नागा बनने के लिए त्यागनी पड़ती है सांसारिक बंधन, महिलाओं को पार करनी होती है कठिन परीक्षा
punjabkesari.in Tuesday, Jan 21, 2025 - 03:51 PM (IST)
नारी डेस्क: 1 फरवरी 1888 को प्रयाग में कुंभ मेला चल रहा था। इसी दौरान ब्रिटेन के एक अखबार में कुंभ मेला और उसमें शामिल होने वाले वस्त्रहीन साधुओं पर एक खबर छपी। खबर में बताया गया था कि 400 वस्त्रहीन साधुओं ने जुलूस निकाला और लोग उन्हें श्रद्धा भाव से देख रहे थे। इनमें पुरुषों के साथ महिलाएं भी शामिल थीं। ब्रिटिश अफसर ने इन साधुओं के लिए रास्ता साफ किया, जो ब्रिटेन में न्यूडिटी को अपराध मानते थे। इस पर एक ईसाई नेता ने ब्रिटिश सरकार से इस पर सवाल उठाया, लेकिन सरकार ने जवाब दिया कि यह भारतीय परंपरा का हिस्सा है और इसमें कोई बुराई नहीं है। ये साधु नागा संन्यासी थे, जो हर बार कुंभ में पहला शाही स्नान करते हैं।
नागा संन्यासी कौन होते हैं?
नागा शब्द संस्कृत के 'नग' से आया है, जिसका मतलब है पहाड़। नागा संन्यासी उन साधुओं को कहा जाता है जो पहाड़ों या गुफाओं में रहते हैं और जीवन को पूरी तरह से त्याग देते हैं। इनकी परंपरा 9वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित 'दशनामी संप्रदाय' से जुड़ी हुई है। इस संप्रदाय में 10 नाम होते हैं- गिरी, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती।
नागा बनने की प्रक्रिया
नागा बनने के लिए तीन मुख्य स्टेज होते हैं- महापुरुष, अवधूत और दिगंबर। इसके अलावा एक 'प्री-स्टेज' भी होती है, जिसमें उम्मीदवार की जांच की जाती है।
प्री-स्टेज (परख अवधि)
नागा बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को पहले अपने घर वालों से अनुमति लेनी होती है। इसके बाद उनका क्रिमिनल रिकॉर्ड चेक किया जाता है। फिर उन्हें किसी गुरु के पास दो-तीन साल सेवा करने के लिए भेजा जाता है। इस दौरान उनका ध्यान रखने और साधना करने के अलावा, उन्हें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पाना होता है। अगर कोई उम्मीदवार भटकता हुआ मिलता है तो उसे वापस घर भेज दिया जाता है।
महापुरुष
जो उम्मीदवार इस प्रक्रिया में खरा उतरता है, उसे महापुरुष का दर्जा मिलता है। इसके बाद उसे पंच संस्कार से गुजरना होता है, जिसमें शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश को गुरु मानकर पूजा की जाती है। इसके बाद गुरु शिष्य की चोटी काटते हैं और उसे भगवा वस्त्र, रुद्राक्ष और भभूत दी जाती है।
अवधूत
महापुरुष बनने के बाद उसे अवधूत बनने के लिए विशेष प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसके लिए उसे सुबह 4 बजे उठकर नदी में स्नान करना होता है और 17 पिंडदान करने होते हैं- 16 अपने पूर्वजों के और 17वां खुद का। इसके बाद वह खुद को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर देता है। इसके बाद 108 डुबकियां लगवाकर उसे अवधूत घोषित कर दिया जाता है।
दिगंबर
अवधूत बनने के बाद दिगंबर की दीक्षा लेनी होती है। यह प्रक्रिया कुंभ मेले के शाही स्नान से एक दिन पहले होती है। इस दौरान साधु को 24 घंटे उपवासी रहना होता है। फिर उसके जननांग की एक नस खींची जाती है, जिससे वह नपुंसक बन जाता है। इसके बाद शाही स्नान के दौरान वह दिगंबर नागा बन जाता है।
महिला नागा संन्यासी
महिलाएं भी नागा संन्यासी बन सकती हैं, जिन्हें नागिन, अवधूतनी या माई कहा जाता है। महिला नागा संन्यासियों को ब्रह्मचर्य की परीक्षा से गुजरना होता है। उन्हें यह साबित करना होता है कि वे ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं, और यह प्रक्रिया 10-12 साल तक भी चल सकती है। इसके बाद वे दीक्षा ले सकती हैं और उन्हें भगवा या पीला वस्त्र पहनने के लिए कहा जाता है।
नागा साधुओं की भाषा और कोड वर्ड
नागा साधु अपनी विशेष भाषा में बात करते हैं, जिसे कोड वर्ड कहा जाता है। इसका उद्देश्य था कि कोई फर्जी साधु उनके बीच ना घुस सके और मुगलों या अंग्रेजों से अपनी सूचनाओं को गुप्त रखा जा सके। उदाहरण के लिए, वे आटे को भस्मी, दाल को पनियाराम, लहसुन को पाताल लौंग आदि कहते हैं।
नागा साधुओं का अंतिम संस्कार
जब किसी नागा साधु का निधन होता है, तो उसका अंतिम संस्कार विशेष तरीके से किया जाता है। उसकी देह को सीधा करके समाधि दी जाती है, और 40वें दिन सामूहिक भोज का आयोजन होता है, जो एक भंडारे की तरह होता है।
कुंभ में नागा और वैरागी साधुओं के बीच संघर्ष
कुंभ मेला में नागा और वैरागी साधुओं के बीच पहले स्नान को लेकर अक्सर विवाद होते थे। 1760 के हरिद्वार कुंभ में नागा और वैरागी साधुओं के बीच हिंसा हुई थी, जिसमें कई साधु मारे गए थे। इसे देखते हुए ब्रिटिश शासन ने नागा और वैरागियों के लिए अलग-अलग स्नान घाट निर्धारित किए थे। इसके बाद से नागा साधुओं को पहले स्नान का अधिकार दिया गया।
नागा संन्यासी भारतीय साधु परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो न केवल भक्ति और साधना का जीवन जीते हैं, बल्कि कठिन साधनाओं और प्रक्रियाओं से गुजरकर समाज से दूर रहने का निर्णय लेते हैं। उनकी जीवनशैली और दीक्षा की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और विशिष्ट होती है।