Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त और पूरण विधि जानें
punjabkesari.in Saturday, Nov 01, 2025 - 05:07 PM (IST)
नारी डेस्क : हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह का शुभ पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और माता तुलसी (वृंदा) के पवित्र मिलन का प्रतीक है। तुलसी विवाह को लेकर हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। यह दिन न केवल देवउठनी एकादशी के बाद आने वाले शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि इसे घर में सुख-शांति और समृद्धि लाने वाला पर्व भी माना जाता है।
तुलसी विवाह 2025 की तिथि और समय
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि इस वर्ष 2 नवंबर 2025 (रविवार) को मनाई जाएगी।
द्वादशी तिथि की शुरुआत: 2 नवंबर सुबह 7:33 बजे
द्वादशी तिथि का समापन: 3 नवंबर सुबह 2:07 बजे
उदया तिथि के अनुसार तुलसी विवाह 2 नवंबर 2025 को ही मनाया जाएगा। यह वही दिन है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और चार महीने बाद संसार में शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है।
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिनमें पूजा का समय और मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण है
गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:35 मिनट से 6:01 मिनट तक
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:50 से 5:42 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:42 से दोपहर 12:26 तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: शाम 5:03 से अगले दिन सुबह तक
इन मुहूर्तों में से कोई भी समय तुलसी विवाह के लिए शुभ माना गया है। गोधूलि बेला में विवाह कराने का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि यह समय सबसे पवित्र और शांत होता है।
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व
तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रतीक भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता तुलसी (वृंदा) ने अपने पति जलंधर की मृत्यु के बाद भगवान विष्णु से वरदान मांगा था कि उन्हें सदा उनके साथ विवाह का सौभाग्य प्राप्त हो। तभी से भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और तुलसी देवी के प्रतीक पौधे का विवाह प्रतिवर्ष कार्तिक द्वादशी को कराया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भक्त श्रद्धा से तुलसी विवाह करते हैं, उन्हें विवाहिक सुख, दांपत्य में शांति, और घर में समृद्धि प्राप्त होती है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन आदि शुरू किए जा सकते हैं, जो देवउठनी एकादशी तक वर्जित रहते हैं।
तुलसी विवाह की पूजन विधि (Tulsi Vivah Puja Vidhi)
तुलसी विवाह को पारंपरिक तरीके से करना अत्यंत शुभ माना जाता है। पूजा की संपूर्ण प्रक्रिया इस प्रकार है
घर की सफाई और सजावट करें: सबसे पहले घर की पूरी सफाई करें। दरवाजे और आंगन को सजाएं। मुख्य द्वार पर सुंदर रंगोली बनाएं क्योंकि यह शुभता का प्रतीक है।
पीले वस्त्र पहनें: पूजा करने वाला व्यक्ति पीले रंग के कपड़े पहने, क्योंकि यह रंग सौभाग्य और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
विवाह मंडप तैयार करें: एक साफ लाल कपड़ा बिछाकर विवाह मंडप बनाएं। इसे फूलों, आम के पत्तों और केले के तनों से सजाएं ताकि यह पारंपरिक विवाह जैसा दिखे।
तुलसी और शालिग्राम की स्थापना करें: तुलसी के पौधे को मंडप में रखें और उसके पास शालिग्राम जी (भगवान विष्णु का स्वरूप) को स्थापित करें। शालिग्राम जी को नए वस्त्र पहनाएं और तुलसी माता को लाल चुनरी ओढ़ाएं।
माला पहनाएं और फेरे दिलाएं: तुलसी माता और शालिग्राम जी को फूलों की माला पहनाएं। फिर सात फेरे कराएं, जैसा कि हिंदू विवाह में किया जाता है।
आरती और भोग लगाएं: विवाह के बाद परिवार के सभी सदस्य मिलकर आरती करें। फूलों की वर्षा करें और मिठाई, फल एवं पंचामृत का भोग लगाएं। इसके बाद सभी प्रसाद ग्रहण करें।
तुलसी विवाह करने के लाभ
तुलसी विवाह करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से विवाह योग्य कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है। दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है। परिवार में आर्थिक स्थिरता और समृद्धि आती है। घर में पवित्रता और शुभता बढ़ती है। तुलसी विवाह न केवल धार्मिक रूप से पवित्र पर्व है बल्कि यह प्रेम, समर्पण और दिव्यता का भी प्रतीक है। इस दिन यदि श्रद्धा और भक्ति से पूजा की जाए तो घर में देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।
इस वर्ष 2 नवंबर 2025 को तुलसी विवाह के पावन पर्व पर भगवान विष्णु और माता तुलसी के मिलन का साक्षी बनें और अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का स्वागत करें।

