जूस पीकर क्या क्रिकेटर मोहम्मद शमी ने किया गुनाह?  इस्लाम में रोजा ना रखने वालों को मिलती है ये सजा

punjabkesari.in Thursday, Mar 06, 2025 - 07:15 PM (IST)

 रमजान का महीना इस्लाम में सबसे पाक और बरकतों वाला माना जाता है।इस महीने में मुसलमान रोजा (उपवास)रखते हैं, जो इस्लाम के पांच स्तंभों (Five Pillars of Islam) में से एक है। रोजा केवल भूखा-प्यासा रहना नहीं, बल्कि आत्म-संयम, अल्लाह की इबादत और नेक कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने का ज़रिया है।  हालांकि इन दिनों भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी ने रमजान में रोजा नहीं रखकर कुछ लोगों के निशाने पर आ गए हैं।
 

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ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी का कहना है कि  मोहम्मद शमी ने रमजान में रोजा नहीं रखकर गुनाह किया है। दरअसल, शमी को 4 मार्च में दुबई में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए सेमीफाइनल मुकाबले के दौरान एनर्जी ड्रिंक  पीते हुए देखा गया था. ऐसे में मोलाना का  कहना है कि शमी एक तरह से अपराधी हैं क्योंकि वे रोजा नहीं रख रहे हैं। उन्होंने शमी को सलाह दी कि वह शरीयत के नियमों का पालन करें। 
 

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मौलाना का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर रोजा नहीं रखता तो वह इस्लामिक कानून के अनुसार गुनाहगार माना जाता है। उन्होंने कहा कि क्रिकेट खेलना बुरा नहीं है लेकिन धार्मिक जिम्मेदारियों को भी निभाना चाहिए।  इस्लाम में कुछ खास परिस्थितियों में लोगों को रोज़ा न रखने की अनुमति दी गई है, लेकिन बाद में उसकी क़ज़ा (छूटे हुए रोज़ों की भरपाई) या फ़िद्या (एक गरीब को खाना खिलाना) देना जरूरी होता है।  

 

 किन लोगों को रोज़ा रखने की छूट है  


बीमार व्यक्ति: अगर कोई व्यक्ति ऐसी बीमारी से पीड़ित है जिससे रोजा रखने पर सेहत बिगड़ सकती है, तो उसे रोजा छोड़ने की इजाजत है।  

गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाएं: अगर रोजा रखने से मां या बच्चे की सेहत पर असर पड़ता है, तो महिला बाद में क़जा रोजे रख सकती है या फ़िद्या दे सकती है।  

मुसाफिर (यात्रा पर रहने वाले): अगर कोई व्यक्ति लंबी यात्रा (सफर) पर हो और रोजा रखना मुश्किल हो, तो वह सफर के दौरान रोजा छोड़ सकता है और बाद में उसकी क़जा कर सकता है।  

बहुत बुजुर्ग व्यक्ति: जो इतने बूढ़े हैं कि रोज़ा रखने की ताकत नहीं रखते, वे रोजा छोड़ सकते हैं और इसके बदले में फ़िद्या (हर रोज़े के बदले गरीब को खाना) दे सकते हैं।  

माहवारी या प्रसव के बाद की स्थिति: महिलाओं को पीरियड्स (माहवारी) या डिलीवरी के बाद निफास (Postpartum) के दौरान रोजा रखने की मनाही है। वे बाद में क़ज़ा रोजे रख सकती हैं।  
 

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 रोज़ा जानबूझकर छोड़ने वालों के लिए सजा
 
इस्लाम में रोजा रखना फर्ज़ (अनिवार्य) इबादतहै, और बिना किसी शारीरिक मजबूरी के जानबूझकर रोज़ा छोड़ना गुनाह माना जाता है।  अगर कोई बिना वाजिब कारण के रोज़ा तोड़ता है, तो उसे दो महीने लगातार रोज़े रखने होंगे (कफ्फारा)। अगर वह ऐसा नहीं कर सकता, तो उसे 60 गरीबों को खाना खिलाना होगा।  अगर कोई व्यक्ति उसका मजाक उड़ाता है, तो यह इस्लाम के खिलाफ एक बड़ा गुनाह (कबीराह गुनाह) है, और उसे अल्लाह से तौबा करनी चाहिए।  अगर कोई सिर्फ आलस्य या लापरवाही से रोज़ा नहीं रखता, तो उसे अल्लाह से माफी मांगनी चाहिए और छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा करनी होगी। 


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vasudha

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