यहां गड़ा है भगवान परशुराम का शक्तिशाली फरसा! रहस्य जानकर हैरान रह जाएंगे आप
punjabkesari.in Monday, Apr 14, 2025 - 05:21 PM (IST)

नारी डेस्क: कलियुग में आज भी कुछ महापुरुष और देवता जीवित हैं, जिन्हें चिरंजीवी कहा जाता है। इन चिरंजीवियों में भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का नाम भी शामिल है। हर साल अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। परशुराम जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी और इसके बदले उन्हें एक दिव्य फरसा प्राप्त हुआ था। इसी फरसे के जरिए परशुराम जी ने युद्ध की कई कला सीखी थी।कहा जाता है कि भगवान परशुराम का फरसा आज भी धरती पर मौजूद है। आइए जानते हैं इस फरसे के बारे में, कहां है यह और इसके रहस्यों के बारे में।
परशुराम जी का फरसा कहां है?
परशुराम जी का फरसा आज भी झारखंड राज्य के गुमला जिले में स्थित एक पहाड़ी के मंदिर में रखा हुआ है। यह स्थान रांची से लगभग 150 किलोमीटर दूर है और इसे टांगीनाथ धाम कहा जाता है। यहाँ के मंदिर में यह फरसा रखा हुआ है और यही वह स्थान माना जाता है, जहां परशुराम जी ने स्वयं अपना फरसा गाड़ा था।
फरसा का रहस्य
यह फरसा आज भी खुले आकाश के नीचे रखा हुआ है, लेकिन एक हैरान कर देने वाली बात यह है कि इसमें कभी भी जंग नहीं लगा। इसे कई बार उखाड़ने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार ये प्रयास नाकाम रहे। यह खुद में एक रहस्य है कि हजारों सालों बाद भी यह फरसा सुरक्षित कैसे है और इसे कोई नुकसान क्यों नहीं हुआ।
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फरसा यहां कैसे आया?
कहा जाता है कि श्रीराम ने जब भगवान शिव का धनुष तोड़ा था तो परशुराम जी बहुत क्रोधित हो गए थे। उन्होंने अपनी नाराजगी में भगवान श्रीराम को बुरा भला कहा, लेकिन बाद में उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। इसके बाद वह लज्जित हुए और अपने किए का प्रायश्चित करने के लिए एक घने जंगल में स्थित एक पहाड़ पर तपस्या करने के लिए गए। इसी स्थान पर उन्होंने अपना फरसा गाड़ दिया था और वहां पर तपस्या करने लगे। दावा किया जाता है कि टांगीनाथ धाम वही स्थान है जहां पर परशुराम जी ने अपना फरसा गाड़ा था और तपस्या की थी।
भगवान शिव ने परशुराम जी को क्या वरदान दिया था?
परशुराम जी को भगवान शिव ने कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र भेंट किए थे, जिनमें से एक था फरसा (जिसे परशु भी कहा जाता है)। यह फरसा एक अजेय हथियार था, जिसे भगवान शिव ने परशुराम को दिया था। परशुराम जी ने इसी फरसे के माध्यम से अधर्म और अत्याचार को नष्ट करने के लिए 36 बार हयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का वध किया था। यह फरसा अत्यधिक शक्तिशाली और अपराजेय माना जाता था, जिससे परशुराम जी ने युद्धों में कई विजय प्राप्त की।
भगवान परशुराम का फरसा सिर्फ एक अस्त्र नहीं था, बल्कि यह उनके तपस्या, बल और अधर्म से संघर्ष का प्रतीक था। इस फरसे के माध्यम से परशुराम ने धर्म की रक्षा की और अधर्म का संहार किया। यह फरसा एक इतिहास बन चुका है, जो आज भी लोगों के बीच श्रद्धा और रहस्य का कारण बना हुआ है।