मां शैलपुत्री को समर्पित है नवरात्रि का पहला दिन जानिए पूजा विधि
punjabkesari.in Saturday, Sep 24, 2022 - 04:51 PM (IST)
शारदीय नवरात्रि 26 सितबंर यानी की सोमवार से शुरु हो रहे हैं। नौ दिन तक चलने वाले इन नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रुपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है। मान्यताओं के अनुसार, विधि-विधान के साथ मां शैलपुत्री की पूजा करने से सारे मनोरथ पूरे हो जाते हैं। मां शैलपुत्री मां पार्वती का रुप हैं। सहज भाव से मां की पूजा करने से मां शीघ्र प्रस्नन हो जाती है। तो चलिए आपको बताते हैं कि मां शैलपुत्री कौन थी और उनका जन्म कैसे हुआ...
मां शैलपुत्री के जन्म की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत ही बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। प्रजापति दक्ष ने सारे देवताओं व राजाओं को निमंत्रण दिया लेकिन उन्होंने भगवान शंकर जी को आमंत्रण नहीं दिया। जब यह बात मां सती को पता चली कि उनके पिता इतना बड़ा विशाल यज्ञ कर रहे हैं वो वहां जाने के लिए बैचेन हो गई। इसी बात का उन्होंने भगवान शंकर से जिक्र किया। उन्होंने इस बात पर कुछ देर तक विचार किया और कहा कि प्रजापति दक्ष किसी कारण हमसे नाराज हैं। इसलिए उन्होंने हमें जान-बुझकर पूजा में नहीं बुलाया है और बाकी सारे देवतागण व राजाओं को निमंत्रण दिया है। हमें उन्होंने इस बात की कोई सूचना नहीं दी। इसलिए हमारा वहां पर जाना अच्छा नहीं होगा। परंतु मां सती ने भगवान शंकर की यह बात नहीं मानी। वह पिता के यज्ञ में शामिल होना चाहती थी और अपनी मां व बहनों से मिलना चाहती थी। उनके इतने आग्रह करने पर भगवान शंकर ने उन्हें यज्ञ में शामिल होने की अनुमति दे दी। परंतु जैसे मां सती अपने पिता के घर पर पहुंची तो वहां पर उनसे किसी से भी अच्छे ने बात नहीं की। हर कोई मां सती को देखकर मुंह फेरने लगे। परंतु उनकी मां ने उन्हें बहुत ही प्यार के साथ गले से लगाया। अपने घर वालों का ऐसा व्यवहार देख मां सती बहुत ही दुखी हुई। उनके बहनों की बातें और भाव भी उपहास भरे थे। इसके अलावा भगवान शंकरजी जी का भी निरादर हो रहा था। मां सती के पिता प्रजापति दक्ष उनके प्रति कुछ अपमानजनक बातें कह रहे थे। यह देख मां सती को बहुत ही दुख हुआ और वह क्रोधित हो गई। इसके बाद उन्हें भगवान शंकर के वाक्य सही लगे उन्हें लगा कि उन्होंने यहां पर आकर बड़ी गलती कर दी है। उनसे अपने पति का यह अपमान देखा नहीं गई और अपनी सती रुप को वहीं योगाअग्नि में जलकर भस्म कर दिया। इस घटना का जब भगवान शंकर को पता चला तो उन्होंने उस यज्ञ में अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करवा दिया। इसके प्रकार मां सती ने अपने आप को उस अग्नि में भस्म कर लिया और अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रुप में जन्म लिया। इसलिए इस जन्म में उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। पार्वती और हेमवती भी मां शैलपुत्री के ही नाम है।
देवी शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा करने के लिए सबसे पहले मां की तस्वीर स्थापित करके उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ बिछाएं। इसके ऊपर केसर के साथ शं लिखकर मनोकामना पूर्ति के लिए गुटिका रख दें। पिर हाथ में लाल फूल लेकर ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ऊँ शैलपुत्री देव्यै नम:। मंत्र का जाप करें। इसके बाद फूल और मनोकामना गुटिका को मां की तस्वीर के आगे रखें। इसके बाद मां के लिए बनाया हुआ भोग उन्हें अर्पित करें।
कैसे करें मां को खुश
मां शैलपुत्री को सफेद रंग बहुत ही पसंद है। मां की पूजा में सफेद रंग का इस्तेमाल करना बहुत ही शुभ माना जाता है। मां शैलपुत्री का स्वरुप भी सफेद रंग की साड़ी में दिखाई देता है। सफेद रंग को शांति और शुद्धता का प्रतिक भी माना जाता है। साथ ही मां की कृपा भी आप पर बनेगी। मां को आप देसी घी से बना प्रसाद अर्पित कर सकते हैं।
देवी शैलपुत्री का स्त्रोत पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्। धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणाभ्यम्।। त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।। सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्।। चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन। मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्।
मां शैलपुत्री का मंत्र
ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। मंत्र पूरा होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा श्रद्धा से मां की आरती और कीर्तन करें।