रसौली से भरी है बच्चेदानी अगर महिला को लगातार हो रही ये दिक्कत, घर का देसी उपचार जान लें
punjabkesari.in Saturday, Oct 11, 2025 - 09:09 PM (IST)
नारी डेस्कः महिलाओं में (Uterus) बच्चेदानी में रसोलियां या गांठें यानी फाइब्रॉइड्स (Fibroids)आज एक आम लेकिन गंभीर समस्या बन चुकी हैं। ये गैर-कैंसरस होती हैं, मगर बढ़ने पर पेट दर्द, अत्यधिक ब्लीडिंग और गर्भधारण में दिक्कत जैसी परेशानियां पैदा कर सकती हैं। बदलती जीवनशैली, हार्मोन असंतुलन और तनाव इसके प्रमुख कारण हैं। सही समय पर जांच और संतुलित जीवनशैली अपनाकर इनसे बचाव किया जा सकता है। आइए जानते हैं बच्चेदानी में रसोलियां बनने के कारण, लक्षण, जरूरी टेस्ट और बचाव के उपाय विस्तार से।
बच्चेदानी में रसोलियां (Uterine Fibroids) क्या होती हैं?
बच्चेदानी में बनने वाली रसोलियां या गांठें मांसपेशियों की असामान्य वृद्धि होती हैं। ये गैर-कैंसरस (Non-Cancerous) होती हैं, लेकिन आकार या संख्या बढ़ने पर तकलीफ दे सकती हैं। इन्हें मायोमा (Myoma) या लीयोमायोमा (Leiomyoma) भी कहा जाता है।
रसोलियां होने के कारण
बच्चेदानी में रसोलियां बनने के कई कारण हो सकते हैं जैसेः
हार्मोनल असंतुलन (Hormonal imbalance) — एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का असामान्य स्तर।
वंशानुगत कारण (Genetic factors) — परिवार में किसी को फाइब्रॉइड्स होना।
मोटापा (Obesity) — शरीर में अतिरिक्त वसा हार्मोन स्तर बढ़ाती है।
देर से शादी या गर्भधारण में देरी।
अधिक तनाव और अनियमित जीवनशैली।
अधिक मांसाहार, जंक फूड, या हार्मोन युक्त आहार का सेवन।
लिवर की कार्यक्षमता में गड़बड़ी जिससे हार्मोन का संतुलन बिगड़ता है।
बच्चेदानी में रसौली होने के प्रमुख लक्षण (Symptoms)
अत्यधिक या लंबा पीरियड ब्लीडिंग (Heavy bleeding)
पेट या पेल्विक एरिया में भारीपन या दर्द
पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग या स्पॉटिंग
कमर या जांघों में दर्द
बार-बार पेशाब आने की समस्या
गर्भधारण में कठिनाई या बार-बार गर्भपात
पेट का फूलना या भारी लगना
यदि आपको ये संकेत दिखें, तो डॉक्टर से तुरंत जांच कराएं ।

रसौली पता लगाने के जरूरी टेस्ट और जांचें
रसोलियों का पता लगाने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित जांचें करवाने की सलाह देते हैं।
पेल्विक अल्ट्रासाउंड (Pelvic Ultrasound)– सबसे पहली और आसान जांच जिससे गांठों का आकार और स्थान पता चलता है।
ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड (TVS)– योनि के माध्यम से की जाने वाली अल्ट्रासाउंड, जो छोटे फाइब्रॉइड्स तक दिखा देती है।
एमआरआई स्कैन (MRI)– अगर फाइब्रॉइड्स बहुत बड़ी या जटिल हैं, तो यह जांच मददगार होती है।
हिस्टरोस्कोपी (Hysteroscopy)– एक पतली कैमरा नली से गर्भाशय के अंदर की सतह देखी जाती है।
बायोप्सी (Biopsy)– अगर कैंसर की संभावना हो तो ऊतक का सैंपल लेकर जांच की जाती है।
बचाव और घरेलू उपाय (Prevention & Lifestyle Tips)
रसोलियों से बचाव के लिए जीवनशैली में ये बदलाव करें।
वजन नियंत्रित रखें — मोटापा हार्मोन असंतुलन को बढ़ाता है।
हरी सब्जियां, फल और फाइबर युक्त भोजन ज़्यादा खाएं।
हार्मोन युक्त या प्रोसेस्ड फूड (जैसे मीट, सॉफ्ट ड्रिंक) से बचें।
रोज़ाना 30 मिनट व्यायाम या योग करें — खासकर भुजंगासन, मंडूकासन, और सेतुबंधासन लाभदायक हैं।
तनाव कम करें — ध्यान (Meditation) और पर्याप्त नींद लें।
नियमित गाइनोकॉलॉजिकल चेकअप करवाएं, खासकर 30 वर्ष के बाद।
आयरन और विटामिन D की कमी पूरी करें, क्योंकि ये रसोलियों से जुड़े होते हैं।
रसौलियों का उपचार (Treatment)
रसोलियों का इलाज उनके आकार, लक्षण और उम्र पर निर्भर करता है।
दवाइयों से हार्मोनल नियंत्रण
एम्बोलाइजेशन (Uterine Artery Embolization) – खून की सप्लाई रोककर गांठों को छोटा किया जाता है।
मायोमेक्टॉमी (Myomectomy) – केवल रसोलियां हटाई जाती हैं, बच्चेदानी नहीं।
हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy) – गंभीर मामलों में पूरी बच्चेदानी हटानी पड़ सकती है।
महिलाओं को खास सलाह
35 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं को हर 6 महीने में एक बार पेल्विक अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए।
किसी भी अनियमित ब्लीडिंग को “सामान्य पीरियड समस्या” समझकर नज़रअंदाज़ न करें।
बच्चेदानी में रसोलियों के घरेलू इलाज (Home Remedies for Uterine Fibroids)
1. लहसुन (Garlic)
लहसुन में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो हार्मोन असंतुलन को ठीक करने में मदद करते हैं। कैसे खाएंः रोज़ सुबह खाली पेट 2-3 लहसुन की कलियां पानी के साथ निगलें। चाहें तो लहसुन का रस शहद में मिलाकर भी ले सकती हैं।
2. अलसी के बीज (Flax Seeds)
अलसी में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड और लिग्नान्स एस्ट्रोजन को नियंत्रित करते हैं, जिससे फाइब्रॉइड्स का आकार बढ़ने से रुकता है।
कैसे खाएं: 1 चम्मच पिसी हुई अलसी सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लें। सलाद या दही में मिलाकर भी खा सकते हैं।
3. नींबू और शहद (Lemon & Honey)
नींबू का रस शरीर को डिटॉक्स करता है और हार्मोन बैलेंस करने में मदद करता है।
कैसे लें: आधे नींबू का रस और 1 चम्मच शहद गुनगुने पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट पिएं।
4. गिलोय और अशोक का काढ़ा
आयुर्वेद में अशोक की छाल और गिलोय गर्भाशय को मजबूत बनाने और सूजन कम करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
कैसे तैयार करें: 1 गिलास पानी में 1 चम्मच अशोक छाल पाउडर और 1 चम्मच गिलोय डालकर आधा रहने तक उबालें। इसे छानकर रोज़ सुबह खाली पेट पिएं।
5. त्रिफला चूर्ण
त्रिफला शरीर से विषैले तत्व निकालता है और हार्मोनल संतुलन बनाता है।
कैसे लें: रात को सोने से पहले 1 चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी से लें।
6. हल्दी (Turmeric)
हल्दी में मौजूद कर्क्यूमिन (Curcumin) फाइब्रॉइड्स के विकास को रोकने में मददगार है।
कैसे लें: 1 गिलास गुनगुने दूध में ½ चम्मच हल्दी पाउडर मिलाकर रोज़ पिएं।
7. योग और प्राणायाम
रसोलियों में नियमित योगासन बहुत असरदार होते हैं।
भुजंगासन (Cobra Pose)
सेतुबंधासन (Bridge Pose)
पवनमुक्तासन (Wind-relieving Pose)
अनुलोम-विलोम और कपालभाति
ये आसन गर्भाशय में रक्त प्रवाह सुधारते हैं और हार्मोन बैलेंस करते हैं।
सावधानी
अगर रसोलियां बहुत बड़ी हैं या लगातार दर्द और ब्लीडिंग हो रही है, तो केवल घरेलू इलाज पर निर्भर न रहें।
किसी भी काढ़े या आयुर्वेदिक दवा को अपनाने से पहले गायनेकोलॉजिस्ट या आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लें।

