अजीब मामला: 70 साल से मशीन में कैद है ये शख्स, लोहे के फेफड़ों से ले रहा है सासें
punjabkesari.in Saturday, Sep 02, 2023 - 05:58 PM (IST)
organs transplants की कहानियां तो हम सब ने सुनी हैं। किसी का दिल बदल दिया जाता है तो किसी का लीवर। लेकिन क्या आपने कभी लोहे के फेफड़ों के बारे में सुना है। अगर नहीं , तो चलिए हम आपको बताते हैं इसके बारे में। अमेरिका के पॉल अलेक्जेंडर दुनिया का पहला शख्स है, जो लोहे के फेफड़े के साथ जी रहे हैं। पॉल को पोलियो की वजह से लकवा मार गया था और 1928 में उन्हें ये डिवाइस लगाई थी, तब से इसी के साथ वे जी रहे हैं, आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इन खतरनाक हालातों के बाद भी उन्होंने जिंदगी से कभी हार नहीं मानी। आज वो 76 साल के हैं, लेकिन आज भी वो उतने ही जिंदादिल हैं और जिने की चाह उनमें आज भी है।
बता दें वो अपने मुंह से ही कई किताबें लिख चुके हैं। गार्जियन की एक रिपोर्ट के हिसाब से साल 1952 में जब पॉल महज 6 साल के थे, तब वो अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे। उस वक्त उनके गर्दन पर चोट लगी । उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया, क्योंकि दर्द काफी तेज था। डॉक्टरों ने जब उनका चेकअप किया तो पता चला कि उनके फेफड़ों में जमाव हो रहा है और इसके चलते उनको सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। शरीर में लकवा मार चुका था और उनकी सांसे थमती जा रही थीं। तभी डॉक्टर ने सूझबूझ दिखाते हुए जल्दी से ट्रेकियोटॉमी की। इस प्रक्रिया में गर्दन में एक छेद किया जाता है ताकि एक ट्यूब को व्यक्ति की श्वासनली के अंदर रखा जा सके।
70 साल से इसी मशीन के सहारे जिंदा
पॉल को 3 दिन के बाद होश आया। जब आंख खुली तो उन्होंने देखा कि वे एक लोहे की मशीन के अंदर हैं। इसमें मेडिकल की भाषा में आयरन लंग्स मशीन कहते हैं। ये मशीन लकवाग्रस्त मरीजों के लिए वरदान है। ये मरीज के फेफड़ों में ऑक्सीजन भरने का काम करती है ताकि वो शख्स जिंदा रह सके। हालांकि हमेशा इस मशीन में कैद रहना आसान काम नहीं है। मगर पॉल अलेक्जेंडर 70 साल से इसी मशीन के सहारे जिंदा हैं। उन्होंने कुल 18 महीने अस्पताल में बिताए। तब जाकर निकल पाए और आज भी इसी मशीन के अंदर कैद रहते हैं।
आप वास्तव में कुछ भी कर सकते हैं...
इतना कुछ होने के बाद किसी का भी जिंदगी से उठ जाएगा पर पॉल बहुत ही जिंदादिल हैं। उन्होंने अभी तक जिंदगी की डोर थाम कर रखी हुई है। उनके अंदर जुनून है। उन्होंने हायर स्टडीज करने की सोची लेकिन कॉलेज उनकी हालत देखकर उन्हें रिजेक्ट करते रहें। आखिरकार बहुत सी कोशिशों के बाद उन्हें डलास की एक यूनिवर्सिटी में उन्हें एडमिशन मिला और उन्होंने लॉ की डिग्री भी ला। अब वह वकील हैं और कोर्ट के काम भी करते हैं। उन्होंने मुंह से ही अपनी आत्मकथा ‘My Life in an Iron Lung’ लिखी है।