महाकुंभ स्पेशल: सिर्फ इन 4 जगहों पर ही क्यों लगता है कुंभ मेला, समुद्र मंथन का क्या है इससे नाता?
punjabkesari.in Wednesday, Nov 27, 2024 - 07:22 PM (IST)
नारी डेस्क: महाकुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक मेला है, जिसे हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे विश्व का सबसे बड़ा जनसमूह भी कहा जाता है। महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में होता है और यह चार पवित्र स्थलों पर बारी-बारी से आयोजित किया जाता है: हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक।
महाकुंभ का इतिहास
महाकुंभ मेले की परंपरा प्राचीन हिंदू ग्रंथों और पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। इसकी शुरुआत समुद्र मंथन की कहानी से मानी जाती है। कहा जाता है जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत कलश की कुछ बूंदें चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, उज्जैन) पर गिरीं। इन स्थानों को पवित्र माना गया और यहीं पर कुंभ मेले की परंपरा शुरू हुई। यह मेला धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
कुंभ के प्रकार
पूर्ण कुंभ मेला: हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है।
अर्धकुंभ मेला: हर 6 साल में होता है।
महाकुंभ मेला: यह 12 पूर्ण कुंभों के बाद यानी 144 वर्षों में एक बार आयोजित होता है।
माघ मेला: हर साल प्रयागराज में माघ महीने में होता है। इसे छोटे कुंभ के रूप में भी जाना जाता है।
महाकुंभ का महत्व
इसमें स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ के दौरान भव्य पूजा, भजन-कीर्तन और संतों के प्रवचन आयोजित होते हैं। यह मेला भारतीय संस्कृति, कला और परंपरा को समझने का अवसर प्रदान करता है।
आयोजन स्थल
महाकुंभ मेला हर 12 साल में चार पवित्र स्थलों पर क्रमशः होता है:
हरिद्वार (गंगा नदी)
प्रयागराज (गंगा, यमुना और सरस्वती संगम)
उज्जैन (क्षिप्रा नदी)
नासिक (गोदावरी नदी)
विशेष जानकारी
महाकुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इसमें साधु-संतों, अखाड़ों और नागा साधुओं की उपस्थिति इसे विशेष बनाती है। यह मेला भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। महाकुंभ मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सामाजिक समरसता का जीवंत उदाहरण है।