Pregnancy से पहले करा लें ये टेस्ट, पता चल जाएगा कि होने वाले बच्चे को डाउन सिंड्रोम है या नहीं

punjabkesari.in Sunday, Jul 13, 2025 - 01:29 PM (IST)

नारी डेस्क: हर मां-बाप की सबसे बड़ी ख्वाहिश होती है कि उसका बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ और खुश रहे। गर्भवती महिला के लिए ये 9 महीने बहुत खास और कुछ-कुछ डराने वाले भी होते हैं, क्योंकि इस दौरान बच्चे की सेहत को लेकर कई सवाल और चिंताएं मन में आती हैं। आजकल कई ऐसी बीमारियां हैं जो बच्चे को जन्म से पहले ही हो सकती हैं जिनमें से एक है डाउन सिंड्रोम। यह एक अनुवांशिक समस्या है जो बच्चे के पूरे जीवन को प्रभावित कर सकती है। डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक (अनुवांशिक) स्थिति है जो बच्चे को गर्भ में ही हो जाती है। यह बीमारी जन्म से पहले ही हो जाती है और इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है लेकिन प्रेग्नेंसी के शुरूआती समय में कुछ खास टेस्ट करवा लेने से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

गर्भावस्था में डाउन सिंड्रोम की जांच क्यों जरूरी है?

गर्भावस्था किसी भी महिला के लिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। इस दौरान महिला को कई तरह की शारीरिक और मानसिक जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही गर्भ में पल रहे शिशु को भी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। शिशु में जन्म से पहले कुछ विकार हो सकते हैं जिनके कारण बच्चे को जीवन भर कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है या बच्चा अविकसित (कमज़ोर) हो सकता है। इनमें से एक प्रमुख विकार है डाउन सिंड्रोम। इंडियन पीडियाट्रिक सोसाइटी के अनुसार हर 800 में से एक बच्चे को यह सिंड्रोम हो सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराना बहुत जरूरी है।

डाउन सिंड्रोम के प्रकार और कारण

ट्राइसॉमी 21 – सबसे सामान्य प्रकार जिसमें 21वें गुणसूत्र की तीन प्रतियां होती हैं।

ट्रांसलोकेशन – इसमें 21वें गुणसूत्र का हिस्सा दूसरे गुणसूत्र से जुड़ जाता है।

मोजेकिज्म – इसमें कुछ कोशिकाओं में डाउन सिंड्रोम होता है और कुछ में नहीं।

डाउन सिंड्रोम के कारण बच्चे कई गंभीर बीमारियों के साथ पैदा होते हैं। उन्हें जीवन भर मेडिकल देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे बच्चे सीखने और समझने में धीमे होते हैं। इस विकार का पता बच्चे के जन्म से पहले ही लगाया जा सकता है।

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डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए कौन-कौन से टेस्ट जरूरी हैं?

फर्स्ट ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट

यह टेस्ट गर्भावस्था के 11 से 13 सप्ताह के बीच किया जाता है। इसमें दो जांच शामिल होती हैं
NT स्कैन (न्यूकल ट्रांसलूसेंसी स्कैन): यह अल्ट्रासाउंड टेस्ट होता है जिसमें बच्चे के गर्दन के पीछे की त्वचा की मोटाई को मापा जाता है।
ब्लड टेस्ट: रक्त की जांच करके कुछ खास हॉर्मोन और प्रोटीन का स्तर पता लगाया जाता है।

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सेकंड ट्राइमेस्टर स्क्रीनिंग टेस्ट

यह टेस्ट गर्भावस्था के 15 से 20 सप्ताह के बीच किया जाता है। इसमें बच्चे के विकास और स्वास्थ्य की जांच की जाती है।

कंबाइंड टेस्ट

यह फर्स्ट और सेकंड ट्राइमेस्टर टेस्ट का संयोजन होता है। इसे करने से अधिक सटीक और विश्वसनीय परिणाम मिलते हैं।

सेल-फ्री डीएनए (cfDNA) टेस्ट

यह एक नया और आधुनिक टेस्ट है जिसे गर्भावस्था के 10 सप्ताह से किया जा सकता है। इसमें माँ के रक्त से प्लेसेंटा के डीएनए की जांच की जाती है। यह टेस्ट गुणसूत्र 21 की अतिरिक्त प्रतियां खोजने में मदद करता है, जो डाउन सिंड्रोम का मुख्य कारण होती हैं।

क्या डाउन सिंड्रोम का इलाज संभव है?

डॉक्टर बताते हैं कि डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है। यह बीमारी जन्म से पहले हो जाती है और जन्म के बाद इसे ठीक करना संभव नहीं होता। हालांकि, थेरेपी और विशेष देखभाल की मदद से डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चे की जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है। इसमें शारीरिक, मानसिक और भाषाई विकास के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं।

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गर्भावस्था के दौरान डाउन सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारी की जांच कराना बहुत जरूरी है। इससे न केवल बच्चे के स्वास्थ्य की जानकारी मिलती है बल्कि परिवार को सही निर्णय लेने में भी मदद मिलती है। यदि आप गर्भवती हैं या गर्भधारण की योजना बना रही हैं, तो समय-समय पर डॉक्टर से सलाह लेकर जरूरी टेस्ट जरूर कराएं ताकि आपका बच्चा स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सके।


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Content Editor

PRARTHNA SHARMA

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