क्या इस बार दुर्गा मूर्ति का निर्माण रह जाएगा अधूरा? वेश्याओं के आंगन की मिट्टी देने से किया इंकार
punjabkesari.in Thursday, Aug 22, 2024 - 05:08 PM (IST)
देश के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया कोलकाता के सोनागाछी इलाके की वेश्याओं ने अपने आंगन की मिट्टी देने से इनकार कर दिया है, जिसका इस्तेमाल बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा के लिए मूर्तियां बनाने में किया जाता है। कोलकाता के सरकारी आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के विरोध में उन्होंने ये फैसला लिया।
हर साल रेड लाइट एरिया से आती है मिट्टी
परंपरा के अनुसार, कोलकाता में दुर्गा की मूर्ति के लिए मिट्टी सोनागाछी से खरीदी जाती है। यह कोलकाता का रेड लाइट एरिया है, जहां वेश्याएं रहती हैं। वेश्याओं के आंगन की मिट्टी को 'निषिद्धो पाली की मिट्टी’ कहा जाता है। मान्यतानुसार जब तक इस जगह की मिट्टी नहीं मिलती है तब तक दुर्गा मूर्ति का निर्माण अधूरा माना जाता है। यदि किसी वजह से इस मिट्टी के बिना ही दुर्गा प्रतिमा बना दी जाती है तो उस मूर्ति का पूजन माता दुर्गा स्वीकार नहीं करती हैं।
कोलकाता कांड के विरोध में लिया ये फैसला
दरअसल यौनकर्मी काफी समय से इस पेशे के लिए कानूनी वैधता की मांग कर रहे थे। इस साल हम महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के विरोध में वह अपने आंगन की मिट्टी नहीं चढ़ा रहे हैं। उनका मानना है कि अक्सर बलात्कार की शिकार महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता। अब समय आ गया है कि हम इस मामले में विरोध की आवाज उठाएं और इसलिए हमने अपने आंगन की मिट्टी देने से इनकार करने का फैसला किया है।"
बलात्कार के खिलाफ लगातार उठा रहे हैं आवाज
पिछले कुछ दिनों में राज्य के विभिन्न रेड लाइट इलाकों की सेक्स वर्करों ने इस जघन्य अपराध के विरोध में रैलियां निकालीं। उनके सभी विरोध प्रदर्शनों का एक ही नारा था - "जरूरत पड़े तो हमारे पास आओ, लेकिन किसी महिला का बलात्कार मत करो।" कोलकाता में पहले से ही कुछ सामुदायिक दुर्गा पूजा समितियों ने राज्य सरकार द्वारा उन्हें दिए जाने वाले वार्षिक दान को अस्वीकार कर दिया है। इस साल दान की राशि पिछले साल के 70,000 रुपये से बढ़ाकर 85,000 रुपये कर दी गई है।
वेश्यालय से मिट्टी मांगने की प्रथा है पुरानी
मान्यता यह है कि वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिस्कृत माना जाता है और उन्हें एक सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए इस प्रथा का चलन शुरू किया गया था। माना तो यह भी जाता है कि प्रतिमा बनाने वाला व्यक्ति भी माता के प्रति इतना समर्पित होता है कि वैश्यालय के अंगने की मिट्टी लाने के समय उसके मन में बुरे विचार नहीं आते और एक तरह से ऐसा करते हुए वह व्यक्ति अपना कमिटमेंट पूरा कर रहा होता है। इस परीक्षा से गुज़रने के बाद ही उसे प्रतिमा निर्माण करने के काबिल समझा जाता है। पहले के समय में केवल मंदिर का पुजारी ही वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से उनके आंगन की मिट्टी मांगते थे, परंतु अब पुजारी के अलावा मूर्तिकार भी वेश्यालय से मिट्टी मांगने जाते है।