स्कूल ड्रेस से साधु वेश तक! 13 साल की उम्र में कैसे बना प्रेमानंद महाराज, तस्वीरों में देखें अद्भुत सफर

punjabkesari.in Thursday, Oct 30, 2025 - 02:46 PM (IST)

नारी डेस्क: भारत की भूमि हमेशा से संतों, महात्माओं और भक्तों की जन्मस्थली रही है। इन्हीं में से एक हैं प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज, जिन्हें प्रेमानंद महाराज के नाम से पूरा देश जानता है। राधा-कृष्ण के अनन्य भक्त प्रेमानंद जी का जीवन साधना, भक्ति और अनुशासन का प्रतीक है। आइए जानते हैं उनके जीवन की अनोखी आध्यात्मिक यात्रा  काशी से वृंदावन तक।

 बचपन से शुरू हुई भक्ति की राह

प्रेमानंद महाराज का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, लेकिन बचपन से ही उनके भीतर ईश्वर के प्रति असीम श्रद्धा थी। जहां बच्चे खेलते-कूदते थे, वहीं वे घंटों भगवान के नाम का जप करते थे। 13 वर्ष की छोटी-सी उम्र में उन्होंने सांसारिक जीवन से विरक्ति लेकर संन्यास और ब्रह्मचर्य का मार्ग अपना लिया। यही उम्र उनके जीवन का मोड़ बनी।

PunjabKesari

पहले शिव के भक्त, फिर राधा रानी ने दी दिशा

कहते हैं कि प्रेमानंद महाराज ने अपने साधना जीवन की शुरुआत काशी (वाराणसी) में की थी, जहां उन्होंने भगवान शिव की भक्ति में खुद को समर्पित कर दिया। वहीं भक्ति के दौरान उन्हें अहसास हुआ कि ईश्वर प्रेम का स्वरूप है  और यही प्रेम उन्हें राधा रानी की शरण में ले आया। काशी के ओम नम:शिवाय से शुरू हुई यात्रा, वृंदावन की ‘राधे-राधे’ में बदल गई।

 13 साल की उम्र में अपनाया संन्यास

केवल 13 वर्ष की उम्र में घर-परिवार और दुनिया के मोह-माया को त्यागकर उन्होंने संन्यास ले लिया। इस उम्र में जहां अधिकतर बच्चे शिक्षा और खेल में व्यस्त रहते हैं, वहीं प्रेमानंद जी ने भक्ति को अपना जीवन बना लिया। वे कहते हैं  “जब मन में राधा-कृष्ण का नाम बस जाए, तो संसार का हर सुख तुच्छ लगने लगता है।”

PunjabKesari

 देश-विदेश में हैं प्रेमानंद महाराज के लाखों भक्त

आज प्रेमानंद महाराज के भक्त केवल भारत तक सीमित नहीं हैं। अमेरिका, कनाडा, दुबई, लंदन जैसे देशों में भी उनके अनुयायी बड़ी संख्या में हैं। लोग उनके सत्संग सुनने और उनके दर्शन करने के लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं। उनका सन्देश हमेशा सरल होता है  “प्रेम ही परमात्मा तक पहुँचने का सबसे सच्चा मार्ग है।”

PunjabKesari

पदयात्रा बन गई आध्यात्मिक उत्सव

प्रेमानंद महाराज की पदयात्रा अब एक भक्तिमय परंपरा बन चुकी है। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए जुटते हैं। इन यात्राओं में भजन, कीर्तन और राधे-कृष्ण के नाम से गूंजता वातावरण हर किसी के मन को भक्ति में डूबा देता है। लोग इसे एक “चलती फिरती आध्यात्मिक तीर्थयात्रा” कहते हैं।

दोनों किडनियां भगवान को समर्पित

प्रेमानंद महाराज के जीवन का सबसे प्रेरणादायक प्रसंग वह है जब उन्होंने अपनी दोनों किडनियां भगवान को समर्पित कर दीं। उन्होंने एक किडनी का नाम ‘राधा’ और दूसरी का ‘कृष्णा’ रखा। बीमारी और किडनी फेल होने के बावजूद उन्होंने भक्ति मार्ग नहीं छोड़ा, बल्कि कहा  “मेरा शरीर चाहे कमजोर हो, पर राधे नाम की शक्ति मेरे भीतर असीम है।”

प्रेमानंद महाराज का जीवन इस बात का प्रमाण है कि भक्ति उम्र या परिस्थिति की मोहताज नहीं होती। काशी से शुरू हुई शिव भक्ति ने जब वृंदावन में राधे-कृष्ण का रूप लिया, तो एक बालक “प्रेमानंद महाराज” बन गया  जो आज लाखों दिलों में भक्ति और प्रेम की ज्योति जला रहा है।  


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Priya Yadav

Related News

static