परिवार ने ठुकराया पर समाज ने अपनाया... महाकुंभ में किन्नरों का आशीर्वाद लेने के लिए कतार में खड़े हैं भक्त
punjabkesari.in Wednesday, Jan 22, 2025 - 05:55 PM (IST)
नारी डेस्क: 10 साल पहले जब ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए एक 'अखाड़ा' पंजीकृत करने का प्रयास किया गया था, तब कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। अब चल रहे महाकुंभ में इस संप्रदाय के शिविर में आशीर्वाद के लिए कतार में लगे तीर्थयात्रियों की बाढ़ आ गई है। 3,000 से अधिक ट्रांस व्यक्ति, जिनमें से अधिकांश को उनके परिवारों ने त्याग दिया है, अखाड़े में रह रहे हैं और संगम में पवित्र स्नान अनुष्ठान में भाग ले रहे हैं। उनका आशीर्वाद लेने के लिए उमड़े श्रद्धालुओं की भीड़ ने आखिरकार उन्हें उम्मीद दी है कि समाज में उन्हें स्वीकार किया जाएगा।
किन्नरों को लेकर बदली लोगों की सोच
किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पवित्र नंदन गिरि - जिन्होंने खुद को महिला बताया का कहना है कि " समाज ने हमेशा किन्नरों को तिरस्कृत किया है। हमें हमेशा से हीन समझा जाता रहा है। जब हमने अपने लिए अखाड़ा पंजीकृत कराना चाहा, तो हमारे धर्म को लेकर सवाल उठाए गए। हमसे पूछा गया कि हमें इसकी क्या जरूरत है। प्रतिरोध के बावजूद, हम 10 साल पहले इसे पंजीकृत कराने में कामयाब रहे और यह हमारा पहला महाकुंभ है,"। गिरि ने कहा- "आज हम संगम में डुबकी लगाने, अन्य अखाड़ों की तरह जुलूस निकालने और अनुष्ठान करने में सक्षम हैं। अखाड़े में तीर्थयात्रियों की बाढ़ आ गई है और वे हमारा आशीर्वाद लेने के लिए कतार में खड़े हैं। हमें अपना स्थान पाकर गर्व है और उम्मीद है कि समाज में भी हमें और अधिक स्वीकार किया जाएगा।"
परिवार ने नहीं दिया साथ
नर्सिंग स्नातक गिरी ने कहा कि उनके परिवार ने उन्हें छोड़ दिया, जैसा कि कई ट्रांस व्यक्तियों के साथ होता है, और उन्होंने खुद को समुदाय और अपने नए परिवार में पाया। उन्होंने कहा- "हमारे लिए जीवन कठिन है। एक बच्चे के रूप में, मैं अपने भाइयों और बहनों के साथ खेलती थी, इस बात से अनजान कि मैं उनमें से एक नहीं हूँ। एक बार जब मुझे पता चला, तो सभी ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं हीन या अछूत हूं। मैंने अपनी औपचारिक शिक्षा भी पूरी की, लेकिन फिर भी भेदभाव का सामना करना पड़ा,"।
किन्नर के आशीर्वाद को माना जाता है शुभ
महाकुंभ में अखिल भारतीय किन्नर अखाड़ा 14वा अखाड़ा है। 13 अखाड़ों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है - संन्यासी (शैव), बैरागी (वैष्णव) और उदासीन। महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी का कहना है कि- महाकुंभ में उनके साथ अन्य संतों के समान व्यवहार किया जाता है। हम प्रार्थना कर रहे हैं, भजन गा रहे हैं और यज्ञ कर रहे हैं। लोग हमसे एक रुपये के सिक्के लेने के लिए कतार में खड़े हैं। जब कोई किन्नर आशीर्वाद देता है तो इसे शुभ माना जाता है। हम यह संदेश देना चाहते हैं कि आध्यात्मिकता लिंग और पहचान की सभी सीमाओं को पार करती है।"
किन्नर अखाड़े का इतिहास
किन्नर अखाड़े की स्थापना 2015 में हुई थी और यह हिंदू धर्म के प्रमुख अखाड़ा परिषद के सदस्य के रूप में शामिल हुआ। किन्नर समुदाय के बीच यह अखाड़ा एक धार्मिक पहचान के रूप में विकसित हुआ, जो समाज में उनके अधिकारों की मान्यता और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए था। हालांकि किन्नरों की हिंदू धर्म में हमेशा से एक अलग स्थिति रही है। उन्हें अक्सर धार्मिक या सामाजिक दृष्टि से उपेक्षित किया जाता था। किन्नर अखाड़ा ने इस परंपरा को चुनौती दी और किन्नरों को एक धार्मिक संप्रदाय के रूप में स्थापित किया।
अखाड़ा परिषद का विरोध
किन्नर अखाड़े के गठन को लेकर कुछ परंपरागत अखाड़ों और अखाड़ा परिषद ने विरोध जताया था, क्योंकि यह एक नई शुरुआत थी और कुछ लोगों का मानना था कि यह पुराने अखाड़ों के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। किन्नर अखाड़े का उद्देश्य किन्नरों को धार्मिक और सामाजिक अधिकार प्रदान करना था, लेकिन कई परंपरावादी इसे धार्मिक विवाद के रूप में देख रहे थे।
अपने श्रृंगार के लिए जाना जाता है किन्नर अखाड़ा
किन्नर अखाड़े के सदस्य अपनी सुंदरता और श्रृंगार के लिए जाने जाते हैं. यह उनके आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बताया जा रहा है कि किन्नर अखाड़े की सुरक्षा की बागडोर बाउंसर ही संभाल रहे हैं। किन्नर अखाड़ा न सिर्फ अध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह किन्नर समुदाय के अधिकारों और सामाजिक स्वीकृति के लिए भी एक प्रतीक बन चुका है।