9 महीने और 9 दिन ही क्यों गर्भ में रहता है बच्चा? कभी सोची है इसके पीछे की वजह
punjabkesari.in Thursday, May 01, 2025 - 06:13 PM (IST)

नारी डेस्कः एक बच्चा मां के गर्भ में 9 महीने और 9 दिन रहता है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि वह 9 महीने और 9 दिन ही क्यों रहता है तो बता दें कि इसका वैज्ञानिक आधार है। सिर्फ वैज्ञानिक ही बल्कि ज्योतिष दृष्टिकोण से जोड़ कर भी देखा जाता है। चलिए इसको विस्तार से समझते हैं।
हमारे ब्रह्मांड के 9 ग्रह है और वह नौ के नौ ग्रह अपनी-अपनी किरणों से गर्भ मे पल रहे बच्चे को विकसित करते हैं। हर ग्रह अपने स्वभाव के अनुरूप शिशु के शरीर के भागों को विकसित करता है। प्रेगनेंसी के हर महीने में किसी ना किसी ग्रह का प्रभाव रहता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जानिए कि बच्चा गर्भ में 9 महीने 9 दिन क्यों रहता है?
मनुष्य के भ्रूण (Foetus) को पूरी तरह विकसित होने के लिए औसतन 266 से 280 दिन (लगभग 9 महीने 9 दिन) की आवश्यकता होती है। इसके पीछे कई कारण है। जैसेः
हर अंग का विकास धीरे-धीरे होता है।
पहले 3 महीने में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और दिल बनते हैं।
4-6 महीने में हाथ-पैर, फेफड़े, आंखें विकसित होती हैं।
अंतिम 3 महीने में शिशु का वजन और दिमाग की ग्रोथ होती है।
मां के शरीर से पोषण धीरे-धीरे भ्रूण को मिलता है और शरीर उसे सहन करने के लिए समय लेता है। 9 महीनों का समय पूर्ण रूप से शारीरिक, मानसिक और जैविक विकास के लिए आदर्श माना गया है।
ज्योतिष दृष्टिकोण से जानिए कि बच्चा गर्भ में 9 महीने 9 दिन क्यों रहता है?
गर्भ के 9 माह का समय और 9 अंक का गहरा रहस्य है। गर्भ में 9 महीने 9 दिन का रहना केवल जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि ज्योतिष और आध्यात्मिक ऊर्जा का भी एक संतुलन है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार, हर माह में एक विशेष ग्रह का प्रभाव शिशु पर पड़ता है, जिससे उसका शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास प्रभावित होता है। 9 अंक ग्रहों की कुल संख्या का प्रतिनिधित्व करता है यानि सूर्य से लेकर केतु तक। भारतीय ज्योतिष में यह अवधि नवग्रहों की शक्ति को संचित करने की अवधि मानी जाती है। हर ग्रह का प्रभाव गर्भ के किसी एक महीने पर होता है। जैसे:
प्रैगनेंसी के पहले महीना – चंद्र (Moon)
प्रभाव: चंद्र मन, भावना और जल तत्व का कारक है। इस माह में शिशु की मानसिक क्षमता, भावनाएं, संवेदनशीलता और मन की स्थिति का बीजारोपण होता है। यदि मां शांत, प्रसन्न और संतुलित रहे तो शिशु में भी यह गुण आते हैं।
उपाय: मां को इस माह शांति, ध्यान, चंद्र मंत्र ("ॐ सोम सोमाय नमः") और शांत संगीत सुनना चाहिए।
प्रैगनेंसी का 2वां महीना – मंगल (Mars)
प्रभाव: मंगल ऊर्जा, रक्त, साहस और शरीर की मांसपेशियों का प्रतीक है।
इस दौरान शरीर का ढांचा, रक्तसंचार प्रणाली और जोश का विकास होता है।
मां की चिंता, गुस्सा या तनाव का असर बच्चे की प्रकृति पर पड़ सकता है।
उपाय: हल्का-फुल्का व्यायाम करें, गर्म और पौष्टिक भोजन लें, मंगल मंत्र जपें ("ॐ भौमाय नमः")।
प्रैगनेंसी का 3वां महीना – बुध (Mercury)
प्रभाव: बुध बुद्धि, संवाद, तर्क, भाषण और स्मृति का कारक है। इस समय बच्चे की बुद्धिमत्ता, स्मरणशक्ति और संवाद क्षमता विकसित होती है।
उपाय: मां को अच्छी किताबें पढ़नी चाहिए, सकारात्मक बातें सुननी चाहिए और बुध मंत्र ("ॐ बुधाय नमः") का जप करना चाहिए।
प्रैगनेंसी का 4वां महीना – गुरु (Jupiter)
प्रभाव: गुरु ज्ञान, नैतिकता, आध्यात्मिकता और धार्मिक संस्कारों का प्रतीक है। शिशु की धार्मिक प्रवृत्ति, सत्य और सदाचार की समझ इसी महीने में बनती है।
उपाय: भगवद्गीता, रामायण का पाठ या श्रवण करें, गुरु मंत्र जपें ("ॐ बृहस्पतये नमः")।
प्रैगनेंसी का 5वां महीना – शुक्र (Venus)
प्रभाव: शुक्र सुंदरता, प्रेम, सौंदर्य, कला और भावनात्मक आकर्षण का प्रतिनिधित्व करता है।
इस माह शिशु की सौंदर्य भावना, आकर्षण क्षमता, काव्य, संगीत व कला के गुण पनपते हैं।
उपाय: मधुर संगीत, कला, प्राकृतिक सौंदर्य के संपर्क में रहें, शुक्र मंत्र जपें ("ॐ शुक्राय नमः")।
प्रैगनेंसी का 6वां महीना – शनि (Saturn)
प्रभाव: शनि अनुशासन, संयम, धैर्य, संघर्ष और कर्म का प्रतिनिधि है। इस समय शिशु में धीरज, सहनशीलता और कर्मशील स्वभाव का निर्माण होता है।
उपाय: मां को अधिक अनुशासित दिनचर्या अपनानी चाहिए, शनि मंत्र जपें ("ॐ शनैश्चराय नमः")।
प्रैगनेंसी का 7वां महीना – सूर्य (Sun)
प्रभाव: सूर्य आत्मा, नेतृत्व, तेज, आत्मविश्वास और पिता का प्रतीक है। शिशु के नेतृत्व गुण, आत्मबल और तेजस्विता इसी माह विकसित होती है।
उपाय: सुबह सूरज की धूप लें, सूर्य नमस्कार करें, सूर्य मंत्र जपें ("ॐ सूर्याय नमः")।
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प्रैगनेंसी का 8वां महीना – राहु (Rahu)
प्रभाव: राहु इच्छाओं, भ्रम, तकनीक और विदेशी प्रभावों का प्रतिनिधित्व करता है। यह माह शिशु की आधुनिक सोच, कल्पनाशक्ति या भटकाव को प्रभावित कर सकता है।
उपाय: मां को किसी भी भ्रम या चिंता से बचना चाहिए। "ॐ राहवे नमः" मंत्र का जप करें।
प्रैगनेंसी का 9वां महीना – केतु (Ketu)
प्रभाव: केतु मोक्ष, आत्मा, ध्यान, वैराग्य और गूढ़ ज्ञान का प्रतीक है। इस समय शिशु में आध्यात्मिक झुकाव, अंतर्ज्ञान और शांति के गुण आते हैं।
उपाय: मां को ध्यान, जप और मौन साधना करनी चाहिए। केतु मंत्र – "ॐ केतवे नमः"।
डिस्कलैमरः गर्भ के 9 महीने केवल शरीर की रचना नहीं, बल्कि हर ग्रह की ऊर्जा से शिशु के चरित्र, मन, संस्कार और गुणों का निर्माण होता है। ज्योतिष और वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिलकर बताते हैं कि यह समय एक दिव्य चक्र की तरह है, जिसमें हर ग्रह की भूमिका अहम है इसलिए 9 महीने 9 दिन का समय एक पूर्ण आध्यात्मिक और ग्रह-शक्ति चक्र माना जाता है। यह सारी जानकारी केवल इंटरनेट के माध्यम से ली गई है। स्टीक जानकारी के लिए किसी योग्य ज्योतिष से सलाह ले तो अच्छा है।