57 करोड़ श्रद्धालुओं के नहाने के बाद भी एकदम शुद्ध है गंगाजल, यकीन नहीं तो पढ़िए वैज्ञानिक की रिपोर्ट
punjabkesari.in Friday, Feb 21, 2025 - 09:12 AM (IST)
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नारी डेस्क: प्रख्यात वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. अजय कुमार सोनकर ने दावा किया है कि महाकुंभ के दौरान 57 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के पवित्र डुबकी लगाने के बावजूद गंगा जल की शुद्धता पर कोई असर नहीं पड़ा है। डॉ. सोनकर ने अपनी प्रयोगशाला में साबित कर दिया है कि गंगा का पानी न केवल नहाने के लिए उपयुक्त है, बल्कि क्षारीय पानी जितना ही शुद्ध है। देश के शीर्ष वैज्ञानिक ने अपनी प्रयोगशाला में गंगा नदी के पानी की शुद्धता पर सवाल उठाने वालों को झूठा साबित कर दिया है।
वैज्ञानिक ने दी खुली चुनौती
डॉ. सोनकर ने गंगा जल को अपने सामने ले जाकर लैब में जांच कराने की खुली चुनौती भी दी है। उन्होंने कहा कि जिस किसी को भी जरा सा भी संदेह हो, वह गंगा जल को अपने सामने ले जाकर लैब में जांच कराकर संतुष्ट हो जाए। मोती की खेती की दुनिया में जापानी वर्चस्व को चुनौती देने वाले शीर्ष भारतीय वैज्ञानिक ने संगम और अरैल के साथ एक-दो नहीं बल्कि 5 घाटों से गंगा जल एकत्र किया है। उनके तीन महीने के लगातार शोध ने साबित कर दिया है कि गंगा का पानी सबसे शुद्ध है। यहां स्नान करने से किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं हो सकता। प्रयोगशाला में इसकी शुद्धता की पूरी तरह पुष्टि हो चुकी है। बैक्टीरियोफेज के कारण गंगा जल की अद्भुत स्वच्छता क्षमता हर तरह से बरकरार है।
पानी में नहीं पनपे बैक्टीरिया
डॉ. सोनकर ने महाकुंभ नगर के संगम नोज और अरैल समेत 5 अलग-अलग प्रमुख स्नान घाटों से खुद जाकर पानी के नमूने एकत्र किए। इसके बाद नमूनों को सूक्ष्म जांच के लिए अपनी लैब में रख लिया। उनके मुताबिक हैरानी की बात यह है कि करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान के बावजूद न तो पानी में बैक्टीरिया पनपे और न ही पानी के पीएच लेवल में कोई गिरावट आई। वैज्ञानिक ने अपने शोध में पाया कि गंगा जल में 1,100 तरह के बैक्टीरियोफेज मौजूद हैं जो किसी भी हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं। यही कारण है कि 57 करोड़ श्रद्धालुओं के गंगाजल में स्नान करने के बाद भी इसका जल दूषित नहीं हुआ।
गंगाजल को लेकर फैलाया गया भ्रम
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ संगठनों और लोगों ने जनता के बीच एक तरह का भ्रम फैलाया, जिसमें दावा किया गया कि गंगाजल पीने और नहाने के लिए अयोग्य घोषित किया गया है। वहीं, डॉ. सोनकर के शोध ने इस दावे को पूरी तरह गलत साबित कर दिया है। उन्होंने कहा कि गंगाजल की अम्लीयता (पीएच) सामान्य से बेहतर है और इसमें किसी तरह की दुर्गंध या बैक्टीरिया नहीं पाया गया। उन्होंने कहा- "विभिन्न घाटों पर लिए गए नमूनों का प्रयोगशाला में पीएच स्तर 8.4 से 8.6 के बीच पाया गया है। जो काफी बेहतर माना जाता है।" प्रयोगशाला में पानी के नमूनों को 14 घंटे तक इनक्यूबेशन तापमान पर रखने के बाद भी उनमें किसी तरह के हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं हुई।
नहाने के लिए बिल्कुल सुरक्षित है गंगाजल
डॉ. सोनकर ने स्पष्ट किया कि गंगाजल न केवल नहाने के लिए सुरक्षित है, बल्कि इसके संपर्क में आने से त्वचा संबंधी रोग भी नहीं होते। डॉ. सोनकर ने कहा कि भ्रम फैलाने वालों से पूछा जाना चाहिए कि अगर गंगा का पानी प्रदूषित है तो इन 57 करोड़ श्रद्धालुओं में से एक भी श्रद्धालु को किसी तरह की बीमारी की शिकायत क्यों नहीं मिली।" उनके मुताबिक पानी में बैक्टीरिया पनपने से पानी अम्लीय हो जाता है। उन्होंने कहा- "कई बैक्टीरिया अपने चयापचय के हिस्से के रूप में अम्लीय उपोत्पाद बनाते हैं, जो पानी के पीएच स्तर को कम करता है। जैसे ही बैक्टीरिया पोषक तत्वों का सेवन करते हैं, वे लैक्टिक एसिड या कार्बोनिक एसिड जैसे अम्लीय यौगिक छोड़ते हैं। जिससे पीएच गिर जाता है। लेकिन जांच में सभी पांचों नमूने क्षारीय पाए गए, जिनका पीएच मान 8.4 से 8.6 था। जो बैक्टीरिया की अप्रभावीता को साबित करता है।"