छोटे बच्चों के दिमाग, फेफड़ों और दिल में मिल रहा माइक्रोप्लास्टिक: जानें इससे होने वाले खतरे
punjabkesari.in Tuesday, Jun 17, 2025 - 02:50 PM (IST)

नारी डेस्क: एक नई रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic) जैसे सूक्ष्म प्लास्टिक कण छोटे बच्चों के शरीर के अहम अंगों – जैसे कि दिमाग, फेफड़े और दिल में पाए जा सकते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है।
क्या है माइक्रोप्लास्टिक और यह कैसे शरीर में पहुंचता है?
माइक्रोप्लास्टिक ऐसे छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर से भी कम होता है। ये हवा, पानी, खाने और यहां तक कि मेडिकल उपकरणों के जरिए भी शरीर में पहुंच सकते हैं। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि प्रेग्नेंट महिलाओं के शरीर में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक प्लेसेंटा (गर्भनाल) के जरिए भ्रूण तक पहुंच सकता है। इसका मतलब यह है कि बच्चा जन्म से पहले ही इन हानिकारक कणों के संपर्क में आ सकता है।
अध्ययन में क्या पाया गया?
एक वैज्ञानिक अध्ययन में प्रेग्नेंट चूहों को माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में लाया गया। ये कण चूहों के शरीर में सांस के जरिए प्रवेश कर गए और बाद में यही कण उनके बच्चों के शरीर में भी पाए गए। इससे यह साफ होता है कि माइक्रोप्लास्टिक गर्भ में पल रहे बच्चे को भी प्रभावित कर सकता है।
ये भी पढ़ें: कैंसर से बचाव के लिए रोजाना पीएं ये 3 ताकतवर ड्रिंक्स, डॉक्टर ने भी दी सलाह
माइक्रोप्लास्टिक से बच्चों को होने वाले खतरे
दिमाग और ब्लड सर्कुलेशन पर असर
माइक्रोप्लास्टिक दिमाग और खून के बीच मौजूद सुरक्षा परत (Blood Brain Barrier) को पार कर जाता है। इससे ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है और दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है।
कैंसर का खतरा: इन सूक्ष्म कणों के लंबे समय तक शरीर में रहने से सेल्स डैमेज होते हैं और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
शरीर में सूजन (Inflammation): माइक्रोप्लास्टिक शरीर में Reactive Oxygen Species (ROS) छोड़ता है, जिससे सूजन, जलन और अन्य सूक्ष्म समस्याएं हो सकती हैं। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को भी कमजोर कर सकता है।
हार्मोनल असंतुलन: माइक्रोप्लास्टिक में मौजूद कुछ रसायन शरीर के हॉर्मोन्स के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं। इसे एंडोक्राइन डिसरप्टर कहा जाता है, जो बच्चों की शारीरिक वृद्धि और मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है।
विशेषज्ञों की राय
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसे लेकर गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि यह केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है, खासकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए।