कहानी दूसरे केदार मंदिर की,  भाइयों की हत्या करने के बाद इस मंदिर में पाप धोने गए थे पांडव

punjabkesari.in Wednesday, May 21, 2025 - 07:21 PM (IST)

नारी डेस्क: हिमालय की उच्च पर्वत श्रृंखलाओं पर अवस्थित पंचकेदारों में प्रतिष्ठित द्वितीय केदार श्री मद्महेश्वर मंदिर के कपाट इस यात्रा वर्ष के लिएआज शुभ मुहूर्त पर विधि- विधान से ‘ऊं नम: शिवाय' के उदघोष के साथ खुल गये। इस अवसर पर तीन सौ से अधिक तीर्थयात्री तथा स्थानीय श्रद्धालु कपाट खुलने के साक्षी बने। कपाट खुलने के अवसर पर मंदिर को आकर्षक फूलों से सजाया गया था। कपाट खुलने की प्रक्रिया के अंतर्गत साढे दस बजे से द्वार पूजा शुरू हो गयी थी। इस दौरान भगवान मद्महेश्वर जी की चल विग्रह डोली मंदिर प्रांगण में पहुंच गयी थी।

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 पूजा-अर्चना तथा विधि विधान पूर्वक साढे ग्यारह बजे पूर्वाह्न को श्री मद्महेश्वर जी के कपाट तीर्थयात्रियों के दर्शनार्थ खोले गये। कपाट खोलने के बाद पुजारी शिवलिंग स्वामी ने भगवान मद्महेश्वर जी के स्वयंभू शिवलिंग को समाधि रूप से श्रृंगार रूप दिया। इसके साथ पहले श्रद्धालुओं ने निर्वाण दर्शन तथा तत्पश्चात श्रृंगार दर्शन किये। इससे पहले भगवान मद्महेश्वर जी की चल विग्रह डोली ने भंडार एवं बर्तनों का निरीक्षण किया। 

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 मदमहेश्वर के बारे में ये कहा जाता है कि  जो भी इंसान भक्ति या बिना भक्ति के भी मदमहेश्वर के माहात्म्य को सुनता या पढ़ता है उसे बिना कोई और चीज करे शिव के धाम की प्राप्ति हो जाती है। इसी के साथ कोई भी अगर यहां पिंडदान करता है तो उसकी सौ पुश्तें तक तर जाती हैं।  बता दें कि  पंच केदार में प्रथम केदार भगवान केदारनाथ हैं, जिन्हे बारहवें ज्योर्तिलिंग के रूप में भी जाना जाता है। द्वितीय केदार मद्मेहश्वर हैं, जबकि तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ और पंचम केदार कलेश्वर हैं।  मद्मेश्वर में भगवान शंकर के मध्य भाग के दर्शन होते हैं। दक्षिण भारत के शेव पुजारी केदारनाथ की तरह ही यहां भी पूजा करते हैं। 

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 पंचकेदार की कथानुसार महाभारत युद्ध में पांडवों द्वारा भ्रातृहत्या पाप से मुक्ति हेतु भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु शिव के पीछे हिमालय (उत्तराखंड) पहुंचे। भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदारनाथ में बस गये। पांडव भी उनके पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए। उनको आते देख भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर पशुओं के बीच चले गए। युधिष्ठिर के कहने पर भीम‌ ने विराट रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो गए। सभी पशु भीम के नीचे से निकल गए किन्तु तभी भीम ने बैल रूपी भगवान शिव की पीठ पकड़ ली, पांडवों की श्रद्धा को जान भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर पापमुक्त किया। पांडवों ने यहां पर मंदिर का निर्माण किया, जिसमें आज भी बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजित है।
 


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vasudha

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