रक्षाबंधन की शुरुआत: सबसे पहले पत्नी ने बांधा था रक्षा सूत्र, जानिए इस पर्व की पौराणिक कथा

punjabkesari.in Friday, Aug 08, 2025 - 02:59 PM (IST)

 नारी डेस्क: रक्षाबंधन भाई-बहन के प्यार का त्योहार माना जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी दीर्घायु और खुशहाली की कामना करती हैं। बदले में भाई उन्हें रक्षा का वचन देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राखी बांधने की परंपरा केवल भाई-बहन के रिश्ते से नहीं, बल्कि इससे भी पहले की पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई है? अयोध्या के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम के अनुसार, रक्षाबंधन की परंपरा की शुरुआत भविष्य पुराण, महाभारत, स्कंद पुराण और पद्म पुराण जैसी धार्मिक पुस्तकों में मिलती है। आइए, आसान भाषा में जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ प्रमुख पौराणिक कहानियां।

 भविष्य पुराण की कथा: पहली राखी पत्नी ने पति को बांधी

एक बार देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें दानव हावी हो रहे थे। देवराज इंद्र परेशान होकर देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। बृहस्पति की सलाह पर इंद्र की पत्नी शची (इंद्राणी) ने एक रेशमी धागे को मंत्रों से अभिमंत्रित कर, युद्ध पर जाते हुए अपने पति की कलाई में बांध दिया। उस दिन सावन की पूर्णिमा तिथि थी। माना जाता है, यही रक्षा सूत्र बांधने की सबसे पहली परंपरा थी और वो भी पति-पत्नी के रिश्ते से जुड़ी हुई।

 महाभारत की कथा: द्रौपदी ने बांधी थी श्रीकृष्ण को राखी

जब भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया, तो उनकी उंगली कट गई। द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांध दिया। श्रीकृष्ण ने इस भावनात्मक पल को बहन का प्रेम समझा और चीरहरण के समय द्रौपदी की लाज बचाकर उसका कर्ज चुकाया। यह घटना भी सावन की पूर्णिमा को ही हुई थी। इसी से राखी को भाई-बहन के रिश्ते से जोड़ा जाने लगा।

 पद्म और स्कंद पुराण की कथा: लक्ष्मी और राजा बलि

जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और असुरराज बलि से तीन पग भूमि मांगी, तो उन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तीनों नाप लिए। बलि ने तीसरे पग के लिए अपना सिर आगे कर दिया, जिससे खुश होकर विष्णु ने उसे रसातल का राजा बना दिया और वचन दिया कि वे बलि के साथ रहेंगे। विष्णु के न लौटने से लक्ष्मी जी चिंतित हो गईं। नारद मुनि की सलाह पर वह बलि के पास गईं और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बलि ने बदले में विष्णु को लक्ष्मी के साथ लौट जाने की अनुमति दी। ये घटना भी सावन की पूर्णिमा पर ही हुई थी।

 रक्षाबंधन की परंपरा यहीं से हुई शुरू

इन सभी कथाओं के आधार पर माना जाता है कि रक्षाबंधन की परंपरा केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका संबंध रक्षा, प्रेम और विश्वास से है। समय के साथ यह परंपरा सामाजिक त्योहार बन गई, जिसमें बहनें भाइयों को राखी बांधती हैं और भाई उन्हें रक्षा और स्नेह का वचन देते हैं।

 रक्षाबंधन 2025 की तिथि और महत्व

इस साल रक्षाबंधन 9 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन सावन मास की पूर्णिमा है और साथ ही अत्यंत शुभ योग बन रहे हैं, जो भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत बनाने वाले होंगे। रक्षाबंधन सिर्फ एक राखी का त्योहार नहीं, बल्कि यह आस्था, अपनापन और सुरक्षा के वादे का पर्व है। इसकी जड़ें इतिहास और धर्म से जुड़ी हुई हैं, और इसका संदेश है  "जहां प्रेम और विश्वास है, वहीं सच्चा रक्षाबंधन है।"  

 


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Content Editor

Priya Yadav

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