अब सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं, बच्चों को भी हो रहा है मोतियाबिंद, जानिए इसके 5 बड़े कारण
punjabkesari.in Thursday, Sep 04, 2025 - 04:50 PM (IST)

नारी डेस्क: मोतियाबिंद (Cataract) को अब तक एक ऐसी बीमारी माना जाता था जो सिर्फ बुजुर्गों में होती है। लेकिन अब यह समस्या छोटे बच्चों में भी देखी जा रही है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें आंख का लेंस (lens) धुंधला हो जाता है, जिससे साफ दिखाई देना बंद हो जाता है। अगर बच्चों में समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो उनकी दृष्टि पर बुरा असर पड़ सकता है और स्थायी रूप से देखने की क्षमता भी जा सकती है। बच्चों में मोतियाबिंद होने के 5 मुख्य कारण।
जन्मजात मोतियाबिंद (Congenital Cataract)
कुछ बच्चों को यह बीमारी जन्म से ही होती है, जिसे जन्मजात मोतियाबिंद कहा जाता है। इसके दो प्रमुख कारण होते हैं।
आनुवांशिक कारण: अगर परिवार में किसी को पहले मोतियाबिंद की समस्या रही हो, तो यह बच्चे में भी आ सकती है। यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ सकता है।
गर्भावस्था के दौरान मां को संक्रमण होना: अगर मां को गर्भावस्था के दौरान किसी वायरस का संक्रमण हो जाए, जैसे कि रूबेला (Rubella), टॉक्सोप्लाज्मोसिस (Toxoplasmosis) या रेडिएशन एक्सपोजर, तो इसका असर बच्चे की आंखों पर पड़ सकता है और जन्म से ही लेंस में धुंधलापन आ सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान मां की सेहत और सावधानी बेहद जरूरी होती है, ताकि बच्चे को ऐसी समस्याओं से बचाया जा सके।
आंख में चोट लगना (Eye Injury)
बच्चे अक्सर खेलते समय गिर जाते हैं या किसी वस्तु से टकरा जाते हैं, जिससे उनकी आंखों में चोट लग सकती है। कभी-कभी यह चोट सीधी आंख के लेंस पर असर डालती है। जब लेंस को अंदर से नुकसान होता है, तो वह धीरे-धीरे धुंधला होने लगता है, जिससे मोतियाबिंद बनने की संभावना बढ़ जाती है। चोट गंभीर होने पर यह समस्या तुरंत भी आ सकती है या समय के साथ धीरे-धीरे विकसित हो सकती है। इसलिए बच्चों को खेलते समय सुरक्षित रखना और आंखों की चोट को हल्के में न लेना बहुत जरूरी है।
मेटाबॉलिक बीमारियां (Galactosemia)
कुछ बच्चों को जन्म से ही ऐसी बीमारियां होती हैं, जिनमें शरीर कुछ खास पोषक तत्वों को सही तरीके से पचा या नियंत्रित नहीं कर पाता। जैसे कि गैलेक्टोसीमिया (Galactosemia) और सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis)। इन बीमारियों की वजह से शरीर में कुछ हानिकारक तत्व जमा होने लगते हैं, जो आंखों के लेंस पर असर डालते हैं। इससे लेंस धीरे-धीरे धुंधला हो सकता है और मोतियाबिंद की स्थिति बन सकती है। इसलिए अगर बच्चे को किसी भी प्रकार की मेटाबॉलिक बीमारी हो, तो उसकी आंखों की नियमित जांच कराना बहुत जरूरी है।
दवाइयों का साइड इफेक्ट
अगर किसी बच्चे को किसी बीमारी के इलाज के लिए लंबे समय तक स्टेरॉयड जैसी दवाइयां दी जाती हैं, तो इनका असर उसकी आंखों के लेंस पर भी पड़ सकता है। स्टेरॉयड शरीर में सूजन कम करने का काम करते हैं, लेकिन इनका लगातार उपयोग लेंस को धीरे-धीरे धुंधला बना सकता है, जिससे मोतियाबिंद बनने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए बच्चों को कोई भी दवा लंबे समय तक देने से पहले डॉक्टर से पूरी सलाह लेना और आंखों की नियमित जांच कराना जरूरी होता है।
आंखों में संक्रमण (Eye Infection)
अगर बच्चों की आंखों में किसी तरह का गंभीर संक्रमण हो जाए और उसका समय पर इलाज न किया जाए, तो यह संक्रमण आंख के लेंस तक पहुंच सकता है। लेंस पर असर पड़ने से वह अपनी पारदर्शिता खो देता है और धीरे-धीरे धुंधला होने लगता है, जिससे मोतियाबिंद बनने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ संक्रमण इतने तेज़ होते हैं कि वे लेंस को स्थायी रूप से नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। इसलिए बच्चों की आंखों में अगर कोई जलन, लालिमा या सूजन दिखे, तो बिना देर किए नेत्र विशेषज्ञ से जांच करवाना बहुत जरूरी है।
बच्चों में मोतियाबिंद के लक्षण
मोतियाबिंद होने पर बच्चों की आंखों में कुछ साफ लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जिन्हें माता-पिता को गंभीरता से लेना चाहिए। जैसे कि नजर कमजोर होना, यानी बच्चा चीजों को साफ न देख पाए, आंखों में सफेदी या धुंधलापन दिखाई देना, आंखों का लाल होना या सूजन आना, और रोशनी की ओर प्रतिक्रिया कम होना, यानी बच्चा तेज रोशनी की तरफ देखने में रुचि न दिखाए। कई बार बच्चे की आंखें भटकी हुई भी लग सकती हैं, यानी दोनों आंखें सीधी दिशा में न होकर अलग-अलग दिशा में देखती हैं। अगर माता-पिता को ऐसा कोई भी लक्षण अपने बच्चे में दिखे, तो इसे नजरअंदाज न करें और तुरंत किसी योग्य नेत्र विशेषज्ञ (Eye Specialist) से जांच करवाएं, ताकि समय पर इलाज हो सके।
इलाज क्या है?
मोतियाबिंद का इलाज सर्जरी (ऑपरेशन) के जरिए किया जाता है। इसमें आंख के धुंधले लेंस को निकालकर उसके स्थान पर नया लेंस लगाया जाता है। बच्चों में यह प्रक्रिया समय पर करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि इससे उनकी देखने की क्षमता को बचाया जा सकता है।
मोतियाबिंद से बचाव के उपाय
मोतियाबिंद से बच्चों को बचाने के लिए कुछ जरूरी सावधानियां बरतनी बहुत जरूरी हैं। सबसे पहले, गर्भावस्था के दौरान मां को सही पोषण लेना चाहिए और अपनी नियमित स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए, ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे को संक्रमण या कोई समस्या न हो। खेलते-खेलते या किसी दुर्घटना से बच्चों की आंखों में चोट लगने से बचाना चाहिए। इसके अलावा, बच्चों की आंखों की नियमित जांच कराते रहना भी जरूरी है, ताकि किसी भी समस्या को समय रहते पहचाना जा सके। अगर बच्चे को कोई दवा दी जा रही है, खासकर लंबे समय तक, तो उसकी आंखों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में डॉक्टर से पूरी जानकारी लेना चाहिए।
मोतियाबिंद अब सिर्फ बुजुर्गों की नहीं, बच्चों की भी समस्या बन गई है। लेकिन अगर समय पर पहचान और सही इलाज हो जाए, तो इससे बचा जा सकता है। जागरूक रहें और बच्चों की आंखों की सेहत को प्राथमिकता दें।