औरत ने दिया औरत का साथ तो गरीबी का झाड़ू बन गया हुनर का Painting Brush, पद्मश्री Dulari Devi की कहानी
punjabkesari.in Saturday, Feb 01, 2025 - 02:39 PM (IST)
नारी डेस्कः वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, इस बार अपना आठवां बजट पेश कर रही हैं और हर दौरान वह स्वदेशी साड़ी पहने नजर आती हैं लेकिन इस बार निर्मला सीतारमण ने जो साड़ी पहनी है, उसमें बहुत कुछ खास है। उन्होंने मिथिला कला को सम्मान देने के लिए इस मधुबनी साड़ी का चुनाव किया है जो उन्हें पद्मश्री पुरस्कार विजेता दुलारी देवी द्वारा उपहार में दी गई थी। उन्होंने ही वित्त मंत्री से अनुरोध किया था वह इस साड़ी को पहनकर बजट पेश करें लेकिन पद्मश्री विजेता दुलारी देवी हैं कौन ? चलिए उनके बारे में आपको बताते हैं।
दो वक्त की रोटी के लिए घर घर मांजे बर्तन और झाड़ू-पौंछा
एक समय ऐसा था जब दुलारी देवी के पास खाने को दो वक्त की रोटी नहीं थी लेकिन जो चीज साथ थी वो थी दुलारी देवी की हिम्मत और विश्वास। बस इसी लगन के चलते सफलता ने उनके पैर चूम लिए। बिहार प्रदेश के मधुबनी जिले के राठी गांव की रहने वाली दुलारी देवी मिथिला पेंटिंग के लिए पद्मश्री पाने वाली तीसरी महिला है। आज भले ही पूरा देश उन्हें सम्मान की नजरों से देखता है लेकिन ये दिन शुरू से ही ऐसे नहीं थे। जीवन के शुरूआती दिनों में दुलारी देवी ने लंबा समय बुरे दिनों का सामना किया। दो वक्त की रोटी खाने के लिए घर-घर जाकर बर्तन मांजे और झाड़ू पौंछा किया लेकिन इसी के साथ-साथ अपने लगातार प्रयासों के चलते उन्होंने अनजानी प्रतिभा को घर-घर में पहचान दी और आज मधुबनी आर्ट देश ही नहीं विदेश में भी प्रचलित हो गया है। अब तक दुलारी देवी 7 हजार से ज्यादा मिथिला पेंटिंग्स बना चुकी हैं। चलिए उनकी जिंदगी के कुछ शुरुआती दिनों के बारे में आपको बताते हैं...
गरीबी और बच्ची की मौत से शुरू हुआ संघर्ष, औरत को मिला औरत का साथ
दुलारी देवी का जन्म एक बेहद गरीब मछुआरा परिवार में हुआ था। वह भी अपने माता-पिता के साथ मछलियाँ पकड़ने जाती थी। खर्च पूरा नहीं हो रहा था तो दुलारी ने भी बचपन से ही काम किया इसी के चलते माता-पिता ने 12 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी लेकिन गरीबी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। विवाह के 7 वर्ष के पश्चात 7 महीने की बच्ची की मृत्यु का दुख दिल में लिए उन्हें अपना ससुराल छोड़ना पड़ा व मायके आकर रहने लगी और यहीं से दुलारी देवी के संघर्ष के दिन शुरू हुए। दुलारी पढ़ी-लिखी नहीं थी इसलिए घर चलाने और भूख मिटाने के लिए वह घर-घर जाकर झाड़ू-पौंछा करने लगी जिससे उन्हें 6 रु. मिलते थे। बस इसी काम के सिलसिले में वह मिथिला कलाकार के घर पर भी जाती थीं। गांव में ही काम करते-करते ही दुलारी मशहूर मिथिला पेंटर श्रीमती कर्पूरी देवी के संपर्क में आई, वह वहां झाड़ू-बर्तन ही करने जाती थी लेकिन वहां उन्हें पेंटिंग करते देख दुलारी को भी मिथिला पेंटिंग सीखने की लालसा जागी और धीरे-धीरे उन्होंने पेंटिंग सीखना शुरू कर दिया। दुलारी ने अपने आंगन से चित्र बनाने की शुरुआत की। अपने आर्ट के जरिए दुलारी ने मछुआरा समाज के जीवन ,संस्कारों और उत्सवों तथा खेतों में काम करने वाले किसान ,मजदूर और गरीबों का दुःख दर्शाया।
जब भी उन्हें कर्पूरी देवी से पेंटिंग सीखने के दौरान समय मिलता है तो अपने घर में लकड़ी से ब्रश बनाकर और मिट्टी की मदद से पेंटिंग में जुट जाती थी। इसी तरह कर्पूरी देवी की सहायता से दुलारी ने मिथिला पेंटिंग की अच्छी जानकारी हासिल की और कब झाड़ू की जगह हाथों में पेंटिंग ब्रश ने जगह बना ली दुलारी को भी नहीं पता चला। उनकी मिथिला पेंटिंग्स इतनी प्रचलित हुई कि एक बार पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय श्री एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा इनको बहुत प्रोत्साहित किया गया था। इसके अलावा पटना में बिहार संग्रहालय के उद्घाटन के अवसर पर मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार ने दुलारी देवी को विशेष तौर पर आमंत्रित किया। इस आयोजन में दुलारी देवी जी द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग जिसमें कमला नदी के पूजन का दृश्य है उसको विशेष स्थान दिया गया। 2012-13 में दुलारी राज्य पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं।
दुलारी देवी की कला इतनी प्रचलित हुई कि गीता वुल्फ की पुस्तक ‘ फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश ‘मैं दुलारी देवी की जीवनी एवं कलाकृतियों को खास जगह मिली। मार्टिन लि कॉज की फ्रेंच में लिखी पुस्तक मिथिला में भी दुलारी देवी जी की जीवन कथा एवं पेंटिंग्स को शामिल किया गया है।सतरंगी नामक पुस्तक में भी इनकी पेंटिग ने जगह पाई है तो यह थी 53 साल की दुलारी देवी के संघर्ष की कहानी जो यही प्रेरणा देती हैं कि संघर्ष कितना भी लंबा क्यों ना हो व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन से उसे पार कर जाता है। संघर्ष की दीवार उसे मंजिल पाने से रोक नहीं सकती। वहीं एक महिला का महिला को साथ मिल जाए तो सोने पर सुहागे का काम देता है।