मां गंगा का जन्म और विवाह की कथा, जानिए स्वर्ग से धरती तक की अद्भुत यात्रा

punjabkesari.in Saturday, Aug 30, 2025 - 06:30 PM (IST)

नारी डेस्क : हिंदू धर्म में मां गंगा को पवित्र और मोक्षदायिनी माना गया है। मान्यता है कि मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन हुआ था। इस वर्ष यह तिथि 18 मई को आई थी। पुराणों और लोककथाओं में गंगा जी के जन्म को लेकर कई कथाएं मिलती हैं। साथ ही, गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का रहस्य और उनके मनुष्य रूप में विवाह की कथा भी उतनी ही रोचक है। गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि देवी का रूप मानी जाती हैं, जिनका जल तन-मन को पवित्र करने के साथ-साथ प्रेम और भक्ति का संदेश भी देता है।

वामन पुराण के अनुसार देवी गंगा का जन्म

वामन पुराण की कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु वामन अवतार में आए और उन्होंने अपना एक पैर आकाश की ओर उठाया, तब ब्रह्मा जी ने उनके चरणों को धोया। उस चरणोदक (चरण का जल) को ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में रख लिया। इसी चरणोदक के तेज से गंगा का जन्म हुआ। इसके बाद ब्रह्मा जी ने देवी गंगा को हिमालय को सौंप दिया। इस प्रकार देवी पार्वती और गंगा बहन मानी जाती हैं। इसी कथा में यह भी बताया गया है कि वामन के पैर से आकाश में छेद हो गया, जिससे तीन धाराएं प्रकट हुईं। एक धारा स्वर्ग में गई, दूसरी पृथ्वी पर, और तीसरी पाताल में। इसी कारण गंगा को त्रिपथगा कहा जाता है।

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शिव से गंगा का संबंध

शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि मां गंगा भी देवी पार्वती की तरह भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। पार्वती जी नहीं चाहती थीं कि गंगा उनकी सौतन बने। लेकिन गंगा ने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि वे हमेशा उनके साथ रहेंगी। यही कारण है कि जब गंगा प्रचंड वेग के साथ धरती पर उतरीं तो भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर लिया। इस प्रकार गंगा का संबंध सदैव शिवजी से जुड़ा रहा।

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मराठी लोककथाओं में देवी गंगा को भगवान शिव की दूसरी पत्नी माना गया है। इन कथाओं में पार्वती जी और गंगा के बीच तनाव की बातें मिलती हैं, और कहा जाता है कि शिवजी गंगा की रक्षा के लिए उन्हें अपनी जटाओं में छुपा लेते थे।

देवी गंगा और मनुष्य से विवाह की कथा

देवी गंगा के विवाह की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। कथा के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र की सभा में गंगा और पृथ्वी के महान राजा महाभिष दोनों उपस्थित थे। सभा में नृत्य चल रहा था। तभी हवा से गंगा का आंचल कंधे से सरक गया। सभा में मौजूद सभी देवताओं ने अपनी आंखें झुका लीं, लेकिन गंगा और महाभिष एक-दूसरे को निहारते रह गए। यह देखकर ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और दोनों को शाप दिया कि वे धरती पर जन्म लेंगे और वहीं उनका मिलन होगा। इस शाप के कारण महाभिष ने पृथ्वी पर हस्तिनापुर के राजा शांतनु के रूप में जन्म लिया, और गंगा भी नदी रूप में धरती पर अवतरित हुईं।

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शांतनु और गंगा का मिलन

एक दिन राजा शांतनु शिकार खेलते-खेलते गंगा तट पर पहुंचे। वहां गंगा मानवी रूप धारण करके उनके सामने आईं। दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए और विवाह कर लिया। बता दे की  शांतनु और गंगा के आठ संतानें हुईं। इनमें से सात बच्चों को गंगा ने जन्म लेते ही जल समाधि दे दी। जब आठवें पुत्र का जन्म हुआ और गंगा उसे भी नदी में प्रवाहित करने लगीं तो राजा शांतनु ने उन्हें रोक लिया। यह आठवां पुत्र ही आगे चलकर देवव्रत भीष्म कहलाए। गंगा ने सात संतानों को जल समाधि इसलिए दी क्योंकि वे सभी वसु थे जिन्हें शाप से मुक्त करना आवश्यक था। लेकिन आठवें वसु को शाप से मुक्ति नहीं मिल पाई और वही भीष्म के रूप में अमर हुए।

मां गंगा का जन्म और उनकी कथाएं यह दर्शाती हैं कि वे केवल एक नदी नहीं, बल्कि दिव्य शक्ति और प्रेम का प्रतीक हैं। देवी गंगा जी की कथा हमें यह संदेश देती है कि जीवन में पवित्रता, भक्ति और प्रेम का महत्व सबसे बड़ा है।


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Content Writer

Vandana

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