नई सोच! पति राज कौशल की अर्थी उठा मंदिरा बेदी ने तोड़ी बरसों पुरानी रूढ़िवादी परंपरा
punjabkesari.in Thursday, Jul 01, 2021 - 01:23 PM (IST)
आज भारत में बेशक लड़कियों को बराबर का समझता हो लेकिन लोग अब भी कईं रीति रिवाज में चंगुल में फंसे हुए हैं। आज भी कुछ परंपराएं बेटियों नहीं बल्कि बेटें ही निभा सकते हैं। जैसे पार्थिव शरीर को कंधा और मुखाग्नि देना। आपने कितनी बार देखा होगा कि आज भी महिलाओं को अंतिम संस्कार में साथ नहीं ले जाया जाता।
मगर, हाल ही में एक्ट्रेस मंदिरा बेदी ने कुछ ऐसा कर दिखाया जो हर किसी के लिए मिसाल है। दरअसल, एक्ट्रेस मंदिरा बेदी के पति राज कौशल हार्ट अटैक से दुनिया को अलविदा कह गए जोकि बेहद दुख भरी खबर थी। सोशल मीडिया पर राज कौशल के अंतिम संस्कार की कुछ तस्वीरें नजर आईं, जिसमें मंदिरा बेदी ने सालों पुरानी प्रथा तोड़ते हुए अपने पति की अर्थी उठाते हुए दिखीं।
मंदिरा बेदी ने तोड़ी बरसों पुरानी रूढ़िवादी परंपरा
हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार, पार्थिव शरीर को कंधा परिवार का बड़ा बेटा या कोई भी पुरुष देता है। अर्थी को कंधा देते समय वह एक हात में मिट्टी का घड़ा पकड़ता है, जिसे क्रियाकर्म के दौरान फोड़ा जाता है जबकि मुखाग्नि भी पुरुष ही देता है। मगर, मंदिरा बेटी एक हाथ में घड़ा पकड़े हिए खुद पति के पार्थिव शरीर को एक हाथ से पकड़े हुए नजर आईं। यही नहीं, उन्होंने पति राज कौशल का अंतिम संस्कार कर नम आंखों से अलविदा भी कहा।
महिलाएं क्यों नहीं दे सकती अर्थी को कंधा
माना जाता है कि श्मशान में अतृप्त मृत आत्माएं घूमती रहती हैं। वहीं, महिलाएं व बच्चें नाजुक दिल के होते हैं इसलिए उन्हें श्मशान में जाना वर्जित किया गया है।
घर तक ही क्यों सीमित महिलाएं?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शवयात्रा में शामिल होने, कंधा और मुखाग्नि देने जैसे कर्मकांड पुरुष ही कर सकते हैं।महिलाओं की भूमिका घर तक ही सीमित है जबकि आज की नारी इस बरसों पुरानी रूढ़िवादी परंपरा को तोड़कर आगे बढ़ रही हैं।
यहां सवाल उठता है कि इसे परंपरा या सामाजिक नियमों-कायदों का उल्लंघन क्यों मानें जाए? जिस घर में कोई संतान ना हो या सिर्फ बेटियां ही हो, वहां पुरुष नातेदारी की तलाश क्यों की जाए? इससे ज्यादा बेहतर होगा कि नारी इस परंपरा का वाहक बने।