स्कूल जाने वाले बच्चों को अक्सर होता है मूड स्विंग और चिड़चिड़ापन, अपनाएं ये 7 कारगर उपाय
punjabkesari.in Sunday, May 11, 2025 - 04:55 PM (IST)

नारी डेस्क: जब बच्चे स्कूल जाने की उम्र में होते हैं तो उनके शरीर के साथ-साथ उनका दिमाग और मन भी तेजी से बदल रहा होता है। ऐसे में कभी-कभी पेरेंट्स को यह देखकर हैरानी होती है कि उनका बच्चा पहले जैसा नहीं रहा। वह या तो बहुत गुस्सा करने लगा है, बात-बात पर चिढ़ता है या फिर बहुत ज्यादा शांत हो गया है। आज के समय में बच्चों का चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग एक आम समस्या बन गई है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं – जैसे पढ़ाई का तनाव, पूरी नींद न मिलना, दोस्तों से न बन पाना, शरीर में पोषण की कमी या फिर कोई छुपी हुई बीमारी।
अक्सर माता-पिता बच्चों के इस व्यवहार को शरारत या बदतमीजी समझकर डांटने लगते हैं, लेकिन ऐसा करना स्थिति को और बिगाड़ सकता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि बच्चों के मूड स्विंग और चिड़चिड़ेपन को कैसे समझें और आसान उपायों से कैसे उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत बनाएं।
शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा दें
बच्चों के शरीर में बहुत ऊर्जा होती है, और अगर वह ऊर्जा सही दिशा में नहीं लगाई जाए तो वे चिड़चिड़े या गुस्सैल हो सकते हैं। बच्चों को रोजाना खेलने, दौड़ने, साइकलिंग या किसी खेल में हिस्सा लेने दें। रिसर्च बताती है कि फिजिकल एक्टिविटी से शरीर में एंडोर्फिन हार्मोन निकलता है, जो मूड को अच्छा बनाता है। हर दिन कम से कम 45 मिनट तक शारीरिक गतिविधि जरूरी है।
सही खानपान का ध्यान रखें
बच्चों की डाइट सीधे उनके मूड को प्रभावित करती है। बहुत ज्यादा शुगर, जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक्स बच्चों को चिड़चिड़ा और थका हुआ बना सकते हैं। बच्चों के खाने में प्रोटीन, ओमेगा-3 फैटी एसिड, हरी सब्जियां, ताजे फल और भरपूर पानी शामिल करें। एक संतुलित आहार उनका मन शांत और स्थिर रखने में मदद करता है।
नींद का एक समय तय करें
नींद की कमी बच्चों में मूड स्विंग का बड़ा कारण हो सकती है। बच्चों को रोजाना एक ही समय पर सुलाएं और जगाएं। 6 से 12 साल के बच्चों के लिए रोजाना 9 से 12 घंटे की नींद जरूरी होती है। भरपूर नींद बच्चों के दिमाग को फ्रेश और भावनाओं को नियंत्रित रखने में मदद करती है।
स्क्रीन टाइम को सीमित करें
मोबाइल, टीवी और टैबलेट बच्चों के दिमाग को जरूरत से ज्यादा उत्तेजित कर सकते हैं। इससे वे जल्दी चिड़चिड़े और बेचैन हो सकते हैं। 5 से 10 साल के बच्चों का स्क्रीन टाइम रोजाना 1 से 1.5 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए। सोने से कम से कम 1 घंटा पहले स्क्रीन से दूरी बनाना जरूरी है।
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बच्चों से खुलकर बातचीत करें
बच्चा अगर अपने मन की बातें किसी को बता सके, तो उसका तनाव कम होता है। हर दिन कुछ समय निकालकर बच्चे को ध्यान से सुनें। उससे उसके दिन, दोस्तों, स्कूल की बातें पूछें – बिना टोके। अगर आप हर समय उसे डांटते रहेंगे, तो वह आपके साथ खुलकर बात नहीं कर पाएगा।
नियमित हेल्थ चेकअप करवाएं
कभी-कभी चिड़चिड़ापन किसी छुपी हुई हेल्थ प्रॉब्लम का संकेत होता है। जैसे आयरन की कमी, थायराइड की समस्या, पेट में कीड़े या न्यूरोलॉजिकल परेशानी। अगर बच्चा बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा हो रहा है और बदलाव नजर नहीं आ रहा, तो डॉक्टर से चेकअप जरूर कराएं। सही इलाज मिलने पर उसका व्यवहार भी बेहतर हो सकता है।
बच्चे की तुलना किसी और से न करें
बच्चों की तुलना करने से उनका आत्मविश्वास कमजोर होता है। "देखो, शर्मा जी का बेटा कितना अच्छा है!" जैसे शब्द बच्चों के दिल को चोट पहुंचाते हैं। हर बच्चे की अपनी खूबियां होती हैं, उनकी कोशिशों की सराहना करें। उन्हें यह भरोसा दिलाएं कि गलती करना भी सीखने का हिस्सा है।
स्कूल जाने वाले बच्चों में मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ापन आम बात है, लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है। माता-पिता अगर धैर्य, समझदारी और सही तरीके अपनाएं तो बच्चे को भावनात्मक रूप से मजबूत बना सकते हैं।