वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष पर कितनी बार लपेटे कच्चा सूत? जानिए धार्मिक महत्व
punjabkesari.in Sunday, May 25, 2025 - 12:22 PM (IST)

नारी डेस्क: इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई, सोमवार को मनाया जाएगा। इसी दिन शनि जयंती भी है जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। यह व्रत खासतौर पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं। यह व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर उन्हें जीवित किया था। इस दिन महिलाएं पूरे श्रद्धा भाव से व्रत करती हैं और वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा करती हैं।
वट वृक्ष की पूजा का महत्व
वट वृक्ष को देवी सावित्री, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का रूप माना गया है। जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु, डालियों में शिव का वास होता है। वट वृक्ष की पूजा से इन तीनों देवताओं की कृपा मिलती है और साथ ही अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
महिलाएं इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और पूजा की थाली सजाती हैं। पूजा के लिए जरूरी सामग्री होती है हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अक्षत, कलावा, फल, जल, मिठाई आदि। वट वृक्ष के पास जाकर उसकी पूजा की जाती है और तने के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर परिक्रमा की जाती है। पूजा के बाद सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है और पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है।
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कितनी बार लपेटें कच्चा सूत?
पूजा के समय वट वृक्ष पर कच्चा सूत लपेटना एक विशेष परंपरा है। परंपरा के अनुसार, महिलाएं पेड़ के चारों ओर सूत को 7, 21 या 108 बार लपेट सकती हैं। आमतौर पर 7 बार सूत लपेटने की परंपरा सबसे अधिक प्रचलित है। यह संख्या सात जन्मों के वैवाहिक बंधन का प्रतीक मानी जाती है।
वट वृक्ष की परिक्रमा और लाभ
पति की आयु में वृद्धि
वैवाहिक जीवन में सुख और शांति
संकटों से रक्षा
सात जन्मों तक अटूट वैवाहिक बंधन
देवी सावित्री और त्रिदेवों की कृपा
वट सावित्री व्रत: नारी शक्ति और समर्पण का प्रतीक
यह व्रत नारी के प्रेम, धैर्य, आस्था और त्याग का परिचायक है। देवी सावित्री ने जिस तरह अपने तप और संकल्प से अपने पति को यमराज से वापस पाया, उसी भावना को आज भी महिलाएं इस व्रत में निभाती हैं। यह दिन केवल धार्मिक महत्व का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने वाला पर्व भी है।
वट सावित्री व्रत न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह जीवन साथी के प्रति प्रेम और निष्ठा का प्रतीक है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा करके और सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करके महिलाएं अखंड सौभाग्य, सुख और समृद्धि की कामना करती हैं। श्रद्धा और आस्था से किया गया यह व्रत नारी शक्ति की गहराई को दर्शाता है।