मां के जन्मदिन पर शुरू की फ्री एंबुलेंस सेवा, अब बना रहे हैं 40 लाख का वृद्धाश्रम

punjabkesari.in Tuesday, May 27, 2025 - 11:26 AM (IST)

नारी डेस्क: इंसान अगर ठान ले तो समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है। ऐसा ही एक नाम है ऋतुराज पवार, जो पेशे से बिल्डर हैं लेकिन दिल से समाजसेवी। उन्होंने अपनी मां के जन्मदिन को खास तरीके से मनाते हुए एक फ्री एंबुलेंस सेवा शुरू की थी। अब वे एक वृद्धाश्रम (ओल्ड ऐज होम) बनाने जा रहे हैं, जिसमें बुजुर्गों को बिलकुल मुफ्त में रहने की सुविधा दी जाएगी।

7 साल से चल रही एंबुलेंस सेवा

ऋतुराज पवार ने यह सेवा 7 साल पहले शुरू की थी। तब से अब तक उनकी एंबुलेंस सेवा से 10,000 से ज्यादा मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जा चुका है — बिना एक भी पैसा लिए। यह सेवा उन्होंने अपनी मां तरुणा पवार के जन्मदिन पर शुरू की थी। उनके पिता माधवराव पवार भी समाजसेवा से जुड़े रहे हैं और इन्हीं से उन्हें प्रेरणा मिली।

अब बना रहे हैं वृद्धाश्रम

अब ऋतुराज करीब 40 लाख रुपए की लागत से एक वृद्धाश्रम बना रहे हैं। इस आश्रम में बुजुर्गों से कोई किराया नहीं लिया जाएगा, और इसे वह अपने खर्चे से खुद ही चलाएंगे। उन्होंने बताया कि समाज में बहुत से बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्हें उनके परिवार वाले छोड़ देते हैं। उनके लिए यह आश्रम एक नया घर होगा।

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बेटियों की शिक्षा और शादी में भी कर रहे मदद

ऋतुराज अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा बेटियों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और विवाह में खर्च कर रहे हैं। अब तक वे 50 से ज्यादा बेटियों को गृहस्थी का सामान दिला चुके हैं। लगभग 60 लड़कियों की पढ़ाई में मदद कर रहे हैं। उन्हें कॉपियां, किताबें, साइकिल, लैपटॉप जैसी ज़रूरी चीजें भी दी जाती हैं।

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स्वास्थ्य सेवाओं में भी योगदान

ऋतुराज के पास एक बॉडी फ्रीजर, एक व्हीलचेयर और चार ऑक्सीजन मशीनें भी हैं। इनमें से एक मशीन हमेशा उनके घर में रहती है ताकि जरूरत पड़ने पर किसी की तुरंत मदद की जा सके।

रक्तदान ग्रुप ने दिखाई थी सेवा की राह

ऋतुराज बताते हैं कि समाज सेवा की शुरुआत एक रक्तदान ग्रुप के ज़रिए हुई थी। एक बार उनसे एक पुरानी एंबुलेंस को बदलने के लिए मदद मांगी गई। वहीं से उन्हें सेवा का रास्ता मिला। “लोगों की जरूरतें बहुत छोटी होती हैं, लेकिन जब संसाधन न हों, तो वही ज़रूरतें बड़ी लगती हैं। मैं बस उसी अभाव को थोड़ा कम करना चाहता हूं।”

शांति भवन: जिन महिलाओं को परिवार ने छोड़ दिया, वहां से मिली उन्हें नई जिंदगी

रायपुर: ‘शांति भवन’ नामक एक आश्रम में कई महिलाएं रह रही हैं, जिन्हें समाज और परिवार ने ठुकरा दिया था। कल्पना, जो पोलियोग्रस्त हैं, बचपन में माता-पिता को खो चुकी थीं। बहनों ने उन्हें एक दिन घुमाने के बहाने घर से दूर छोड़ दिया।

“अब 15 साल हो गए। पुलिस ने मुझे यहां पहुंचाया। अब मैंने सिलाई सीख ली है और अपने पैरों पर खड़ी हूं।” — कल्पना

1984 में मदर टेरेसा ने शुरू कराया था आश्रम

इस आश्रम की देखरेख कर रहीं सिस्टर सिसिल मैरी बताती हैं कि यह संस्थान पहले बच्चों के लिए था, लेकिन अब यहां असहाय और मानसिक रूप से कमजोर महिलाएं रहती हैं। यहां से निसंतान दंपती बच्चे गोद भी लेते थे, लेकिन अब नियम बदल गए हैं।

हर महीने 3 लाख का खर्च, आम लोगों की मदद से चलता है आश्रम आश्रम का मासिक खर्च करीब 3 लाख रुपए होता है। इसमें से 1.5 से 2 लाख रुपए कोलकाता के मिशन ऑफ चैरिटी से आते हैं।

बाकी पैसा स्थानीय लोगों की मदद से जुटाया जाता है। ऋतुराज पवार और शांति भवन जैसे उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि समाज सेवा सिर्फ पैसों से नहीं, दिल से होती है। ऐसे लोग हमें इंसानियत की असली परिभाषा समझाते हैं।
 
 
 
 


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Content Editor

Priya Yadav

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