क्या कभी सोचा है जगन्नाथ जी की मूर्ति के क्यों नहीं है हाथ-पैर, जानिए  बड़ी-बड़ी आंखों का रहस्य

punjabkesari.in Thursday, Jun 26, 2025 - 03:38 PM (IST)

नारी डेस्क: भगवान जगन्नाथ, जिन्हें "जगत के नाथ" या "ब्रह्मांड के स्वामी" के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के एक रूप हैं।  पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ एक विशिष्ट, प्रतीकात्मक रूप में पूजे जाते हैं, जिनमें बड़ी  बड़ी-बड़ी आंखें, नाक में नथ और अधूरा शरीर हे। भगवान जगन्नाथ का अद्भुत और रहस्यमय स्वरूप सदियों से भक्तों और शोधकर्ताओं के लिए जिज्ञासा का विषय रहा है। उनके इस अनोखे रूप के पीछे कई *धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे की मान्यताएं:
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अधूरा लेकिन दिव्य रूप

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों में हाथ-पांव नहीं है और इनका रूप अधूरा लगता है, लेकिन यह अधूरापन ईश्वर की पूर्णता को दर्शाता है। मान्यता है कि यह रूप  ईश्वर के हर रूप से परे है  वह शरीर से नहीं, भावना से पूजे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ की बड़ी गोल आंखें  हमेशा खुली रहती हैं। यह दर्शाता है कि भगवान कभी नहीं सोते, वह अपने भक्तों की हर क्षण रक्षा करते हैं। यह सर्वदृष्टा रूप का प्रतीक है, वह हर जगह, हर समय देख रहे हैं।

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इस रूप से जुड़ी कहानी

एक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में रहने लगे थे, तो वृंदावन से नंद बाबा, यशोदा माता और रोहिणी मां उनसे मिलने आए थे। द्वारका में एक दिन रोहिणी माता द्वारकावासियों को भगवान श्रीकृष्ण के वृंदावन में की गई रासलीला सुना रही थी। जब भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला की कथाओं में द्वारकावासी डूबे हुए थे, तो दरवाजे पर सुभद्रा और उनके भाई बलभद्र और श्री कृष्ण भी उनके पास खड़े होकर छुपकर कथा सुन रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण की अनोखी कथाएं सुनकर तीनों की आंखे हैरानी से बड़ी थी। उसी समय नारद मुनि भी धरती पर आये और उन्होंने तीनों भाई-बहन को इस स्वरूप में देखकर भावविभोर हो उठे। उनकी विनती थी कि सभी भक्त भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई-बहन के इस अनोखे रूप के दर्शन कर सकें।


भक्तों के लिए बनाई गई ऐसी मूर्ति

यह भी माना जाता है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों और कारीगरों ने भक्तों के बीच विस्मय और श्रद्धा की भावना पैदा करने के लिए उनकी आंखे ऐसी बनाई है। भक्तों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ की बड़ी आंखें नेत्र रोगों से पीड़ित लोगों के लिए आशीर्वाद का प्रतीक हैं। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति नीम के विशेष वृक्ष (दारु) से बनाई जाती है, जिसमें स्वयं ईश्वर का वास होता है। इस लकड़ी से बनी मूर्ति को जीवित मूर्ति माना जाता है, इसलिए इसे बार-बार बदला जाता है (इस प्रक्रिया को "नबकलेबर" कहते हैं)।

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भावना से ऊपर है स्वरूप

भगवान जगन्नाथ का रूप यह सिखाता है कि ईश्वर की अनुभूति रूप, रंग और शरीर से नहीं होती  वह तो श्रद्धा, प्रेम और भक्ति से अनुभव किए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का यह रहस्यमय स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि ईश्वर न तो किसी शरीर तक सीमित हैं, न किसी भाषा या रूप तक। उनका दर्शन एकआध्यात्मिक अनुभूति है, जो केवल श्रद्धा से संभव है।


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Content Writer

suman prajapati

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