118 साल पुराने Rooh Afza को लेकर मुसीबत में फंसे बाबा रामदेव, यहां जानिए इस लाल शरबत की पूरी कहानी
punjabkesari.in Tuesday, Apr 22, 2025 - 01:16 PM (IST)

नारी डेस्क: हमदर्द' के रूह अफ़ज़ा को लेकर योग गुरु रामदेव की ‘‘शरबत जिहाद'' संबंधी कथित टिप्पणी को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय काफी नाराज है। रामदेव की ‘पतंजलि फूड्स लिमिटेड' के खिलाफ ‘हमदर्द नेशनल फाउंडेशन इंडिया' की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अमित बंसल ने कहा- ‘‘इसने अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है, यह उचित नहीं है। चलिए जानते हैं क्या है पूरा मामला।
क्या कहा था रामदेव ने?
दरअसल पतंजलि के गुलाब शरबत का प्रचार करते हुए रामदेव ने दावा किया था कि ‘हमदर्द' के ‘रूह अफ़ज़ा' से अर्जित धन का उपयोग मदरसे और मस्जिद बनाने में किया गया। बाबा रामदेव ने कहा था- ‘अगर आप वह शरबत पीते हैं, तो मदरसे और मस्जिदें बनेंगी, लेकिन अगर आप यह (पंतजलि का गुलाब शरबत) पीते हैं, तो गुरुकुल बनेंगे, आचार्य कुलम् विकसित होगा, पंतजलि विश्वविद्यालय का विस्तार होगा और भारतीय शिक्षा बोर्ड आगे बढ़ेगा। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी टिप्पणी का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने किसी ब्रांड या समुदाय का नाम नहीं लिया।
किसने बनाया था रूह अफ़ज़ा?
रूह अफ़ज़ा का जिक्र हो ही गया है तो इसका इतिहास भी जान लीजिए, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। दरअसल 1907 में लोगों को गर्मी से बचाने के लिए हकीम अब्दुल मजीद ने दवा के रूप में एक नुस्खा ईजाद किया था जो था रूह अफजा। रूह अफ़ज़ा नाम भी अपने आप में ही एक अलग एहसास देता है। पंडित दया शंकर मिश्र की किताब, 'मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम' (1254) में पहली बार ये नाम लिया गया।
पहले बर्तनों में मिलता था रूह अफ़ज़ा
लू और गर्मी से बचाने में हमदर्द का रूह अफजा कमाल का साबित हुआ, ऐसे में लोग उस समय इस शरबत को लेने के लिए घर से बर्तन लेकर आते थे। मांग बढ़ने पर कांच की बोतलों में मिलने लगा। उस समय बोतलें भी कम मिलती थीं इसलिए ग्राहकों को बोतल के पैसे जमा करने होते थे और बोतल वापस करने पर पैसे वापस मिलते थे। एक कलाकार मिर्ज़ा नूर अहमद ने 1910 में इसका लोगो डिज़ाइन किया। कहा जाता है कि रूह अफ़ज़ा में गुलाब, केवड़ा, गाजर, पालक, शराब में डुबोए किशमिश का प्रयोग किया जाता है, इन चीज़ों को ध्यान में रखकर ही लोगो डिज़ाइन किया गया था।
1947 में देश के साथ रूह अफ़ज़ा का भी हो गया बंटवारा
रूह अफ़ज़ा का अविष्कार करने वाले हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के दो बेटे थे,अब्दुल हमीद और मोहम्मद सईद। हाकिम के गुजरने के बाद और 1947 में देश का बंटवारा होने के बाद हमदर्द दो हिस्सों में बांट दी गई। हकीम अब्दुल भारत में रुक गए और हकीम मोहम्मद पाकिस्तान चले गए। 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग होने के बाद रूह अफ़ज़ा की तीसरी यूनिट बन गई। जब बांग्लादेश बना तब वहां रूह अफ़ज़ा बनाने वालों ने हमदर्द बांग्लादेश की स्थापना की. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अब अलग-अलग रूह अफ़ज़ा बनाया जाता है।