जहां भगवान राम ने किया था वनवास, जानिए अब कहां है वह जगह और कैसे पहुंचें वहां
punjabkesari.in Monday, Oct 20, 2025 - 11:50 AM (IST)

नारी डेस्क : छत्तीसगढ़ का दंडकारण्य वन आज भले ही नक्सल प्रभावित इलाका माना जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यही वह जगह है, जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के 12 वर्ष बिताए थे। यहीं से रामायण की असली कहानी शुरू हुई थी और रावण वध की नींव पड़ी थी।
दीपावली और भगवान राम का संबंध
पूरा देश जब दीपों का पर्व दीपावली मना रहा है, हर ओर रोशनी और मिठाइयों की खुशबू फैली हुई है। ऐसे में यह याद करना जरूरी है कि इस त्योहार का सीधा संबंध भगवान श्रीराम से है। रावण का वध करने के बाद जब भगवान राम 14 वर्षों के वनवास से अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनके आगमन का उत्सव मनाया था। यही परंपरा आगे चलकर दीपावली के रूप में मनाई जाने लगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान जिन-जिन स्थलों पर समय बिताया, वे पवित्र स्थान आज कहां स्थित हैं?
छत्तीसगढ़ और रामायण का गहरा रिश्ता
छत्तीसगढ़ और रामायण का गहरा रिश्ता बहुत प्राचीन और पौराणिक है। छत्तीसगढ़ का दंडकारण्य वन वही क्षेत्र माना जाता है, जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास का लंबा समय बिताया था। आज यह इलाका नक्सली गतिविधियों के कारण सुर्खियों में रहता है, लेकिन प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यह वही वन है जो कभी राक्षसों और वन्य जीवों का निवास स्थान था। कहा जाता है कि इसी दंडकारण्य में शूर्पणखा की कथा घटित हुई थी, जिसके बाद रावण वध की कहानी की नींव रखी गई और रामायण का महत्वपूर्ण अध्याय शुरू हुआ।
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कहां स्थित है दंडकारण्य?
दंडकारण्य का अधिकांश भाग आज छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में फैला हुआ है। यह इलाका अपनी प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली के लिए प्रसिद्ध है, इसलिए इसे “छत्तीसगढ़ का कश्मीर” भी कहा जाता है। यहां घने जंगलों के बीच मनमोहक झरने, रहस्यमयी गुफाएं और प्राचीन मंदिर इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को और बढ़ाते हैं। हालांकि, यह क्षेत्र नक्सली प्रभाव वाला होने के कारण यहां यात्रा करने से पहले स्थानीय प्रशासन की अनुमति लेना और अनुभवी गाइड के साथ जाना बेहद जरूरी माना जाता है।
यहां कैसे मनाई जाती है दिवाली
दंडकारण्य में दिवाली का उत्सव आज भी भगवान राम की स्मृति में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां के लोग धनतेरस, नरक चतुर्दशी और बड़ी दिवाली को पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं। स्थानीय लोककथाओं में नरकासुर वध की कथा विशेष रूप से प्रचलित है, जिसे इस पर्व से जोड़ा जाता है। इस अवसर पर लोग दीये जलाकर अपने घरों और मंदिरों को रोशनी से सजाते हैं। उनका विश्वास है कि इन दीपों की लौ उस आनंद और उजाले की प्रतीक है, जो भगवान राम के अयोध्या लौटने पर फैली थी।
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दंडकारण्य में घूमने योग्य स्थल
यह विशाल वन लगभग 92,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। मुख्य रूप से यह बस्तर जिले में आता है, लेकिन इसके विस्तार में तेलंगाना, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्से भी आते हैं। यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
चित्रकोट झरना – जिसे भारत का नियाग्रा फॉल कहा जाता है।
तीरथगढ़ झरना और कांगेर घाटी नेशनल पार्क – रामायण काल से जुड़े माने जाते हैं।
सीता गुफा, राम कुंड और तपोवन – जहां भगवान राम और सीता के ठहरने की कथाएं हैं।
दंडकारण्य तक कैसे पहुंचे?
अगर आप भगवान राम के वनवास काल की झलक अपने सामने देखना चाहते हैं, तो बस्तर की यात्रा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। छत्तीसगढ़ सरकार ने यहां ‘राम वन गमन पथ’ नाम से एक विशेष धार्मिक पर्यटन सर्किट विकसित किया है, जो अयोध्या से लेकर श्रीलंका तक फैले 248 पौराणिक स्थलों को आपस में जोड़ता है। इस सर्किट में बस्तर का दंडकारण्य वन प्रमुख स्थान रखता है, जहां से रामायण के कई महत्वपूर्ण प्रसंग जुड़े हैं। यहां आकर पर्यटक न केवल धार्मिक अनुभूति प्राप्त करते हैं, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी नज़दीक से अनुभव कर सकते हैं।
हवाई मार्ग: रायपुर का स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा है। रायपुर से बस्तर की दूरी लगभग 264 किमी है।
सड़क मार्ग: रायपुर से टैक्सी या निजी वाहन द्वारा आसानी से बस्तर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग: रायपुर से जगदलपुर के लिए कई ट्रेनें चलती हैं, जो आपको सीधे दंडकारण्य क्षेत्र तक पहुंचाती हैं।
दंडकारण्य सिर्फ एक जंगल नहीं, बल्कि रामायण काल की जीवित गवाही है। यहीं भगवान राम ने अपने वनवास के दिन बिताए और धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष की शुरुआत की थी। आज भी यहां के लोगों की संस्कृति, उत्सव और परंपराओं में राम की भक्ति और दिवाली की रोशनी झलकती है।