भगवान जगन्नाथ को नीम का भोग क्यों लगाया जाता है? जानिए पौराणिक कारण
punjabkesari.in Tuesday, Jul 01, 2025 - 06:52 PM (IST)

नारी डेस्क: उड़ीसा के प्रसिद्ध मंदिर जगन्नाथ पुरी में भगवान महाप्रभु जगन्नाथ को नीम के पत्ते का भोग लगाया जाता है। यह भोग भगवान की भक्तों के प्रति असीम करुणा और प्रेम को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के दुखों को दूर करते हैं। नीम के पत्ते का भोग लगाने के पीछे एक प्राचीन और पौराणिक कथा प्रचलित है, जो भगवान की भक्ति और सादगी को दर्शाती है। आइए, विस्तार से जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में।
महाप्रभु को नीम का भोग लगाने की पौराणिक कथा
जगन्नाथ पुरी में एक वृद्ध महिला रहती थी जो भगवान जगन्नाथ की परम भक्त थी। वह भगवान को अपने पुत्र की तरह मानती थी। रोजाना वह देखती थी कि मंदिर में भगवान को 56 प्रकार के स्वादिष्ट और भारी-भरकम पकवानों का भोग लगाया जाता है। एक दिन उस वृद्ध महिला को चिंता हुई कि इतने सारे भारी भोजन से भगवान के पेट में दर्द हो सकता है। अपनी मां की ममता और स्नेह से प्रभावित होकर उसने भगवान के लिए नीम के पत्तों का चूर्ण तैयार किया। नीम के पत्तों को औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है, इसलिए उसने भगवान के स्वास्थ्य के लिए यह भोग बनाया।
मंदिर में प्रवेश पर बाधा और वृद्धा का दुःख
जब वह वृद्ध महिला नीम का चूर्ण लेकर मंदिर पहुंची, तो वहां के सैनिकों ने उसे अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने महिला के हाथ से नीम का चूर्ण छीनकर फेंक दिया। यह देखकर वह महिला बहुत दुखी हुई और निराश होकर अपने घर लौट गई।
उस रात भगवान जगन्नाथ ने पूरी के राजा को स्वप्न में दर्शन दिए। उन्होंने राजा को पूरी घटना का वर्णन किया और बताया कि उनकी एक सच्ची भक्ता का अपमान हुआ है जो बिलकुल अनुचित है। भगवान ने राजा से कहा कि वे स्वयं उस वृद्ध महिला के पास जाकर उनसे क्षमा मांगें और नीम के चूर्ण को फिर से बनवाकर उन्हें भोग के रूप में अर्पित करें।
राजा का वृद्ध महिला के घर जाना और क्षमा याचना
भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए, अगले दिन राजा स्वयं उस वृद्ध महिला के घर गए। उन्होंने महिला से क्षमा मांगी और विनती की कि वह दोबारा नीम का चूर्ण तैयार करें। वृद्ध महिला ने अपने प्रेम और श्रद्धा से फिर से नीम का चूर्ण बनाया। राजा ने वह भोग भगवान जगन्नाथ को अर्पित किया जिसे भगवान ने बड़े प्रेम से स्वीकार किया।
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नीम के भोग की परंपरा की स्थापना
तब से लेकर आज तक, भगवान जगन्नाथ को छप्पन भोग के बाद नीम के चूर्ण का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है। यह परंपरा भगवान की भक्तों के प्रति करुणा, सादगी और नीम के औषधीय महत्व को दर्शाती है।
नीम की लकड़ी से बनी भगवान की मूर्ति – ‘दारू ब्रह्मा’
जगन्नाथ जी की मूर्तियां भी नीम की पवित्र लकड़ी से बनाई जाती हैं, जिसे ‘दारू ब्रह्मा’ कहा जाता है। यह नीम के महत्व को और भी बढ़ाता है। भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों में भेदभाव नहीं करते। वे सभी प्रकार के पदार्थों को स्वीकार करते हैं, चाहे वे साधारण हों या विशिष्ट। जो भक्त श्रद्धा और विश्वास से मन से भोग अर्पित करते हैं, भगवान उसे प्रेम से ग्रहण करते हैं।
भगवान जगन्नाथ का नीम के पत्ते का भोग केवल एक धार्मिक प्रथा नहीं, बल्कि यह उनकी करुणा, भक्तों के प्रति प्रेम और सादगी की कहानी है। इसके साथ-साथ नीम के औषधीय गुणों का भी सम्मान करती यह परंपरा आज भी भक्तों के दिलों में गहराई से जुड़ी हुई है।