कोरोना का बड़ा दुष्प्रभाव, अब Covid-19 मरीज़ों में फैला ब्लैक फंगस इंफेक्शन, जानिए डिटेल
punjabkesari.in Saturday, May 08, 2021 - 10:44 AM (IST)
देश भर में फैली कोरोना वायरस की दूसरी लहर के चलते जहां हर दिन हज़ारों लोग इस संक्रमण के चलते अपना दम तोड़ रहे वहीं इसी बीच कोरोना का ऐसा दुष्प्रभाव देखने को मिला है, जिससे कोरोना मरीज़ों की अब आंखों की रोशनी जा रही हैं। दरअसल, अब कोरोना मरीज़ों में ब्लैक फंगस इंफेक्शन देखने को मिल रहा है।
जानिए क्या है ब्लैक फंगस इंफेक्शन
पिछले कुछ दिनों में Covid-19 मरीज़ों में ब्लैक फंगस इंफेक्शन के मामले देखे गए हैं. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के मुताबिक यह बीमारी दुर्लभ और जोखिमपूर्ण है. यह फफूंद यानी फंगस के समूह द्वारा होती है जिसे म्यूकॉरमाइकोसिस (mucormycetes) कहा जाता है. आमतौर हमारे वातावरण में फफूंद का यह समूह पाया जाता है।
बतां दें कि म्यूकॉरमाइकोसिस (Mucormycosis) यानि कि ब्लैक फंगस एक जानलेवा बीमारी है। कोरोना के मरीज अगर किसी तरह कोरोना संक्रमण से बच भी जाए तो वह ब्लैक फंगस की चपेट में फंस रहे हैं। ऐसे में मधुमेह से पीड़ित मरीजों को आंख की रौशनी से लेकर, नांक से लेकर जबड़ों तक की हड्डियां गंवानी पड़ती है।
क्या है इसके लक्षण
इस बीमारी के बाद चेहरे में सूजन आने लगती है. इसके अलावा एक तरफ की नाक भी बंद होने लगती है. आंखों में दर्द और सून्नेपन की शिकायतें आने लगती है।
क्या है इसका इलाज
एक डाॅक्टर के अनुसार, अगर शुरुआती दौर में बीमारी की पहचान कर ली जाए तो रिजल्ट बेहतर आता है. नाक में बाधा, आंख और गाल में सूजन और काली पपड़ी जैसे लक्षण दिखे तो बायोप्सी से इंफेक्शन के बारे में पता लगाया जा सकता है. अगर शुरुआती दौर में एंटीफंगल थेरेपी शुरू कर दी जाए तो मरीज की जान बच सकती है।
इन शहरों में दिखें ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीज़-
देश के कई शहरों जैसे कि दिल्ली, जयपुर, सूरत और अहमदाबाद में ब्लैक फंगस से कई पीड़ित मरीज देखने को मिले। जयपुर में अब तक 52 ऐसे मरीज सामने आए हैं जिनके आंख के नीचे फंगस इंफेक्शन हो गई है और इससे सेंट्रल रेटिंग आर्टरी (Central Retinal Artery) में ब्लड का फ्लो बंद हो जा रहा है।
वहीं, नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने म्यूकॉमाइकोसिस के मामलों पर शुक्रवार को कहा है कि सरकार की इन मामलों पर नजर है, और अकंट्रोल्ड डॉयबिटिक पेशेंट में स्टेरॉयड के साथ-साथ इम्युनो सेप्रेशेंट दवा के इस्तेमाल के बाद कुछ पेशंट में होता है. इसलिए एस्टेरॉयड का rational यूज होना चाहिए।