नागा साधु क्यों महीनों-सालों तक नहीं नहाते? वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

punjabkesari.in Wednesday, Jan 22, 2025 - 10:21 AM (IST)

नारी डेस्क: महाकुंभ में नागा साधुओं का विशेष महत्व होता है। इस अवसर पर सबसे पहले ये साधु ही अमृत स्नान करते हैं, इसके बाद बाकी श्रद्धालु स्नान करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कई नागा साधु महीनों या सालों तक पानी से दूर रहते हैं और नहाते नहीं हैं? इसके पीछे एक खास कारण है।

नागा साधुओं का मानना है कि बाहरी शुद्धता की बजाय आंतरिक शुद्धता ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए वे अपने शरीर पर केवल भस्म (राख) का लेप लगाते हैं और ध्यान व योग के माध्यम से अपनी आत्मा की शुद्धि पर जोर देते हैं। उनका मानना है कि यही सबसे सही तरीका है खुद को शुद्ध करने का।

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कुछ साधु नियमित रूप से स्नान करते हैं, खासकर यदि उनकी साधना की परंपरा इसकी अनुमति देती हो। लेकिन सामान्यत: नागा साधुओं के स्नान का कोई निर्धारित समय नहीं होता, क्योंकि यह उनकी साधना और परंपराओं पर निर्भर करता है।

नागा साधुओं की साधना 

नागा साधु अपनी साधना में शरीर की शुद्धता से ज्यादा मन की शुद्धता पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे अक्सर गुफाओं या कंदराओं में कठोर तप करते हैं और अपने शरीर को बाहरी सुख-सुविधाओं से दूर रखते हैं। कई नागा साधु पूरी तरह निर्वस्त्र रहते हैं और किसी भी भौतिक सुख को त्याग देते हैं।

नागा साधु बनने की प्रक्रिया 

नागा साधु बनने के लिए एक खास प्रक्रिया होती है। पहले तो साधु को अपनी कामेन्द्रियों को नियंत्रित करने की परीक्षा से गुजरना होता है। इस दौरान वह 24 घंटे बिना खाए-पीए अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा रहता है। उसके बाद एक विशेष धार्मिक क्रिया के तहत उसे नागा साधु के रूप में दीक्षा दी जाती है। इस प्रक्रिया के बाद वह आधिकारिक रूप से नागा साधु बन जाता है।

नागा साधु बनने के बाद उसे ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और उसका जीवन पूरी तरह से साधना और तपस्या में लीन हो जाता है।

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नागा साधुओं के प्रतीक 

नागा साधु अपने शरीर पर भस्म, भगवा वस्त्र, और रुद्राक्ष पहनते हैं। ये उनके साधना और शिव के प्रति भक्ति का प्रतीक होते हैं। वे अपने बालों को नहीं काटते, क्योंकि बाल नहीं काटना उनके संन्यास और तपस्या का प्रतीक है। यह उन्हें सांसारिक बंधनों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धता की ओर अग्रसर करता है।

नागा साधुओं के बाल और जटाएं 

नागा साधु अपने बालों को नहीं काटते और इन्हें जटाओं (मैले और उलझे हुए बालों) में रखते हैं। यह उनके जीवन की सरलता और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक होता है। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि बालों को लंबा रखना और जटाएं बनाना ध्यान और योग में मददगार होते हैं। इसके अलावा, भगवान शिव को भी "जटाधारी" (जटाएं धारण करने वाला) कहा जाता है, और नागा साधु अपनी जटाओं के जरिए भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करते हैं।

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इस प्रकार, नागा साधु अपनी कठिन साधना और तपस्या के जरिए न केवल अपनी शारीरिक शुद्धता से दूर रहते हैं, बल्कि अपनी आत्मा की शुद्धि और योग साधना पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
  
 

 
 


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Content Editor

Priya Yadav

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