कहानी कामिनी सिन्हा की: विदेशी भी हुए इनके काम के मुरीद, कभी पेंटिंग के खिलाफ था परिवार
punjabkesari.in Tuesday, Feb 09, 2021 - 02:20 PM (IST)
एक महिला को सफलता पाने के लिए कईं मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। कभी घर परिवार से सपोर्ट न मिलना तो कभी परिवार की जिम्मेदारियां सिर पर पड़ जाना लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं है कि हम हार मान जाए और अपनी कला और करियर को ही भूल जाए। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने सफलता पाने के लिए काफी संघर्ष किया। घर वालों के खिलाफ भी गई और आज उनका नाम विदेशों तक सब जानते हैं।
विदेशों तक फेमस है कामिनी सिन्हा
दरअसल हम कामिनी सिन्हा की बात कर रहे हैं। जिन्होंने रांची में सोहराई और मधुबनी पेंटिंग से अपनी कला और अपनी मेहनत से सफलता को हासिल किया। उनकी कला के न सिर्फ आस-पास के लोग बल्कि विदेशों तक उनके ग्राहक हैं। हालांकि एक समय ऐसा भी था कि कामिनी के ससुराल वाले इसके खिलाफ थे लेकिन उन्होंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि उन्होंने कभी भी आर्ट की ट्रेनिंग नहीं ली है बल्कि वह बचपन से ही इसे किया करती थी।
सोहराई और मधुबनी पेंटिंग से बनाई पहचान
आज के समय में हमारे भारत देश की ऐसी बहुत सी कलाएं हैं जो कहीं न कहीं लुप्त हो गई हैं और इन्हीं में से एक है सोहराई और टिकूली कला लेकिन कामिनी ने इसे ही अपनी पहचान बनाया और आज विदेशों तक अपनी पहचान बना ली है।
ससुराल वालों का नहीं मिला सपोर्ट
कामिनी की मानें तो उनके घर में शुरू से ही पढ़ाई और लिखाई को माहौल था लेकिन उन्हें बचपन से ही आर्ट और कला में रूचि थी लेकिन परिवार का कहना था उन्हें पढ़ाई करनी है और सरकारी नौकरी लेनी है लेकिन इसके बाद कामिनी की शादी हो गई जिसके बाद बच्चे होने के बाद उनके पास समय की कमी हो गई लेकिन वह अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहती थी हालांकि परिवार वालों की तरफ से उन्हें कभी सपोर्ट नहीं मिला।
घर वालों से छिप कर किया काम
कहते हैं न कि अगर आपमें कुछ कर गुजरने की और कुछ पाने की चाह हो तो आपको सफलता पाने से कोई नहीं रोक सकता है और ऐसा ही कुछ हुआ कामिनी के साथ। कामिनी को बेशक परिवार वालों का सपोर्ट नहीं मिला लेकिन उन्होंने घर वालों से छिपकर ही काम पर जाना शुरू किया।
धीरे-धीरे मिलने लगे ऑर्डर
कामिनी आज साड़ी से लेकर कुशन कवर तक वर्क करती है और इसी की बदौलत कामिनी को धीरे-धीरे बाजार से ऑर्डर मिलने लगे। इसके बाद जब परिवार को इस बारे में पता चला तो उनका भरपूर सपोर्ट मिला। आज कामिनी हर एक प्रोडक्ट पर वर्क कर लेती है। साड़ी, बेडशीट, कुशन कवर, स्टाॅल, दुपट्टा, वेस्टकोट, क्लच, बैग, घर में सजावट के सामान आदि सभी पर सोहराई, टिकूली और मधुबनी पेंटिग बनाती हैं। इतना ही नहीं आज कामिनी का सामान रामगढ़, पटना, इंदौर, भोपाल, दिल्ली, इलाहाबाद, ओडिशा, दिल्ली के साथ विदेशों में भी सप्लाई होता है।
महिलाओं को बना रही आत्मनिर्भर
इतना ही नहीं कामिनी आज खुद के साथ-साथ बाकी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रही है। वह जनजाति महिलाओं को आदिवासी और लोक कला आर्ट वर्क की फ्री ट्रेनिंग भी देती हैं। इसके कारण आज वह महिलाएं अपनी आजीविका कमा रही हैं। इतना ही नहीं कामिनी के साथ मधुबनी पेंटिंग करने में लगभग 45 महिलाएं जुड़ी हुई हैं।
सच में हम भी कामिनी के इस साहस को सलाम करते हैं।