Pregnancy में पहला अल्ट्रासाउंड कब करवाना चाहिए? महिलाएं जान ले ये जरूरी जानकारी
punjabkesari.in Friday, Mar 28, 2025 - 12:53 PM (IST)

नारी डेस्क: प्रेग्नेंसी की शुरुआत में कई महत्वपूर्ण जांचों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। इन जांचों में सबसे महत्वपूर्ण अल्ट्रासाउंड है, जिसे विशेष रूप से प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में किया जाता है। इसे अक्सर "डेटिंग अल्ट्रासाउंड" या "प्राइमरी स्कैन" कहा जाता है। यह स्कैन गर्भावस्था की पुष्टि करने, नियत तारीख निर्धारित करने और भ्रूण के विकास की जांच करने के लिए किया जाता है।
पहला अल्ट्रासाउंड क्यों जरूरी है?
अल्ट्रासाउंड का पहला स्कैन आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 7 से 8 सप्ताह के बीच किया जाता है, हालांकि कुछ डॉक्टर इसे 6 सप्ताह से पहले भी कर सकते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य शिशु के विकास का सही आकलन करना होता है। प्रेग्नेंसी के इस शुरुआती समय में अल्ट्रासाउंड करना इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि गर्भावस्था के सही स्थिति का पता चल सके और किसी भी प्रकार की जटिलताओं का पहले ही पता चल सके।
अल्ट्रासाउंड से सबसे पहला फायदा यह होता है कि यह गर्भावस्था की पुष्टि करने में मदद करता है। इससे यह पता चलता है कि गर्भावस्था वास्तव में मौजूद है और भ्रूण का विकास सही दिशा में हो रहा है। अल्ट्रासाउंड के माध्यम से बच्चे के आकार का माप लेकर उसकी नियत तिथि (due date) का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। खासकर उन महिलाओं के लिए जो मासिक धर्म के अनियमित होते हैं, यह अल्ट्रासाउंड काफी मददगार साबित हो सकता है।
भ्रूण के दिल की धड़कन की जांच
एक और महत्वपूर्ण चीज जो अल्ट्रासाउंड द्वारा देखी जाती है, वह है भ्रूण के दिल की धड़कन। इससे यह पता चलता है कि भ्रूण के दिल की धड़कन सामान्य है या नहीं, जो गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में बहुत जरूरी होता है।
गर्भाशय के बाहर गर्भावस्था की जांच
अल्ट्रासाउंड गर्भाशय के बाहर गर्भावस्था (एटोपिक प्रेग्नेंसी) की पहचान करने में भी मदद करता है। यदि गर्भाशय के बाहर भ्रूण का विकास हो रहा है, तो यह स्थिति जीवन के लिए खतरे वाली हो सकती है। इसके अलावा, यह गर्भपात जैसी जटिलताओं के संकेत भी दे सकता है, जिससे समय रहते उचित उपचार लिया जा सकता है।
अल्ट्रासाउंड के प्रकार
ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड: यह अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के शुरुआती सप्ताहों में किया जाता है, जब भ्रूण का आकार छोटा होता है और स्पष्ट छवियां प्राप्त करने के लिए बेहतर दृश्य की आवश्यकता होती है। इसमें एक छोटी सी डिवाइस को योनि के माध्यम से प्रवेश कराया जाता है।
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ट्रांस एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड: इस प्रकार का अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के बाद के चरणों में किया जाता है, जब भ्रूण का आकार बढ़ जाता है और उसे बाहरी पेट की त्वचा से देखा जा सकता है। इसमें पेट पर जेल लगाकर एक डिवाइस (सोनोग्राफी) से चित्र लिए जाते हैं।
क्या उम्मीद करें?
ट्रांस एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड के लिए आपको मूत्राशय को भरा हुआ रखने के लिए कहा जा सकता है। यह इसलिए किया जाता है ताकि मूत्राशय का दबाव गर्भाशय पर पड़े और भ्रूण की छवियां साफ मिल सकें।
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पहला अल्ट्रासाउंड और गर्भावस्था की जटिलताओं की पहचान
गर्भावस्था के पहले अल्ट्रासाउंड का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि यह गर्भ के विकास की स्थिति का आकलन करने के साथ-साथ किसी भी संभावित जटिलताओं को समय रहते पहचान सकता है। इस स्कैन से यह सुनिश्चित किया जाता है कि भ्रूण सही स्थान पर है और उसका विकास सामान्य हो रहा है।
अल्ट्रासाउंड की सुरक्षा
अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित और दर्द रहित प्रक्रिया है जो ध्वनि तरंगों का उपयोग करके भ्रूण की छवियां बनाता है। यह पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से दर्दरहित होती है और इससे कोई भी नुकसान नहीं होता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को डरने की जरूरत नहीं होती।
दूसरा और तीसरा अल्ट्रासाउंड
दूसरा अल्ट्रासाउंड (मॉर्फोलॉजी स्कैन)
आमतौर पर गर्भावस्था के 18 से 22 सप्ताह के बीच यह अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इस दौरान शिशु के अंगों का विकास देखा जाता है, जैसे कि उसकी हड्डियों, मस्तिष्क, हृदय और अन्य महत्वपूर्ण अंगों का आकार और स्थिति। यह स्कैन शिशु के समग्र विकास का आकलन करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
तीसरा अल्ट्रासाउंड (गर्भावस्था की तीसरी तिमाही)
तीसरी तिमाही में, यानी 32 से 36 सप्ताह के बीच, यह अल्ट्रासाउंड शिशु की स्थिति, उसके विकास और उसकी गर्भाशय में स्थिति की जांच करने के लिए किया जाता है। इस दौरान यह भी पता चलता है कि शिशु का वजन कितना बढ़ा है और वह सही पोजीशन में है या नहीं।