जानिए ये Sugar Board क्या है? कैसे रखेगे बच्चों की चीनी पर कंट्रोल

punjabkesari.in Sunday, Jun 01, 2025 - 01:44 PM (IST)

नारी डेस्क: भारत में बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज और मोटापे के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इन बीमारियों का एक मुख्य कारण अधिक चीनी का सेवन है जो बच्चों के दैनिक आहार में आम होता जा रहा है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने एक महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम उठाया है। CBSE ने सभी संबद्ध स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे स्कूल परिसर में ‘शुगर बोर्ड’ लगाएं ताकि छात्रों को अधिक चीनी सेवन से होने वाले नुकसान की जानकारी दी जा सके।

क्या होता है ‘शुगर बोर्ड’?

‘शुगर बोर्ड’ एक प्रकार का सूचना प्रदर्शक (डिस्प्ले बोर्ड) है जिसे स्कूल में प्रमुख स्थानों पर लगाया जाएगा। इस बोर्ड पर यह जानकारी दी जाएगी कि हमारे रोजमर्रा के पेय पदार्थों जैसे कोल्ड ड्रिंक्स, पैकेज्ड जूस, और स्नैक्स में कितनी चीनी होती है। अधिक चीनी खाने से शरीर को कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं। हमें एक दिन में अधिकतम कितनी चीनी का सेवन करना चाहिए।

उदाहरणों से जागरूकता

इन शुगर बोर्ड्स पर बच्चों को रोजाना इस्तेमाल होने वाले उत्पादों की चीनी की मात्रा दिखाई जाएगी जैसे

300 मिली कोल्ड ड्रिंक में लगभग 8 चम्मच चीनी होती है।
125 मिली मैंगो ड्रिंक में लगभग 5 चम्मच चीनी होती है।
1 चॉकलेट बार में औसतन 4-6 चम्मच चीनी हो सकती है।
फ्लेवर मिल्क, फ्रूट योगर्ट और पैक्ड कुकीज़ जैसे खाद्य उत्पादों में भी अत्यधिक चीनी होती है। इस तरह के आंकड़े बच्चों के लिए आसानी से समझने योग्य होंगे और उन्हें सोचने पर मजबूर करेंगे।

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बच्चों में चीनी का सेवन: चौंकाने वाले आंकड़े

4 से 10 वर्ष के बच्चों को उनकी दैनिक कैलोरी का लगभग 13% चीनी से मिलता है। 11 से 18 वर्ष के किशोरों के लिए यह आंकड़ा 15% तक पहुंच जाता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार यह सीमा 5% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसका मतलब है कि भारतीय बच्चे अनुशंसित सीमा से लगभग 3 गुना ज्यादा चीनी का सेवन कर रहे हैं।

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अधिक चीनी के सेवन से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम

टाइप 2 डायबिटीज – जो पहले सिर्फ वयस्कों में होती थी, अब बच्चों में भी आम हो रही है।

मोटापा (Obesity) – चीनी और जंक फूड के कारण बच्चों का वजन असामान्य रूप से बढ़ रहा है।

उच्च रक्तचाप (High BP) – बच्चों में ब्लड प्रेशर बढ़ना एक गंभीर संकेत है।

दांतों की सड़न (Tooth Decay) – अधिक मीठा खाने से दांत कमजोर हो रहे हैं।

कमज़ोर इम्यून सिस्टम और थकान – अधिक चीनी ऊर्जा की जगह कमजोरी ला सकती है।

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इस पहल का समर्थन कौन कर रहा है?

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR): NCPCR ने भी इस अभियान का पूरा समर्थन किया है और कहा है कि यह पहल राज्य बोर्ड के अंतर्गत आने वाले स्कूलों में भी लागू की जानी चाहिए। उनका कहना है कि बच्चों में बढ़ती डायबिटीज एक राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुकी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन: प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 122वीं कड़ी में इस पहल की खुलकर सराहना की। उन्होंने कहा,“आपने स्कूलों में ब्लैकबोर्ड देखे होंगे लेकिन अब कुछ स्कूलों में शुगर बोर्ड भी लगाए जा रहे हैं। CBSE की यह पहल बच्चों को सेहतमंद विकल्प चुनने में मदद करेगी।”

विशेषज्ञों की राय क्या कहती है?

पोषण विशेषज्ञ (Nutritionists) कहते हैं कि बच्चों को अगर शुरुआत से ही चीनी और जंक फूड से दूरी बनाने की आदत डाली जाए, तो वे आगे चलकर जीवनभर स्वस्थ रह सकते हैं। डायबिटोलॉजिस्ट्स मानते हैं कि यह एक सकारात्मक पहल है जो टाइप 2 डायबिटीज के बढ़ते मामलों पर रोक लगा सकती है। बाल अधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बच्चों का अधिकार है और स्कूल इस जिम्मेदारी को निभाने का सबसे अच्छा माध्यम हैं।

CBSE के निर्देश क्या कहते हैं?

CBSE ने यह स्पष्ट किया है कि,हर स्कूल को यह सुनिश्चित करना होगा कि शुगर बोर्ड प्रमुख स्थानों पर लगे हों जैसे कैंटीन, कक्षा के बाहर, मुख्य प्रवेश द्वार आदि। बोर्ड की भाषा सरल, चित्रों के साथ, और बच्चों की समझ के अनुकूल होनी चाहिए। स्कूलों को समय-समय पर छात्रों के साथ स्वास्थ्य संवाद, नुक्कड़ नाटक, और स्वस्थ आहार पर कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए।

अभिभावक बच्चों के खाने-पीने की आदतों पर ध्यान दें और घर में भी शुगर बोर्ड जैसे सूचना दीवारें लगाएं। बच्चे खुद जागरूक बनें और अपने दोस्तों को भी बताएं कि ज्यादा मीठा खाना कितना खतरनाक हो सकता है। शिक्षक और स्कूल प्रबंधन बच्चों को चीनी के अलावा स्वस्थ विकल्प जैसे फल, अंकुरित अनाज, नारियल पानी आदि के बारे में जानकारी दें।


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Content Editor

PRARTHNA SHARMA

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