वट सावित्री व्रत 2025: जानिए तिथि, पूजा विधि, व्रत सामग्री और इसका धार्मिक महत्व

punjabkesari.in Tuesday, May 06, 2025 - 03:47 PM (IST)

नारी डेस्क: हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत खासतौर पर विवाहित महिलाएं करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से पति की आयु लंबी होती है और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह व्रत पौराणिक कथा सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम और दृढ़ संकल्प की याद दिलाता है, जिसमें सावित्री ने अपने पति को यमराज से भी वापस लाने का साहस दिखाया था।

वट सावित्री व्रत 2025 में कब है?

पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। साल 2025 में यह तिथि 26 मई दिन सोमवार को है।

अमावस्या तिथि की शुरुआत: 26 मई 2025 को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से

अमावस्या तिथि का समापन: 27 मई 2025 को रात 8 बजकर 31 मिनट पर

उदयातिथि (सूर्योदय की तिथि) के अनुसार व्रत 26 मई को ही रखा जाएगा।

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वट सावित्री व्रत कैसे रखें?:

स्नान और तैयारी: इस दिन ब्रह्म मुहूर्त (सुबह जल्दी) में उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और अपने घर के मंदिर में भगवान की पूजा करें। सूर्य देव को जल चढ़ाएं (अर्घ्य दें)।

वट वृक्ष के नीचे पूजा: व्रती महिलाएं (जो व्रत रख रही हैं) श्रृंगार करें। वट वृक्ष (बड़ के पेड़) के नीचे जाएं और वहाँ पहले साफ-सफाई करें। पूजा की जगह पर दीपक, अगरबत्ती जलाएं।

वट वृक्ष की पूजा विधि: वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें। पेड़ की पूजा करें और वट सावित्री व्रत की कथा का पाठ करें। वृक्ष की डालियों में सूत (धागा) बांधें।

भोग लगाना और दान करना: पूजा के बाद भगवान को भोग लगाएं। अंत में गरीबों को अन्न, धन और वस्त्रों का दान करें। यह माना जाता है कि इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

वट सावित्री व्रत की जरूरी सामग्री

देसी घी, भीगा हुआ काला चना, मौसमी फल, अक्षत (चावल), धूपबत्ती, वट वृक्ष की छोटी डाल, गंगाजल, मिट्टी का छोटा घड़ा, सुपारी, सिंदूर, हल्दी, मिठाई

व्रत के दौरान क्या न करें?

इस दिन किसी से वाद-विवाद न करें।  किसी के प्रति गलत भावना न रखें और बुरा सोचने से बचें। किसी का अपमान न करें और पूरे दिन शांत व संयमित व्यवहार बनाए रखें।

वट सावित्री व्रत नारी शक्ति, समर्पण और पति के लिए सच्चे प्रेम का प्रतीक है। यह व्रत न केवल पति की लंबी उम्र के लिए किया जाता है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और पारिवारिक समृद्धि का भी माध्यम है। 


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Content Editor

PRARTHNA SHARMA

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