समलैंगिक विवाह को सुप्रीम कोर्ट की ना, क्या अब पेंशन, राशन कार्ड और बैंक खाते को लेकर मिलेगा अधिकार ?
punjabkesari.in Wednesday, Oct 18, 2023 - 11:37 AM (IST)
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद देश दो भागों में बंटा हुआ दिखाई दिया। जहां कुछ लोगों ने इस फैसला स्वागत किया तो वहीं एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के एक वर्ग, याचिकाकर्ताओं और कार्यकर्ताओं ने इस पर निराशा और चिंता जाहिर की। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही न्यायालय ने साफ किया कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाह को छोड़कर शादी का "कोई असीमित अधिकार" नहीं है।
बच्चे गोद लेने पर भी रोक
उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से मंगलवार को गोद लिए जाने से जुड़े एक नियम को भी बरकरार रखा जिसमें अविवाहित और समलैंगिक जोड़ों के बच्चे गोद लेने पर रोक है। पीठ के सभी 5 न्यायाधीश इस बात पर भी सहमत थे कि संविधान के तहत विवाह करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। दरअसल विवाह करने के अधिकार को भारतीय संविधान के तहत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं दी गई है, बल्कि यह एक वैधानिक अधिकार है।
LGBTQ समुदाय के हक को लेकर कोर्ट की यह है राय
सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसलना सुनाते हुए यह भी माना कि LGBTQ समुदाय के सदस्अ न्य सभी नागरिकों की तरह, संविधान द्वारा संरक्षित स्वतंत्रता के साथ संवैधानिक अधिकारों की पूरी शृंखला के हकदार भी हैं और समान नागरिकता तथा "कानून के समान संरक्षण" के भी हकदार हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि समलैंगिक विवाह को समायोजित करने के लिये सभी कानूनों और विनियमों को बदलना बहुत कठिन होगा।
एक्सपर्ट पैनल की मिली मंजूरी
वहीं बच्चा गोद लेने के अधिकार से जुड़े मामले पर तीन जज सहमत नहीं दिखे इसलिए ये अधिकार बहुमत से ख़ारिज हो गया। हालांकि पीठ ने यह जरूर कहा कि सभी राज्य और केंद्र सरकार ये तय करें कि समलैंगिक और क्वियर लोगों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव ना हो। मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से एक एक्सपर्ट पैनल बनाने की बात कही थी। इस एक्सपर्ट पैनल की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे जो समलैंगिक जोड़ों को शादी के अधिकार समेत कई अधिकार देने पर विचार करेंगे।
पीठ ने दिए अलग-अलग फैसले
बता दें कि इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे। पीठ ने चार अलग-अलग फैसले दिए और कुछ कानूनी मुद्दों पर न्यायाधीश एकमत थे जबकि कुछ मुद्दों पर उनकी राय अलग-अलग थी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "कानून यह नहीं मान सकता कि सिर्फ विपरीत लिंग के जोड़े ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं। यह भेदभाव के समान होगा। इसलिए समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव को लेकर गोद लेने के नियम संविधान का उल्लंघन हैं।"
एलजीबीटीक्यू+ लोगों को पार्टनर चुनने का अधिकार
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शादी के अधिकार में संशोधन का अधिकार विधायिका के पास है लेकिन एलजीबीटीक्यू+ लोगों के पास पार्टनर चुनने और साथ रहने का अधिकार है और सरकार को उन्हें दिए जाने वाले अधिकारों की पहचान करनी ही चाहिए, ताकि ये कपल एक साथ बिना परेशानी के रह सकें। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने निर्देश दिया कि केंद्र सरकार द्वारा कमेटी बनाई जाए जो इन बिन्दुओं पर विचार करेगी, जिसमें पहला राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करना। दूसरा समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खाते के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाना और तीसरा पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकार भी समलैंगिकों को मिलेंगी।
इस परेशानी को झेल रहे हैं समलैंगिक जोड़े
पांच जजों की खंडपीठ ने माना कि सिर्फ़ एक क़ानून में बदलाव लाने से कुछ नहीं होगा क्योंकि तलाक़, गोद लेने, उत्तराधिकार और गुज़ारा देने जैसे अन्य क़रीब 35 क़ानून हैं जिनमें से कई धार्मिक व्यक्तिगत क़ानूनों के दायरे तक जाते हैं। दरअसल कोर्ट में यह याचिका दी गई थी कि शादी न कर पाने के कारण इस समुदाय के लोग न तो संयुक्त बैंक खाता खोल सकते हैं, न घर के साझे मालिक बन सकते हैं औ न ही बच्चों को गोद ले सकते हैं. वे शादी के साथ मिलने वाली इज्ज़त से भी महरूम हैं। बता दें कि भारत में एलजीबीटीक्यू+ समुदाय की आबादी साढ़े 13 से 14 करोड़ के बीच है और हाल के सालों में समलैंगिकता को लेकर स्वीकार्यता में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
पीठ ने 10 दिनों तक सुनी थी दलीलें
संविधान पीठ के सदस्यों ने हालांकि एकमत से केंद्र सरकार के इस बयान को रिकॉडर् में लिया कि वह समलैंगिक जोड़ों को दिए जाने वाले अधिकारों और लाभों को सुव्यवस्थित करने के लिए एक समिति का गठन करेगी। पीठ ने 10 दिनों तक संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 11 मई 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में यह भी कहा गया कि शीर्ष अदालत को इस समुदाय की सामाजिक सुरक्षा और अन्य कल्याणकारी लाभों तक पहुंच के लिए उचित निर्देश भी पारित करने चाहिए।
सरकार ने दी थी यह दलील
केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं का पुरजोर विरोध किया था। सरकार ने दलील देते हुए कहा था कि याचिकाकर्ताओं की मांग को अनुमति देने से व्यक्तिगत कानूनों के मामले में बेहद खराब स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। केंद्र सरकार ने यह भी दावा किया था सिर्फ सात राज्यों ने समलैंगिक विवाह के मसले पर उसके सवाल का जवाब दिया है। इनमें राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम ने ऐसे विवाहों के लिए कानूनी मंजूरी की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं के तकर् का विरोध किया है।