बच्चों को आ रहा Silent Heart Attack, पेरेंट्स नहीं समझ पा रहे कारण? पढ़िए जरूरी जानकारी

punjabkesari.in Friday, Jul 04, 2025 - 07:33 PM (IST)

नारी डेस्कः हार्ट अटैक के मामले दिनों-दिन तेजी से बढ़ रहे हैं, जहां पहले उम्रदराज लोग ही दिल की बीमारी से पीड़ित होते थे वहीं अब हर वर्ग के लोग इसकी चपेट में हैं।  छोटे बच्चे और किशोर भी “साइलेंट हार्ट अटैक” (Silent Heart Attack) जैसी गंभीर स्थिति की चपेट में आ रहे हैं, जो बेहद चिंता की बात है। यह हार्ट अटैक आमतौर पर बिना किसी स्पष्ट लक्षण के होता है या फिर लक्षण इतने मामूली होते हैं कि माता-पिता और डॉक्टर तक समझ नहीं पाते।


हाल ही में उत्तरप्रदेश में 12 साल के छात्र की अचानक साइलेंट अटैक आने से मौत हो गई। यह घटना बाराबंकी के देवा क्षेत्र की है जहां 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली अखिल को उस समय हार्ट अटैक आया जब वह अभी स्कूल गेट पर ही था। स्कूल के गेट के पास ही अखिल की तबीयत अचानक खराब हो गई। परिजन उसे तुरंत डॉक्टर के पास लेकर गए लेकिन तब तक अखिल की मौत हो चुकी थी। प्रारंभिक जांच में मौत का कारण साइलेंट हार्ट अटैक बताया जा रहा है लेकिन अब यहां सवाल उठता है आखिर छोटे बच्चों में साइलेंट हार्ट अटैक के पीछे कारण क्या हैं?


हर किसी के मन में यह सवाल एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है कि इतने छोटे बच्चे, हार्ट अटैक का शिकार क्यों हो रहे हैं और बहुत से लोगों के मन में यह सवाल भी है कि जहां कहा जा रहा है कि कोविड वैक्सीन के चलते लोगों को हार्ट अटैक आ रहा है, वहीं 12 साल के बच्चों को तो यह वैक्सीन लगााई ही नहीं गई थी तब भी ये मामले सुनने को मिल रहे हैं ऐसा क्यों... चलिए आपको इसके पीछे की बड़ी वजह आपको बताते हैं। 

साइलेंट हार्ट अटैक क्या होता है?

यह एक प्रकार का हार्ट अटैक ही होता है जिसमें छाती में तेज़ दर्द, पसीना, सांस फूलना जैसे क्लासिक लक्षण नहीं दिखते जबकि यह धीरे-धीरे दिल की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाता हैअगर समय रहते जांच न हो, तो यह भविष्य में बड़े अटैक या हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है।
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बच्चों में साइलेंट हार्ट अटैक के कारण

1. जंक फूड और अनहेल्दी डाइट

बच्चे अधिक मात्रा में तली-भुनी चीजें, शुगर, कोल्ड ड्रिंक, प्रोसेस्ड फूड खाने लगे हैं। इससे कोलेस्ट्रॉल और फैट बढ़ता है, जिससे दिल की नसों में धीरे-धीरे ब्लॉकेज बन सकता है।

2.शारीरिक गतिविधि की कमी (Physical Inactivity)

मोबाइल, टीवी और वीडियो गेम की लत ने बच्चों को फिजिकल रूप से अनएक्टिव कर दिया है। दिल की धमनियों की मजबूती के लिए नियमित फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है।

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3. जेनेटिक या जन्मजात हृदय दोष (Congenital Heart Disease)

कुछ बच्चों को जन्म से ही दिल की धमनियों या वाल्व में समस्या होती है, जो समय पर पकड़ी नहीं जाती। यह धीरे-धीरे हार्ट स्ट्रेस और अटैक का कारण बन सकता है।

4. तनाव और मानसिक दबाव (Stress & Anxiety)

स्कूल प्रेशर, सोशल मीडिया, पेरेंट्स का अपने बच्चों पर बढ़ती इच्छाएं और प्रैशर, ये सभी चीजें बच्चों को मानसिक तनाव देती हैं। लंबे समय तक तनाव दिल पर असर डालता है, जिससे कार्टिसोल हार्मोन बढ़ता है और दिल कमजोर होता है।
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5. डायबिटीज और मोटापा

बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज और मोटापा, आम हो गया है। जिसका सीधा संबंध अनहैल्दी लाइफस्टाइल से ही है। ये दोनों समस्याएं दिल की धमनियों को कमजोर करके साइलेंट अटैक की संभावना बढ़ाते हैं।

6.वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण के बाद दिल में सूजन

जैसे कोविड-19 या फ्लू के बाद Myocarditis (दिल की मांसपेशियों में सूजन) एक सामान्य दिक्कत है। यह कभी-कभी बिना लक्षण के भी दिल को नुकसान पहुंचा सकती है।

7. समय पर जांच न होना या लक्षणों को नज़रअंदाज़ करना

बच्चों की थकान, चिड़चिड़ापन, भूख की कमी, दिल की धड़कन तेज़ होना, ये सब लक्षण छोटे समझे जाते हैं लेकिन यह साइलेंट हार्ट की ओर संकेत हो सकते हैं।

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सावधान करने वाले बड़े संकेत

यदि बच्चे में ये लक्षण दिखाई दें तो बिना देरी किए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
बार-बार थक जाना या सांस फूलना
अचानक चक्कर या बेहोशी
छाती में हल्का दर्द या भारीपन
दिल की धड़कन तेज़ होना
बिना मेहनत के पसीना आना
भूख कम लगना और कमजोरी

इस तरह की हैल्थ प्रॉब्लम से बच्चे का बचाव कैसे करें पेरेंट्स ? 

 1. हेल्दी डाइट देंः ताजे फल, सब्जियां, नट्स, दूध, अनाज — संतुलित आहार बहुत जरूरी है।

 2. बच्चों को एक्टिव रखेंः रोजाना कम से कम 1 घंटा फिजिकल एक्टिविटी — दौड़ना, साइकिल, खेलना।

3. स्क्रीन टाइम सीमित करेंः मोबाइल/टीवी का समय 1–2 घंटे से अधिक न होने दें।

4. रेगुलर हेल्थ चेकअप कराएंः फैमिली हिस्ट्री है तो ECG, इकोकार्डियोग्राफी या ब्लड प्रेशर की जांच करवाएं।

5. मानसिक तनाव से दूर रखेंः बच्चों की बातें सुनें, उन्हें खुलकर बोलने दें, प्यार से व्यवहार करें।

याद रखिएः साइलेंट हार्ट अटैक अब सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी नहीं रही। बदलती जीवनशैली, डाइट और मानसिक दबाव ने इसे बच्चों तक पहुंचा दिया है। इसलिए जरूरी है कि हम उनके खान-पान, एक्टिविटी और मानसिक स्वास्थ्य पर खास ध्यान दें और किसी भी असामान्य लक्षण को हल्के में न लें।


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Content Writer

Vandana

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