स्कूल से लौटते ही 'नजरबंद' हो रहे बच्चे! बाहर खेलने नहीं जा रहे, विशेषज्ञों ने जताई चिंता
punjabkesari.in Friday, Sep 05, 2025 - 12:07 PM (IST)

नारी डेस्क: बदलते दौर में जहां बच्चों की पढ़ाई और स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ता जा रहा है, वहीं एक और गंभीर समस्या उभर कर सामने आ रही है। स्कूल से घर लौटने के बाद बच्चे बाहर खेलने नहीं जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ट्रेंड बच्चों के शारीरिक विकास और मानसिक स्वास्थ्य – दोनों के लिए खतरनाक संकेत है।
यूरोप और एशिया के बच्चों पर हुआ शोध
हाल ही में हुए एक अंतरराष्ट्रीय शोध में यूरोप और एशिया के देशों के 7 से 12 वर्ष के बच्चों को शामिल किया गया। इस अध्ययन में चौंकाने वाली बातें सामने आईं 34% बच्चे स्कूल के बाद कभी बाहर नहीं खेलते। 20% बच्चे सिर्फ हफ्ते में एक बार बाहर खेलने जाते हैं। यह स्थिति दक्षिण एशियाई देशों में और भी ज्यादा चिंताजनक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस "खेल से दूरी" की आदत का असर बच्चों की सेहत पर दीर्घकालिक रूप से पड़ रहा है।
शारीरिक विकास पर सीधा असर
बाहर खेलने से बच्चों की मांसपेशियां, हड्डियां और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। जब बच्चे दौड़ते-भागते हैं, तो उनकी कैलोरी बर्न होती है और मोटापे की संभावना कम होती है। लेकिन अब मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। बच्चों की ऊर्जा का स्तर गिर रहा है। रोज़ाना के एक्टिव मूवमेंट्स में भारी कमी आ रही है। विशेषज्ञ इसे "साइलेंट हेल्थ क्राइसिस" बता रहे हैं।
मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान
खेल सिर्फ फिजिकल एक्टिविटी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक विकास का भी ज़रिया है। जब बच्चे बाहर दोस्तों के साथ खेलते हैं, तो उनमें टीमवर्क की भावना, नेतृत्व क्षमता, भावनात्मक संतुलन, और तनाव से मुकाबला करने की ताकत विकसित होती है लेकिन अब ज़्यादातर बच्चे स्क्रीनों में उलझे रहते हैं मोबाइल, टैबलेट या टीवी में। इससे एकांतप्रियता (isolation) बढ़ती है तनाव और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं पनपने लगती हैं। कुछ मामलों में डिप्रेशन तक देखा गया है।
शहरों में खेलने की जगह भी बनी चुनौती
विशेषज्ञों के अनुसार, शहरीकरण और सुरक्षित खेल स्थानों की कमी भी एक बड़ी वजह है। कई पेरेंट्स बच्चों को बाहर भेजने से डरते हैं, क्योंकि ट्रैफिक का डर, अपरिचित लोगों से खतरा और आसपास मैदानों की कमी इन वजहों से बच्चे घर में कैद हो रहे हैं, और उन्हें खेलने के बजाय मोबाइल थमा दिया जाता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
"बच्चों का हर दिन कम से कम 1 घंटे का फिजिकल प्ले बहुत जरूरी है। सिर्फ स्कूल का पीटी पीरियड काफी नहीं है। अगर बच्चे बाहर नहीं जाएंगे, तो उनका शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास प्रभावित होगा।"
समाधान क्या हो सकते हैं?
पेरेंट्स बच्चों को एक्टिव खेलने के लिए प्रेरित करें। सोसाइटी या कॉलोनी में सुरक्षित खेलने की व्यवस्था करें। स्क्रीन टाइम को सीमित करें। बच्चों के लिए आउटडोर एक्टिविटीज़ प्लान करें (संडे स्पोर्ट्स, साइक्लिंग, पार्क विजिट आदि) स्कूल्स भी बच्चों के प्ले टाइम को महत्व दें।
बचपन खेलने-कूदने का समय होता है। अगर बच्चे इसी उम्र में 'नजरबंद' होकर घरों में कैद हो जाएंगे, तो उनके व्यक्तित्व का विकास अधूरा रह जाएगा। समय है कि हम चेतें और बच्चों को खेलने के लिए फिर से खुला आसमान, हरियाली और हंसी-खुशी वाला माहौल दें।