करवा चौथ की पूजा में क्यों मिट्टी के करवे का किया जाता है उपयोग, जानें कैसे शुरू हुई परंपरा?
punjabkesari.in Tuesday, Sep 30, 2025 - 03:06 PM (IST)

नारी डेस्क : भारत में करवा चौथ का त्योहार विवाहित महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए उपवास रखती हैं। करवा चौथ की पूजा में मिट्टी के करवे (घड़े) का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं, आखिर पूजा में इसका उपयोग क्यों किया जाता है और यह परंपरा कैसे शुरू हुई।
करवा का धार्मिक महत्व
करवा का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। "करवा" का अर्थ है मिट्टी का छोटा घड़ा या पात्र, जिसका उपयोग करवा चौथ की पूजा में जल भरने और चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए किया जाता है। इसे समृद्धि, पवित्रता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि करवा वैवाहिक जीवन में स्थिरता और पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती का प्रतीक है। इसी कारण सुहागिन महिलाएं इसे पूजकर अखंड सौभाग्य और दांपत्य सुख की कामना करती हैं।
परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?
इतिहासकारों और लोककथाओं के अनुसार, करवा चौथ का त्योहार प्राचीनकाल से मनाया जा रहा है। पहले के समय में महिलाएं मिट्टी के बने करवे में अनाज या पानी भरकर अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों को देती थीं। इसका उद्देश्य आपसी सहयोग और बहनापा बढ़ाना था। सैनिक परिवारों में महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और सुरक्षित लौटने की कामना करती थीं। करवा में अनाज भरकर देने की परंपरा से समाज में साझेदारी और सहयोग की भावना बनी रहती थी।
करवे का प्रतीकात्मक महत्व
जल से भरा करवा : जीवन और ऊर्जा का प्रतीक।
मिट्टी का करवा : सादगी, पवित्रता और धरती से जुड़ाव का प्रतीक।
करवा का आदान-प्रदान : महिलाओं के बीच प्रेम, सहयोग और एकता का प्रतीक।
आज भी क्यों निभाई जाती है यह परंपरा?
आज भी करवा चौथ की पूजा में मिट्टी के करवे का उपयोग विशेष महत्व रखता है। भले ही आधुनिक समय में बाजार में सजावटी स्टील, पीतल या चांदी के करवे उपलब्ध हों, लेकिन मिट्टी का करवा आज भी शुभ और पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि मिट्टी का करवा धरती माता का आशीर्वाद दिलाता है और इससे पूजा अधिक पूर्ण, सच्ची और फलदायी मानी जाती है। यही कारण है कि बदलते समय में भी महिलाएं इस परंपरा को आज तक निभाती आ रही हैं।
करवा चौथ सिर्फ व्रत और पूजा का दिन नहीं है, बल्कि यह विश्वास, त्याग और प्रेम का प्रतीक है। मिट्टी के करवे का प्रयोग इस त्योहार को और भी पवित्र बना देता है। यही कारण है कि प्राचीन परंपराओं से जुड़ा यह छोटा-सा पात्र आज भी हर करवा चौथ की पूजा में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाता है।