महाकुंभ मेला 2025: संगम तट पर उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब, देखें तसवीरें
punjabkesari.in Tuesday, Jan 14, 2025 - 03:53 PM (IST)
नारी डेस्क: 2025 का महाकुंभ मेला, जिसे पृथ्वी पर सबसे बड़ा आयोजन माना जाता है, सोमवार को पौष पूर्णिमा के शुभ अवसर पर शुरू हो गया। यह 45 दिनों तक चलने वाला मेला लाखों श्रद्धालुओं को संगम तट पर आकर्षित करता है। इस बार लगभग 1.5 करोड़ (15 मिलियन) श्रद्धालुओं के संगम पर पवित्र स्नान करने की संभावना है। संगम वह पवित्र स्थल है जहां गंगा, यमुना और काल्पनिक सरस्वती नदियां मिलती हैं। इस आयोजन के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
महाकुम्भ 2025 के पहले अमृत स्नान मकर संक्रांति के पावन अवसर पर नागा श्रद्धालुओं ने खींचा ध्यान और बने आकर्षण का केंद्र ✨🔱 pic.twitter.com/ZglpOvxesz
— MahaKumbh 2025 (@MahaaKumbh) January 14, 2025
पौष पूर्णिमा पर शुभारंभ
महाकुंभ मेला पौष पूर्णिमा के दिन 'शाही स्नान' के साथ शुरू होता है। इस बार का आयोजन और भी खास है क्योंकि यह एक दुर्लभ खगोलीय संयोग पर आधारित है, जो हर 144 साल में एक बार आता है। यह जानकारी समाचार एजेंसी एएनआई ने दी है। इस पावन अवसर पर श्रद्धालुओं ने भारी संख्या में त्रिवेणी संगम पर पहुंचकर स्नान किया और आध्यात्मिक शांति का अनुभव किया।
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रतीक है। यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। मान्यता है कि संगम में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस आयोजन का उल्लेख पुराणों और शास्त्रों में भी मिलता है।
मुख्य स्नान तिथियां
महाकुंभ मेला 26 फरवरी को समाप्त होगा। इस दौरान कई महत्वपूर्ण स्नान तिथियां निर्धारित की गई हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
मकर संक्रांति (14 जनवरी): इस दिन लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
मौनी अमावस्या (29 जनवरी): यह कुंभ का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन सबसे अधिक श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं।
बसंत पंचमी (3 फरवरी): इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा के साथ स्नान किया जाता है।
इन तिथियों पर संगम पर भारी भीड़ देखने को मिलती है।
शाही स्नान की परंपरा
महाकुंभ मेले की शुरुआत 'शाही स्नान' से होती है। इसमें अखाड़ों के साधु-संत अपनी परंपरागत वेशभूषा और ध्वज के साथ संगम पर स्नान करते हैं। यह स्नान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। साधु-संतों का यह दृश्य कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण होता है।
सुरक्षा और व्यवस्थाएं
इतने बड़े आयोजन को सुचारू रूप से चलाने के लिए सुरक्षा और अन्य व्यवस्थाओं का खास ध्यान रखा गया है। पुलिस, पैरा-मिलिट्री फोर्स और अन्य सुरक्षाबलों की भारी तैनाती की गई है। सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन के माध्यम से मेले की निगरानी की जा रही है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्वास्थ्य शिविर, पेयजल और साफ-सफाई की विशेष व्यवस्था की गई है।
धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम
महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां भजन-कीर्तन, यज्ञ और प्रवचन जैसे आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा, मेले में भारतीय हस्तशिल्प, लोक कला और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रदर्शन किया जाता है।
महाकुंभ मेले का इतिहास
महाकुंभ मेले का इतिहास हजारों साल पुराना है। पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के बीच अमृत के कुंभ को लेकर संघर्ष हुआ था। कहा जाता है कि अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इसलिए इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ का आध्यात्मिक संदेश
महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह मानवता, शांति और एकता का प्रतीक भी है। यह मेला हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और अध्यात्म के माध्यम से अपने भीतर झांकने का अवसर प्रदान करता है।
2025 का महाकुंभ मेला न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अद्वितीय आयोजन है। यह मेला हमें भारतीय संस्कृति और धर्म की विशालता और गहराई का अनुभव कराता है। पौष पूर्णिमा से शुरू होकर यह आयोजन मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी जैसे पावन अवसरों के साथ हमें आध्यात्मिक शांति और ऊर्जा प्रदान करता है। अगर आप इस मेले में भाग लेने का मौका पाते हैं, तो यह अनुभव आपके जीवन को नई दिशा और ऊर्जा देगा।