Karwa Chauth 2025: करवा चौथ पर सास को क्या दिया जाता है? जानिए ‘बायना’ देने की परंपरा

punjabkesari.in Monday, Oct 06, 2025 - 02:32 PM (IST)

नारी डेस्क:  साल 2025 में करवा चौथ का व्रत शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। यह दिन हर सुहागन महिला के लिए बेहद खास होता है। महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र और दांपत्य सुख की कामना करती हैं। व्रत की शुरुआत सुबह सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ से होती है और रात को 8:13 बजे चंद्रोदय के बाद व्रत खोला जाता है। इस पावन अवसर पर सिर्फ पूजा ही नहीं, बल्कि कई रस्में निभाई जाती हैं, जिनमें से एक अहम परंपरा है ‘बायना’ देने की।

क्या है करवा चौथ का ‘बायना’?

करवा चौथ की पूजा में ‘बायना’ का विशेष महत्व होता है। यह एक पारंपरिक रिवाज है जिसमें बहू अपनी सास को सम्मान और प्रेम स्वरूप कुछ उपहार देती है। इसे “बायना देना” कहा जाता है। यह न केवल श्रद्धा और स्नेह का प्रतीक है, बल्कि इस रिवाज के माध्यम से बहू अपनी सास से आशीर्वाद प्राप्त करती है। परंपरानुसार सास भी अपनी बहू को कुछ उपहार देती है, जिससे दोनों के बीच प्यार और संबंध की मिठास बनी रहती है।

बायना में क्या-क्या दिया जाता है?

करवा चौथ के बायना में साड़ी, सुहाग की सामग्री और मिठाइयां देना शुभ माना जाता है। बहू एक थाल को सुंदरता से सजाती है और उसमें यह सामान रखती है 

साड़ी या सूट

चूड़ी, बिंदी, बिछिया, पायल

मेंहदी, सिंदूर, काजल

मिठाई, नारियल और फल

इन सभी चीजों का अपना धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व होता है। ये सौभाग्य, प्रेम और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करती हैं। पूजा के बाद बायना सास को दिया जाता है, जिससे माना जाता है कि बहू को सदा सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

बायना देने का सही समय और तरीका

बायना देने का सबसे शुभ समय पूजा-अर्चना और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद माना जाता है। परंपरा के अनुसार, जब बहू चांद देखकर व्रत खोलती है, तो उसके बाद वह अपनी सास के पैर छूकर आशीर्वाद लेती है और बायना देती है। यह परंपरा सास के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और प्रेम का प्रतीक है। बायना देते समय मन में शुभ भाव और श्रद्धा होनी चाहिए, तभी इसका पूर्ण फल मिलता है।

अगर सास न हो तो किसे दिया जाए बायना?

अगर किसी महिला की सास जीवित नहीं हैं या दूर रहती हैं, तो वह बड़ी ननद, जेठानी या किसी बुजुर्ग सुहागिन स्त्री को भी बायना दे सकती है। यह कार्य धार्मिक दृष्टि से उतना ही शुभ माना जाता है। यह परंपरा केवल वस्तु देने की नहीं, बल्कि सुख, समृद्धि और आशीर्वाद पाने की भावना से जुड़ी है। करवा चौथ पर बायना देना परिवारिक रिश्तों को मजबूत करने और वैवाहिक जीवन में सकारात्मकता लाने का सुंदर माध्यम है।

क्यों जरूरी है बायना देना?

कहा जाता है कि बायना के बिना करवा चौथ का पर्व अधूरा माना जाता है। यह एक ऐसा रिवाज है जो पीढ़ियों से चला आ रहा है और सास-बहू के संबंधों को और मजबूत करता है। इस परंपरा के माध्यम से बहू न केवल अपनी श्रद्धा व्यक्त करती है बल्कि अपने जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और प्रेम का आशीर्वाद भी आमंत्रित करती है।

 करवा चौथ सिर्फ व्रत का दिन नहीं बल्कि भावनाओं, रिश्तों और परंपराओं का उत्सव है। ‘बायना’ इस त्योहार की आत्मा है, जो सास-बहू के रिश्ते में सम्मान, स्नेह और आशीर्वाद का पुल बनाता है। इसलिए इस करवा चौथ, जब आप चांद का दीदार करें, तो अपने बायना की थाली भी श्रद्धा से सजाएं और दिल से आभार व्यक्त करें उस रिश्ते के लिए जो घर की नींव को मजबूत बनाता है।  

 


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Content Editor

Priya Yadav

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