शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे क्यों रखी जाती हैं खीर?
punjabkesari.in Wednesday, Oct 20, 2021 - 03:21 PM (IST)
शरद पूर्णिमा भारत में हिंदू भक्तों के लिए सबसे शुभ त्योहारों में से एक है। यह देवी लक्ष्मी को समर्पित एक त्योहार है, जो अश्विन के हिंदू चंद्र मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन भक्त नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। इस दिन भक्त उपवास करते हैं और चावल की खीर बनाकर चांदनी में रखते है और अगले दिन प्रसाद के रूप में इसका सेवन किया जाता है। मगर, क्या आप जानते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन चांद के नीचे खीर क्यों रखी जाती है। चलिए जानते हैं इसकी वजह...
क्यों कहा जाता है रास पूर्णिमा?
शरद पूर्णिमा, जिसे बृज क्षेत्र में रास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है भगवान कृष्ण को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण शरद पूर्णिमा पर दिव्य प्रेम या महा-रास का नृत्य करते हैं। यह वह दिन है जब चंद्रमा सभी सोलह कलाओं या चरणों के साथ बाहर आता है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण सभी सोलह कलाओं के साथ पैदा हुए थे।
खुले आसमान के नीचे क्यों रखी जाती हैं खीर?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर खुले आसमान में रखने की परंपरा है, जिसे लोग सदियों से मानते आ रहे हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और वह इस दौरान रातभर अमृत की वर्षा करता है। ऐसे में जो कोई भी इस रात खुले आसमान में खीर रखता है और सुबह उसका सेवन करता है उसके लिए यह खीर अमृत के समान है। इसे खाने से कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
जबकि विशेषज्ञों के अनुसार, दूध में लैक्टिक एसिड बहुत अधिक होता है, जो चंद्रमा की तेज रोशनी में बढ़ जाता है। वहीं, चावल में मौजूद स्टार्च इस काम को आसान बना देता है। यह भी माना जाता है कि चांदी के बर्तन में टी रखने से यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में कारगर होता है।
धरती पर आती हैं मां लक्ष्मी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन से सर्दी शुरू हो जाती है और इस दिन चंद्र देव की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर घूमने आती हैं और जो लोग इस दिन रात में उनका आह्वान करते हैं उन्हें देवी की कृपा प्राप्त होती है। भारत के कई राज्यों में, जब कोजागरा व्रत या कौमुदी व्रत मनाया जाता है, तो शरद पूर्णिमा को कोजागरा पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा के कुछ हिस्सों में कोजागरा व्रत के दौरान देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।