उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में श्मशान की राख नहीं, इन 7 चीजों की भस्म से होती है महाकाल की भस्म आरती
punjabkesari.in Friday, Jun 20, 2025 - 03:34 PM (IST)

नारी डेस्क: मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर अपनी भस्म आरती के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह भस्म आरती एक बहुत ही प्राचीन और खास पूजा पद्धति है जो सदियों से चली आ रही है। हर दिन हजारों श्रद्धालु इस आरती को देखने और भाग लेने के लिए देश-विदेश से आते हैं। भस्म आरती को लेकर लोगों में यह मान्यता बनी हुई है कि इस पूजा में श्मशान की राख का इस्तेमाल होता है। लेकिन महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी इस बात को पूरी तरह से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि भस्म आरती में श्मशान की राख का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि भस्म सात अलग-अलग चीजों से बनाया जाता है।
भस्म आरती के लिए भस्म किस चीजों से बनता है?
महाकालेश्वर मंदिर में जो भस्म पूजा में चढ़ाई जाती है वह बिल्कुल शुद्ध और पवित्र होती है। यह भस्म खासतौर से कपिला गाय के गोबर से बने कंडों और कुछ खास पेड़ों की लकड़ियों को एक साथ जलाकर तैयार की जाती है। इन पेड़ों में शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर शामिल हैं। इन सातों सामग्रियों को मिलाकर भस्म बनाया जाता है, जिसे पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। पुजारियों के अनुसार, ये सामग्री पूरी तरह से शुद्ध होती है और इसका उपयोग धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
भस्म आरती कब और कितनी देर चलती है?
महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती की शुरुआत सुबह लगभग 4 बजे होती है। यह आरती लगभग दो घंटे तक चलती है। इस दौरान मंदिर में वैदिक मंत्रों का उच्चारण होता रहता है और भगवान महाकाल का सुंदर श्रृंगार भी किया जाता है। भस्म आरती के अलावा महाकालेश्वर मंदिर में दिन भर कुल 6 आरती होती हैं। हर आरती की अपनी खास समयावधि और महत्व है।
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महाकालेश्वर मंदिर में होने वाली 6 आरतियों का समय
भस्म आरती - सुबह 4:00 बजे
बालभोग आरती - सुबह 7:30 बजे
भोग आरती - सुबह 10:30 बजे
संध्या पूजा - शाम 5:00 बजे
संध्या आरती - शाम 6:30 बजे
शयन आरती - रात 10:30 बजे
महाकालेश्वर की भस्म आरती केवल एक पूजा से कहीं अधिक है। यह एक आध्यात्मिक अनुभव है जो श्रद्धालुओं के दिलों को छू जाता है। भस्म आरती के दौरान मंदिर की भव्यता और मंत्रों की ध्वनि भक्तों को एक अलग ही ऊर्जा और शांति का अनुभव कराती है। यह पूजा प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा को आज भी जीवित रखती है और भक्तों के लिए महाकाल का आशीर्वाद पाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनी हुई है।