नवरात्रि में कलश की स्थापना का शुभ मुहूर्त और क्या है इसके नियम?
punjabkesari.in Sunday, Sep 29, 2019 - 11:44 AM (IST)

आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा यानि आज से शारदीय नवरात्रि के शुभ पर्व की शुरूआत हो चुकी है। देवी आराधना का यह पर्व नवरात्रि साल में दो बार (चैत्र - शारदीय) मनाई जाती है, जो 9 दिनों तक चलती है। इन 9 दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के रूप की पूजा अर्चना की जाती है। वहीं कुछ लोग इस दौरान उपवास भी रखते हैं।
घर में सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिए इसी दिन कलश के साथ देवी दुर्गा की मूर्ती की स्थापना भी की जाती है। अगर स्थापना मुहूर्त के हिसाब से की जाए तो आपको इसका और भी फल मिलता है। चलिए आपको बताते हैं दुर्गा मां की मूर्ति व कलश की स्थापना का शुभ मुहूर्त।
कलश की स्थापना का शुभ मुहूर्त
मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए घट स्थापना यानी कलश की स्थापना हमेशा उचित मुहूर्त में ही करनी चाहिए। इस बार नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:16 से लेकर 7:40 तक है। साथ ही दिन में 11:48 से 12:35 पर भी कलश स्थापना कर सकते हैं। इसके अलावा 13.47 से 15.16, शाम को 18.15 से 19.46 और मध्य रात्रि 19.46 से 21.16 भी कलश स्थापना के लिए शुभ है।
ऐसे करें कलश स्थापना
कलश की स्थापना करते समय पहले नदी की रेत और जौ डालें। इसके बाद कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि डालकर 'ॐ भूम्यै नमः' मंत्र का जाप करें।
कलश स्थापना के नियम
-एक पाटे पर लाल व सफेद कपड़ा बिछाकर उसपर चावल से अष्टदल बनाकर इस पर जल से भरा कलश स्थापित करें।
कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं.
-कलश के पास 9 दिन तक अखंड दीप जरूर जलाएं।
-कलश का मुंह खुला ना रखें। उसे नारियल या किसी और चीज से ढक दें।
पहले दिन की जाती है मां शैलपुत्री की पूजा
नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी मां के अलग-अलग रूप को समर्पित होता है और हर स्वरुप की उपासना करने से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरुप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
देवी शैलपुत्री की जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां हुआ था इसलिए उन्हें शैलसुता भी कहा जाता हैं। नवदुर्गाओं में प्रथम देवी शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं, जिनसे वह पापियों का नाश करती हैं। वहीं बाएं हाथ में कमल का पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक है।
पूजा विधि
सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केसर से 'शं' लिखकर उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। फिर हाथ में लाल पुष्प 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।' मंत्र का जाप और देवी शैलपुत्री का जाप करें।