गर्भावस्था में ब्लड शुगर कंट्रोल न किया तो बच्चे को होंगे ये 3 बड़े नुकसान
punjabkesari.in Monday, Jul 07, 2025 - 05:11 PM (IST)

नारी डेस्क: गर्भवती महिलाओं के शरीर में बहुत से बदलाव होते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा ध्यान देने वाला बदलाव है ब्लड शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव। यह बदलाव बहुत बार नजरअंदाज हो जाता है, लेकिन यह सेहत के लिए गंभीर हो सकता है। आजकल कई महिलाओं को गैस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (GDM) यानी गर्भावधि मधुमेह हो रहा है। इसे समय पर पहचानना और संभालना बहुत जरूरी है। गर्भावस्था में शरीर कई तरह के हार्मोन बनाता है जैसे प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजन और ह्यूमन प्लेसेंटल लैक्टोजेन। ये हार्मोन बच्चे की ग्रोथ के लिए जरूरी होते हैं लेकिन यही हार्मोन शरीर में इंसुलिन की कार्यक्षमता को कम कर देते हैं जिससे ब्लड शुगर बढ़ने लगता है।
प्रेग्नेंसी में शरीर इंसुलिन के लिए कम रिस्पॉन्स करता है
जैसे-जैसे प्रेग्नेंसी आगे बढ़ती है (खासकर दूसरे और तीसरे तिमाही में), शरीर इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाता है। पैंक्रियास ज्यादा इंसुलिन बनाकर इसकी भरपाई करता है। लेकिन अगर यह संतुलन बिगड़ जाए तो ब्लड शुगर बहुत बढ़ सकता है और महिला को GDM हो सकता है।
GDM के लक्षण अक्सर नहीं दिखते
गेस्टेशनल डायबिटीज की शुरुआत में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं होते। लेकिन कुछ महिलाओं को:
बहुत ज्यादा प्यास लगती है
बार-बार पेशाब आता है
बार-बार थकावट होती है
बार-बार इन्फेक्शन होता है (खासकर यूरिन या योनि में)
अगर ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं होता, तो मां और बच्चे दोनों को नुकसान हो सकता है।
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GDM से क्या-क्या हो सकता है?
प्री-एक्लेम्पसिया (ब्लड प्रेशर बढ़ जाना)
अत्यधिक वजन बढ़ना
डिलीवरी में दिक्कत, जैसे सिजेरियन ऑपरेशन की जरूरत
नवजात में सांस की समस्या
आगे चलकर बच्चे को मोटापा या टाइप-2 डायबिटीज हो सकता है
क्या होना चाहिए ब्लड शुगर का सामान्य स्तर?
खाली पेट: 92 mg/dL से कम
खाने के 1 घंटे बाद: 180 mg/dL से कम
खाने के 2 घंटे बाद: 153 mg/dL से कम
प्रेग्नेंसी के 24 से 28 हफ्ते के बीच OGTT (Oral Glucose Tolerance Test) करवाना जरूरी है। अगर महिला को पहले से मोटापा है या परिवार में डायबिटीज का इतिहास है, तो यह जांच पहले ही करवा लेनी चाहिए।
ब्लड शुगर को कैसे कंट्रोल रखें?
सही डाइट लें – ज्यादा फाइबर, कम कार्बोहाइड्रेट, लीन प्रोटीन और हेल्दी फैट्स शामिल करें।
थोड़ा-थोड़ा बार-बार खाएं – इससे शुगर स्थिर रहेगा।
हल्की एक्सरसाइज करें – जैसे वॉकिंग, योगा या तैराकी (डॉक्टर की सलाह से)।
ब्लड शुगर की नियमित जांच करें – घर पर और डॉक्टर के पास।
जरूरत पड़ने पर दवाएं या इंसुलिन लें – डॉक्टर की सलाह से।
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डिलीवरी के बाद भी रखें खास ध्यान
बच्चे के जन्म के बाद GDM अक्सर चला जाता है। लेकिन लगभग 50% महिलाएं भविष्य में टाइप-2 डायबिटीज की शिकार हो सकती हैं। इसलिए डिलीवरी के 6 से 12 हफ्तों के अंदर फिर से OGTT टेस्ट कराएं। हेल्दी खाना और एक्टिव लाइफस्टाइल बनाए रखें। वजन बढ़ने से बचें और नियमित जांच करवाएं।
गर्भावस्था के दौरान ब्लड शुगर पर नजर रखना और उसे कंट्रोल में रखना मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए बहुत जरूरी है। गेस्टेशनल डायबिटीज को नजरअंदाज न करें और समय रहते डॉक्टर से सलाह लें।