बच्चों की आंखों की दुश्मन है ये Eye Drop, इसका ज्यादा इस्तेमाल बना सकता है अंधा
punjabkesari.in Monday, May 19, 2025 - 05:16 PM (IST)

नारी डेस्क: एम्स दिल्ली में 10 साल की उम्र तक के और शुष्क क्षेत्रों से आने वाले बच्चों में ग्लूकोमा से पीड़ित होने के मामले दर्ज किए गए हैं, डॉक्टरों का कहना है कि इसका कारण बिना देखरेख के नेत्र संबंधी एलर्जी के इलाज के लिए स्टेरॉयड-आधारित आई ड्रॉप्स का लंबे समय तक इस्तेमाल है। डॉक्टरों ने कहा कि इनमें से लगभग आधे मामले ग्लूकोमा के उन्नत चरणों में अस्पताल पहुंचते हैं, उन्होंने ऐसे आई ड्रॉप्स के विवेकपूर्ण और निगरानी वाले इस्तेमाल की जरूरत पर बल दिया।
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स्टेरॉयड से जा सकती है आंख की रोशनी
एम्स के आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज में ग्लूकोमा यूनिट के प्रभारी प्रोफेसर डॉ तनुज दादा ने जोर देकर कहा कि स्टेरॉयड के किसी भी लंबे समय तक इस्तेमाल से ग्लूकोमा से अंधापन हो सकता है। आई ड्रॉप्स, स्किन क्रीम, नेजल इनहेलर, टैबलेट और इंजेक्शन जैसे विभिन्न रूपों में इस्तेमाल किए जाने वाले स्टेरॉयड इंट्राओकुलर प्रेशर बढ़ा सकते हैं जिससे ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है। डॉ. कहा- " एम्स आरपी सेंटर में हर महीने, हमें राजस्थान और हरियाणा जैसे शुष्क क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों से 10-15 साल की उम्र के बच्चे स्टेरॉयड प्रेरित ग्लूकोमा के उन्नत चरणों से पीड़ित मिलते हैं।" जब इन क्षेत्रों में बच्चों की आंखों में धूल और पराग के कारण लालिमा और जलन होती है, तो वे स्थानीय गांव के डॉक्टर के पास जाते हैं जो स्टेरॉयड-आधारित आई ड्रॉप लिखते हैं जो कुछ समय के लिए लक्षणों को कम कर देते हैं।लेकिन जब लक्षण फिर से उभर आते हैं, तो वे फिर से वही आई ड्रॉप लेते हैं और बिना किसी निगरानी के उनका उपयोग करते रहते हैं जिससे ग्लूकोमा विकसित होता है"।
स्टेरॉयड इंजेक्शन को लेकर भी चेतावनी जारी
डॉक्टर ने कहा- चूंकि शुरुआत में ग्लूकोमा के कोई लक्षण नहीं होते हैं, इसलिए ये बच्चे अक्सर बहुत उन्नत चरणों में गंभीर दृश्य हानि या यहां तक कि अंधेपन के साथ हमारे पास आते हैं। इसी तरह अस्थमा, फेफड़ों की पुरानी बीमारियों और एलर्जिक राइनाइटिस और साइनसाइटिस के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इनहेलर से आंखों का दबाव बढ़ सकता है और पहले से ही इस बीमारी से पीड़ित मरीजों में ग्लूकोमा भी खराब हो सकता है। दिल्ली के आरएंडआर अस्पताल में नेत्र विज्ञान के प्रोफेसर और प्रमुख ब्रिगेडियर डॉ. संजय के मिश्रा ने गोरी त्वचा पाने के लिए त्वचा संबंधी स्टेरॉयड क्रीम के इस्तेमाल और एथलीटों में मांसपेशियों के निर्माण के लिए स्टेरॉयड इंजेक्शन के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि इससे बहुत गंभीर प्रकार का ग्लूकोमा हो सकता है। उन्होंने कहा- "चेहरे और आंखों के आसपास इस्तेमाल की जाने वाली स्टेरॉयड युक्त क्रीम से ग्लूकोमा हो सकता है और लोगों को बहुत सावधान रहना चाहिए।" उन्होंने जोर देकर कहा कि स्टेरॉयड-आधारित आई ड्रॉप और क्रीम का इस्तेमाल कभी भी योग्य डॉक्टर के पर्चे के बिना नहीं करना चाहिए।
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ग्लूकोमा की जांच करवाने पर जोर
डॉक्टरों ने कहा कि छह सप्ताह से अधिक समय तक किसी भी रूप में स्टेरॉयड लेने वाले रोगियों को ग्लूकोमा की जांच करानी चाहिए। उन्होंने कहा- "ग्लूकोमा दृष्टि का एक मूक चोर है क्योंकि यह बिना किसी लक्षण के बढ़ता है, जिससे नियमित रूप से आंखों की जांच महत्वपूर्ण हो जाती है, खासकर 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए या मधुमेह, उच्च रक्तचाप या बीमारी के पारिवारिक इतिहास जैसे जोखिम वाले कारकों के लिए।" आरपी सेंटर में सामुदायिक नेत्र विज्ञान के प्रोफेसर और प्रभारी अधिकारी डॉ प्रवीण वशिष्ठ ने देश भर में स्क्रीनिंग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। डॉ वशिष्ठ ने कहा- "ग्लूकोमा से पीड़ित अधिकांश लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें यह है। हमें प्राथमिक देखभाल स्तर पर अधिक जागरूकता और स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की आवश्यकता है।" उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ग्लूकोमा का जल्द पता लगाना और उपचार शुरू करना इस बीमारी से अंधेपन को रोकने की कुंजी है।