144 साल बाद ही क्यों आता है महाकुंभ? सिर्फ 4 जगहों पर ही क्यों लगता है मेला, पढ़िए पौराणिक कथा
punjabkesari.in Monday, Jan 20, 2025 - 08:39 PM (IST)
नारी डेस्कः इस समय भारत के प्रयागराज में हो रहे महाकुंभ मेले की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। महाकुंभ मेले से कई साधु-संत की तस्वीरें व वीडियो इस समय ट्रेंड में है। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में यह मेला सनातनी धर्म में खास महत्व रखता है। दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। यह तो सब जानते हैं कि कुंभ मेला हर 12 सालों में एक बार आयोजित किया जाता है। श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम तट पर स्नान करने के लिए आते हैं। महाकुंभ मेला 45 दिनों तक चलेगा। इस दौरान श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी संगम नदी में स्नान करेंगे। कहा जाता है कि एक बार स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार पौष पूर्णिमा यानी कि 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ शुरू होने वाला है। वहीं, 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर इसका समापन होगा लेकिन महाकुंभ का मेला मनाया क्यों जाता है और यह 12 साल बाद ही क्यों आता है। तो चलिए आपको यहीं बताते हैं।
क्यों मनाया जाता है कुंभ मेला? Mahakumbh significance
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से है। कुंभ का अर्थ है घड़ा...जो भगवान धनवंतरि के हाथ में था जब समुद्र मंथन हुआ था। इस अमृत कुंभ को पाने के लिए ही देव-असुरों में युद्ध हुआ था। भगवान विष्णु के कहने पर जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। तब उन्हें समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त हुआ था।
तीन तरह के होता हैं कुंभ मेला
कुंभ मेले तीन प्रकार का होते हैं अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ, महाकुंभ। अर्धकुंभ का आयोजन हर 6 साल में सिर्फ हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। पूर्णकुंभ मेला 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। यह मेला प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित होता है। पिछली बार यह साल 2013 में आयोजित हुआ था और इस बार साल 2025 में पूर्ण कुंभ आयोजित हुआ है हालांकि इस मेले को महाकुंभ का नाम दिया है और इसके पीछे भी विशेष महत्व है।
क्या होता है महाकुंभ?
शास्त्रों की मानें तो महाकुंभ मेला ऋषि काल से मनाया जा रहा है। प्रयागराज में साल 2025 में आयोजित हो रहे मेले को महाकुंभ नाम दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब प्रयागराज में 12 बार पूर्णकुंभ हो जाते हैं तो उसे एक महाकुंभ का नाम दिया जाता है। पूर्णकुंभ 12 वर्ष में एक बार लगता है और महाकुंभ 12 पूर्णकुंभ में एक बार लगता है। इस प्रकार वर्षों की गणना करें, तो महाकुंभ 144 सालों में एक बार आयोजित होता है। इस वजह से इसे महाकुंभ कहा जाता है।
12 साल के अंतराल में ही महाकुंभ क्यों लगता है? The History of Mahakumbh | Kumbh Mela every 12 years
कहा जाता है कि जब अमृत क्लश निकला तो इंद्र देव के बेटे जयंत ने उस कलश को भगवान धनवंतरि के हाथों से छीन लिया था। दैत्य भी उनके पीछे भागे ताकि वह अमृत कलश पी सके और अमर हो जाए। जयंत 12 दिनों तक भागते रहे ताकि अमृत कलश असुरों के हाथ ना लग पाए। सूर्यदेव, चंद्रदेव, शनिदेव और बृहस्पति देव भी 12 साल जयंत के पीछे रहे ताकि अमृत कलश को सुरक्षित रख सकें। देवताओं का 1 दिन मनुष्य के 1 साल के बराबर होता है। यही वजह है कि12 साल बाद कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान जयंत के हाथ से उस अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार पवित्र स्थानों पर गिरी थी जो स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन थे। यही वजह है कि सिर्फ इन्हीं दिव्य स्थानों में कुंभ मेला लगता है। विष्णु जी ने वरदान दिया था कि जो इन पवित्र स्थानों में स्नान करेगा, उसे पापों से मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि अमृत के छींटे 12 स्थान पर गिरे थे, जिनमें से चार पृथ्वी पर थे, इन चार स्थानों पर ही कुंभ का मेला लगता है। बृहस्पति ग्रह 12 साल में 12 राशियों का चक्कर लगाता है, इसलिए कुंभ मेले का आयोजन उस समय होता है जब बृहस्पति ग्रह किसी विशेष राशि में होता है।
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कुंभ मेला कहां लगता है?
कुंभ मेले का आयोजन ऋषियों के काल से हो रहा है। हरिद्धार-गंगा नदी के किनारे, प्रयागराज-त्रिवेणी संगम, उज्जैन-शिप्रा नदी के किनारे, नासिक-गोदावरी नदी के किनारे। प्रयागराज के संगम स्थल पर गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है।
प्रयागराज को क्यों कहते हैं 'तीर्थ स्थलों का राजा'?
शास्त्रों के अनुसार, प्रयागराज को 'तीर्थ स्थलों का राजा' भी कहा जाता है। माना जाता है कि यहां पर ही ब्रह्मा जी द्वारा पहला यज्ञ किया गया था। महाभारत समेत विभिन्न पुराणों में इसे धार्मिक प्रथाओं के लिए जाना जाने वाला एक पवित्र स्थल माना गया है।
कुंभ मेले का आयोजन किस आधार पर किया जाता है?
सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की स्थिति को देखकर कुंभ मेले का स्थान निर्धारित किया जाता है। सूर्य जब मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तब कुंभ का मेला हरिद्धार में होता है। वहीं जब सूर्य-चंद्रमा मकर राशि और बृहस्पति वृषभ राशि में हो तो कुंभ मेला प्रयागराज में लगता है। सूर्य और बृहस्पति के सिंह राशि में रहने से कुंभ मेला उज्जैन में होता है। वहीं, सूर्य के सिंह और बृहस्पति के कर्क या सिंह राशि में रहने से कुंभ मेला नासिक में लगता है।
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महाकुंभ मेले में क्यों किया जाता है शाही स्नान? Mahakumbh Snan
कहा जाता है कि महाकुंभ के मेले में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पावन समय में इन नदियों के जल में अमृत के समान गुण होते हैं और स्नान करने पर सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता हैं। खासकर प्रयागराज में आयोजित होने वाले शाही स्नान का धार्मिक महत्व रहता है क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती है, इसलिए प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान शाही स्नान करने का विशेष महत्व होता है।
महाकुंभ 2025 शाही स्नान
13 जनवरी 2025, पौष पूर्णिमा- पहला शाही स्नान
14 जनवरी 2025, मकर संक्रांति- दूसरा शाही स्नान
29 जनवरी 2025, मौनी अमावस्या- तीसरा शाही स्नान
3 फरवरी 2025, बसंत पंचमी- चौथ शाही स्नान
12 फरवरी 2025, माघ पूर्णिमा- पांचवा शाही स्नान
26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि- छठवां और आखिरी शाही स्नान