प्रेग्नेंसी में कब और क्यों होती है Blood Spotting?
punjabkesari.in Friday, Oct 16, 2020 - 12:06 PM (IST)

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को जी घबराना, उल्टी, चक्कर आना जैसी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीं कुछ महिलाओं को इस दौरान स्पॉटिंग या ब्लड डिस्चार्ज की समस्या भी देखने को मिलती है। अक्सर महिलाएं इस गर्भपात समझकर घबरा जाती है लेकिन हल्की स्पॉटिंग होना नार्मल है। हालांकि इसे नजरअंदाज करना भी सही नहीं है क्योंकि यह एक्टोपिक गर्भावस्था, प्लेसेंटल एबरप्शन, गर्भपात या प्लेसेंटा प्रीविया का संकेत भी हो सकती है।
क्या होती है बल्ड स्पॉटिंग?
जब निषेचित अंडा गर्भाशय की दीवार पर अपनी जड़ें जमाता है उस समय कुछ बूंदें खून की गिरती हैं, जिसे स्पॉटिंग या ब्लड डिस्चार्ज कहा जाता है। हालांकि यह चिंता की बात नहीं है, पर अब अगर ज्यादा ब्लड देखें तो आपको फौरन अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
कब होती है बल्ड स्पॉटिंग?
गर्भवती महिलाओं में से करीब 20-30 फीसदी को गर्भावस्था की पहली तिमाही यानि पहले तीन महीनों में वैजाइनल ब्लीडिंग हो सकती है। आमतौर पर यह लाइट पिंक या डार्क ब्राउन रंग की होती है।
बल्ड स्पॉटिंग के लक्षण
-ब्लड डिस्चार्ज
-पेट में मरोड़ उठना
-पीठ में दर्द
-अत्यधिक उल्टी
-बेहोशी छाना।
बल्ड स्पॉटिंग के कारण
गर्भपात
गर्भावस्था की शुरूआत में गर्भपात तब होता है, जब भ्रूण सही ढंग से विकास नहीं कर रहा हो। कुछ महिलाओं को उनके प्रेग्नेंसी का अहसास होने से पहले ही उनका गर्भपात हो जाता है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पीरियड चल रहे हैं और वो ब्लड स्पॉटिंग को पीरियड्स समझ लेती हैं।
इंप्लांटेशन ब्लीडिंग
प्रेग्नेंसी की शुरूआत में फर्टिलाइज्ड अंडा गर्भाशय की लाइनिंग पर इंप्लांट होता है, जिसके कारण ब्लीडिंग होने लगती है। चूंकि इंप्लांटेशन ब्लीडिंग गर्भावस्था की बिल्कुल शुरूआत में होती है इसलिए इसे हल्के पीरियड के तौर पर देखा जाता है।
हॉर्मोन स्तर में बदलाव
आमतौर पर मासिक धर्म का नियंत्रण करने वाले हॉर्मोन की वजह से भी गर्भावस्था की शुरूआत में ब्लीडिंग हो सकती है।
सर्वाइकल या वेजाइना इंफेक्शन
सर्विक्स, योनि या यौन संक्रमण (जैसे क्लेमीडिया, गोनोरिया या हर्प्स) की वजह से भी गर्भावस्था की पहली तिमाही में ब्लीडिंग हो सकती है। ऐसे में आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
संबंध बनाना
इस दौरान सर्विक्स में अतिरिक्त रक्त का प्रवाह होता है। गर्भावस्था के दौरान निकलने वाले हॉर्मोन सर्विक्स की सतह में बदलाव कर देते हैं, जिससे संबंध बनाने से ब्लीडिंग की संभावना बढ़ जाती है।
फाइब्रॉइड्स
कई बार प्लेसेंटा गर्भाशय में ऐसी जगह जुड़ जाता है, जहां उसकी लाइनिंग में फाइब्रॉइड हो। इस वजह से भी कई बार ब्लीडिंग हो जाती है। हालांकि इससे भ्रूण को कोई नुकसान नहीं होता।
क्या हैं खतरा?
अगर प्रेग्नेंसी में स्पॉटिंग के अलावा कभी भी ब्लीडिंग हो तो समझना चाहिए कि यह इंफेक्शन, मिसकैरेज या प्रेग्नेंसी में समस्या का संकेत है। गर्भनाल या प्लेसेंटा में नुकसान होने की वजह से भी ऐसा होता है। ऐसे में आपको तुरंत डॉक्टर से चेकअप करवाना चाहिए।
इन बातों का रखें ध्यान
-प्रेग्नेंसी के दौरान स्पॉटिंग हो तो पैड जरूर लगाएं, ताकि आपको पता चल सके कि डिस्चार्ज कितनी मात्रा में निकल रहा है और यह खतरे की बात तो नहीं।
-आपकी योनि से निकलने वाले रक्त की कुछ कोशिकाएं अपने डॉक्टर को जांच के लिए उपलब्ध कराएं।
-अगर आपको गर्भावस्था के दौरान ब्लीडिंग हो तो टैंपून के इस्तेमाल से परेहज करें।
-अगर आपको स्पॉटिंग या ब्लीडिंग हो रही है तो यौन संबंध बनाने से परहेज करें।
-अगर आपको पहले भी गर्भावस्था के दौरान ब्लीडिंग/स्पॉटिंग हुई और अब रुक चुकी है तो भी डॉक्टर को जरूर बताएं।
गर्भधारण करने के 28 वें महीने में रक्त स्राव होता है तो इसे हल्के से बिलकुल नहीं लेना चाहिए। यह अत्यंत हीं गंभीर स्थिति होती है और तुरंत उपचार न दिए जाने पर यह उस महिला के लिए जानलेवा भी हो सकता है।