प्राणी मात्र में मौजूद हैं।
. ईश्वर की भक्ति करने वाले इंसान को कोई भय नहीं रहता।
. ईमानदारी से और मेहनत करके ही उदरपूर्ति करनी चाहिए।
. बुरा काम करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
. सदैव प्रसन्न रहें। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगे।
. मेहनत और ईमानदारी की कमाई के साथ ही जरुरतमंद व्यक्ति की मदद करें।
.सभी स्त्री और पुरुष बराबर है।
. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए बहुत ही जरुरी है। लेकिन लोभ, लालच और संग्रहवृति बहुत बुरी है।