फैशन डिजाइनर बनना चाहती थी रिया लेकिन बन गई एसिड पीड़ितों की हमदर्द

punjabkesari.in Tuesday, Apr 02, 2019 - 07:10 PM (IST)

एसिड अटैक का दर्द क्या होता है यह तो वही जान सकता है जो इस खौफनाक मंजर से गुजर चुका हो। तेजाब से मिले जख्म तो शायद एक वक्त के बाद भर भी जाए लेकिन जब दुनिया वाले अजीब नजरों से देखना शुरू कर देते हैं तो जीना और भी मुश्किल हो जाता है। एसिड़ अटैक की ज्यादातर शिकार लड़कियां ही होती है, जो ना उनकी सूरत बिगाड़ता है बल्कि इससे पूरी जिंदगी खराब हो जाती है। मगर ऐसी लड़कियों के लिए प्रेरणा बनकर आई 26 साल की रिया शर्मा। रिया ना सिर्फ एसिड़ अटैक का शिकार हुई लड़कियों का इलाज करवाती हैं बल्कि वह उनके हक के लिए भी लड़ती है। चलिए आज हम आपको बताते हैं ग्लैमर की दुनिया छोड़ आखिर रिया कैसे बनी एसिड़ पीड़िताओं के लिए प्रेरणा।

 

फैशन डिजाइनर बनना चाहती थी रिया

दिल्ली के गुड़गांव में रहने वाली रिया शर्मा ना सिर्फ एसिड़ अटैक से जूझ रहीं लड़कियों को हौंसला देती हैं बल्कि वह इन महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए काम दिलाने की कोशिश भी करती हैं। उन्होंने गुड़गांव के ही एक स्कूल से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की है। इसके बाद वह फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने ब्रिटेन चली गईं लेकिन कोर्स में 2 साल बीत जाने के बाद भी रिया का मन इसमें नहीं लगा।

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ऐसे शुरू किया रिया ने यह सफर

रिया का पढ़ाई में ध्यान ना होने पर बातों-बातों में उनके प्रोफेसर ने उनसे पूछा कि वो क्या करना चाहती हैं? तब उन्‍होंने जवाब में कहा कि वो महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करना चाहती हैं लेकिन उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है। तभी उनके प्रोफेसर ने रिया को घर-घर जाकर सर्वे करने के लिए कहा।

एसिड़ अटैक महिलाओं पर किया सर्वे

इसके बाद रिया ने घर-घर जाकर रेप, एसिड अटैक जैसे कई मुद्दों पर रिसर्च की, जिस दौरान उन्हें यह जानकर काफी दुख हुआ कि कैसे मनचले लोग लड़कियों और महिलाओं पर एसिड फेंक देते हैं। इसके बाद रिया ने एसिड़ अटैक महिलाओं के लिए काम करने का फैसला किया लेकिन उन्हें इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिली। अगले दिन रिया ने अपने प्रोफेसर को एसिड अटैक पीड़िताओं की कुछ तस्वीरें दिखाईं और कहा कि वह इनके लिए काम करना चाहती हैं। उनके प्रोफेसर बहुत खुश हुए और उनको वीडियो कैमरा देते हुए कहा कि तुम भारत जाकर इस विषय पर डॉक्यूमेंट्री बनाओ। फिर क्या था रिया ने अपनी डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए भारत आ गई।

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यूं बनीं एसिड से जली लड़कियों का सहारा

भारत आकर रिया ने कई लड़कियों के इंटरव्यू लिए और इस दौरान एसिड़ पीड़ित लड़कियों से उनकी दोस्ती हो गई। वह उन पीड़िताओं की छोटी-छोटी जरूरतों को भी पूरा करने की कोशिश करने लगी और धीर-धीरे वह उन लड़कियों से भावनात्मक तौर पर जुड़ गई। इसके बाद देखते-देखते यह काम उनका जुनून बन गया।

इस घटना के बाद शुरू किया 'Make Love Not Scars'

एक बार वह डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए बंगलुरु के सरकारी हॉस्पिटल गईं थीं, जहां उन्होंने देखा कि हॉस्पिटल की जमीन, दीवार व बिस्तर सब जगह खून और मांस के टुकड़े पड़े हुए थे। यह देखकर वो काफी हैरान हो गई थी कि वहां पर डॉक्टर भी पर्याप्त संख्या में नहीं थे जबकि दूसरे स्टाफ को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उन मांस के टुकड़ों के बीच से ही लोग गुजर रहे थे। इस दर्द भरे मंजर को देखने के बाद रिया ने अपनी एक संस्था खोलने की शुरूआत की। उन्होंने अप्रैल 2014 को दिल्ली में अपनी संस्था 'Make Love Not Scars' के जरिए एसिड पीड़ितों की मदद करने का बीड़ा उठाया। इस संस्था के जरिए वह एसिड़ पीड़ित महिलाओं की जरूरतें पूरी करने के साथ-साथ उनके कानूनी मामलों को लड़ने और उनको मुआवजा दिलाने की कोशिश भी करती हैं।

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एसिड़ अटैक महिलाओं को देती हैं वोकेशनल ट्रेनिंग

उन्होंने एसिड अटैक से पीडितों महिलाओं के लिए एक सेंटर भी खोला है, जहां उन्हें वोकेशनल और स्किल ट्रेनिंग दी जाती है। इतना ही नहीं, यहां महिलाओं का आत्मविश्वास वापिस लाने के लिए उनकी काउंसलिंग भी की जाती है। इसके अलावा यहां महिलाओं को अंग्रेजी व कंप्यूटर की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि वह अपनी जिंदगी में कुछ कर सकें।

55 से ज्यादा एसिड पीड़िताओं से जुड़ चुकीं रिया

बता दें कि रिया एसिड़ से पीड़ित महिलाओं के लिए डांसिग, सिंगिंग, मेकअप वर्कशाप भी चलाती है। वहीं मेकअप आर्टिस्ट की मदद से वह महिलाओं को यह भी सिखाती हैं कि चेहरे को कवर कैसे करना है। वह अब तक 55 से भी ज्यादा एसिड़ पीड़िताओं के साथ जुड़ चुकीं है, जिसमें 6 साल से लेकर 65 साल की उम्र तक की महिलाएं शामिल है।

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कैसे करती हैं रिया की टीम काम

एसिड़ पीड़ितों के केस और उनसे जुड़े काम देखने के लिए रिया ने 5 लोगों की टी बनाई है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इनके  वॉलेंटियर मौजूद हैं, जो इनकी मदद करते हैं। इसके अलावा रिया की टीम ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क के साथ भी काम करती हैं, जिसके पूरे देश में अपने वकील होते हैं। इसके अलावा इनके पास 2 से 3 वकील हैं जो इन्हें लीगल मामलों में सलाह देते हैं और जिन पीड़ितों के पास वकील नहीं होती रिया की टीम उन्हें इसी सुविधा उपलब्ध करवाती है।

मुश्किलों भरा रहा सफर

यहां तक पहुंचने का रिया का सफर काफी मुश्किलों भरा था। उन्होंने बताया कि इतनी कामयाबी मिलने के बाद भी कई लोग उनको गंभीरता से नहीं लेते हैं और कहते हैं कि उनका यह काम ज्यादा दिन नहीं चलेगा। बावजूद इसके वह अपने इरादों से पीछें नहीं हटती। रिया बताती हैं कि काम उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय होती है क्योंकि ज्यादातर मामलों में कोर्ट के फैसलों में देरी हो जाती है। इससे पीड़ित को मुआवजा और उसका हक समय पर नहीं मिल पाता है। इसके चलते पीड़िताओं में निराशा पैदा होती है लेकिन वह अपनी पूरी कोशिश करती हैं कि उन्हें इंसाफ मिलें।

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Content Writer

Anjali Rajput

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