इस दिन से भगवान विष्णु चले जाएंगे विश्राम पर, 4 महीने के लिए बंद हो जाएंगे सभी शुभ कार्य
punjabkesari.in Tuesday, Jul 01, 2025 - 10:25 AM (IST)

देवशयनी एकादशी जिसे आषाढ़ शुक्ल एकादशीभी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार बहुत ही पवित्र तिथि मानी जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के शयन यानी सोने की शुरुआत का प्रतीक होता है। इस दिन से लेकर अगले चार महीनों तक सभी शुभ और मांगलिक कार्य जैसे शादी, गृह प्रवेश, मुंडन आदि निषिद्ध माने जाते हैं। यहां जानिए इसके बाद विष्णु जी क्यों जाते हैं पाताल लोक

चार महीने के लिए सो जाएंगे भगवान विष्णु
मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर (समुद्र) में शेषनाग की शैय्या पर चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं। इस दौरान देवी-देवता भी विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन धीमा हो जाता है। इसलिए इस समय को अध्यात्म, तप, भक्ति और नियमों के पालन का समय माना गया है। भगवान विष्णु के शयन में चले जाने से कोई भी शुभ कार्य अधूरा और निष्फल माना जाता है। इसीलिए देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) तक विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, नई व्यापारिक शुरुआत करने की मनाही होती है।
देवशयनी एकादशी व्रत का फल और महत्व
देवशयनी एकादशी का व्रत करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। इस दिन यदि भगवान श्रीहरि विष्णु का विधिपूर्वक पूजन और व्रत किया जाए, तो जीवन के सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। मन की अशुद्धियां दूर होती हैं और आत्मा को शुद्धि की ओर ले जाया जाता है। इस व्रत से जीवन में आ रही परेशानियां खत्म होने लगती हैं और मानसिक तनाव से राहत मिलती है। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से यह व्रत करता है, तो उसके जीवन में बन रहे दुर्घटनाओं के योग भी टल जाते हैं। साथ ही यह व्रत सद्बुद्धि, संयम और मानसिक शांति प्रदान करता है।

देवशयनी एकादशी पर करें ये उपाय
-भगवान विष्णु को पीले फूल और पीली मिठाई अर्पित करें।
-तुलसी दल चढ़ाकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
-गरीबों को पीले वस्त्र, चना दाल और गुड़ का दान करें।
-जल में चंदन और फूल डालकर स्नान करें, व्रत रखें।
-संकल्प लें कि चातुर्मास में मांस-मदिरा, तामसिक भोजन से दूर रहेंगे।
इन उपायों से घर में सुख-शांति बनी रहती है और विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
कुछ कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, तब वह सृष्टि से परे रहते हैं , जिसे प्रतीक रूप में पाताल लोक या अन्य दिव्य लोक भी कहा जाता है। इसका आध्यात्मिक अर्थ है कि ब्रह्मांड की गति अंदर की ओर यानी आत्मचिंतन और साधना की ओर हो जाती है। देवशयनी एकादशी एक बहुत ही शुभ और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो आत्म-शुद्धि और नियमों के पालन का समय है। यदि हम इस दिन को श्रद्धा और नियम से मनाएं, तो जीवन में सुख, शांति और समृद्धि अवश्य आती है।